श्री गुरुभ्यो नमः. हरी: ॐ
नम: कृष्णाय नीलाय शितिकंठनिभाय च।
नम: कालाग्रिरूपाय कृतान्ताय च वै नम:॥
नमो निर्मासदेहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च।
नमो: विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते॥ १ ||
नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णे च वै पुन:।
नमो दीर्घाय शुष्काय कालदष्ट्रं नमोस्तुते॥
नमस्ते कोटरक्षाय दुर्निरीक्ष्याय वै नम:।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय करालिने॥ २ ||
नमस्ते सर्वभक्षाय वक्रदृष्ट नमोस्तुते।
सूर्यपुत्र नमस्तेस्तु भास्करेअभयदाय च॥
अधोदृष्टे नमस्तेस्तु संवर्तक नमोस्तुते।
नमो मंदगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोस्तुते॥ ३ ||
नमस्ते दु:खनाशाय दुरित तिमिरहारक. |
विदारका विघ्नहर्ता पिप्पलादायते नमः ||
ज्ञान चक्षुर्नमस्तेस्तु कश्पात्मजसूनवे।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रूष्टो हरिस तत्क्षणात्॥ ४ ||
इति श्री पिप्पलाद स्तोत्रम् संपूर्णं
श्री शनैश्चरार्पणमस्तु
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