Sunday, February 09, 2025

*GOVINDASHTAKAM गोविंदाष्टकम्

                           श्री गोविंदाष्टकम्

श्री गुरुभ्यो नमः हरी: ॐ 

चिदानंदाकारं  श्रुतिसरससारं समरसं  निराधाराधारं  भवजलधिपारं  परगुणम | रमाग्रीवाहारं व्रजवनविहारं हरनुतं सदा तन गोविन्दं परमसुखकन्द भजत रे ||१||

महाम्भोधिस्थानं स्थिरचरनिदानं दिविजपं सुधाधारापानं विहगपतियानं यमरतम | मनोज्ञं सुज्ञानं मुनिजननिधानं ध्रुवपदं सदा  तन गोविन्दं परमसुखकन्द भजत रे ||२ ||

धिया धीरैर्ध्येयं  श्रवणपुटपेयं यति वरैर्महा वाक्यैर्ग्येयं त्रिभुवन विधेयं विधिपरम | मनोमानामयं सपदि हृदि नेयं नवतनुं  सदातन गोविन्दं परमसुखकन्द भजत रे ||३ ||

माहामायाजालं विमलवनमालं मलहरं सुभालं गोपालं निहतशिशुपालं शशि मुखम | कलातीतं कालं गतिहतमरालं मुररिपुं सदातन गोविन्दं परमसुखकन्द भजत रे ||४ ||

नभोबिम्बस्फीतं निगमगणगीतं समगतिं सरोधै: समप्रीतं दितिजविरीतं पुरिशयम | गिरां मार्गातीतं स्वदितनवनीतं नयकरं सदा तन गोविन्दं परमसुखकन्द भजत रे ||५ ||

परेशं पद्मेशं शिवकमलजेशं शिवकरं द्विजेशं तनुकुटिलकेशं  कलिहरम | खगेशं नागेशं निखिलभुवनेशं नागधरं सदा तन गोविन्दं परमसुखकन्द भजत रे||६ ||

रमाकान्तं  कान्तं  भवभयभयान्तं  भवसुखं दुराशान्तं निखिलहृदि भान्तं भुवनपम | विवादान्तं दान्तं दानु जनिचयान्तं सुचरितं सदातन गोविन्दं परमसुखकन्द भजत रे || ७ ||

जगज्ज्येष्ठं श्रेष्ठं सुरपति कनिष्ठं क्रतुपतिं बलिष्ठं भूयिष्ठं त्रिभुवनवरिष्ठं वरहम | स्वविष्ठं धर्मिष्ठं गुरुगुणगरिष्ठं गुरुवरं सदा तन गोविन्दं परमसुखकन्द भजत रे ||८ ||

गदापाणेरेतददुरितदलनं   दुःखशमनं   विशुद्धात्मा स्तोत्रं पठति मनुजो सततम | स भुक्त्वा भोगौघं चिरमहि ततोsपास्तवृजिन: परं विष्णो स्थानं व्रजति खलु वैकुण्ठ भुवनम् ||९ ||

||श्री कृष्णार्पणमस्तु ||

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