श्री दत्त घोरकष्टोद्धरण स्तोत्रं
काषाय वस्त्रम् करदंड धारिणम्। कमंडलु पद्म करेण शंखम्॥ चक्रम् गदा भूषित भूषणाढ्यम। श्रीपादराजं शरणम् प्रपद्ये॥
श्री गुरुभ्यो नमः हरी ॐ
श्रीपाद श्रीवल्लभ त्वं सदैव।
श्रीदत्तास्मान्पाहि देवाधिदेव।।
भावग्राह्य क्लेशहारिन्सुकीर्ते।
घोरात्कष्टादुद्धरास्मान्नमस्ते।।१।।
त्वं नो माता त्वं पिताप्तोऽधिपस्त्वं।
त्राता योगक्षेमकृत्सदगुरूस्त्वं।।
त्वं सर्वस्वं नोऽप्रभो विश्वमूर्ते।
घोरात्कष्टादुद्धरास्मान्नमस्ते।।२।।
पापं तापं व्याधिमाधिं च दैन्यं।
भीतिं क्लेशं त्वं हराऽशुत्वदन्यं।।
त्रातारं नो वीक्ष्य ईशास्तजूर्ते।
घोरात्कष्टादुद्धरास्मान्नमस्ते।।३।।
नान्यस्त्राता नापि दाता न भर्ता।
त्वत्तो देव त्वं शरण्योऽकहर्ता।।
कुर्वात्रेयानुग्रहं पूर्णराते।
घोरात्कष्टादुद्धरास्मान्नमस्ते।।४।।
धर्मे प्रीतिं सन्मतिं देवभक्तिं।
सत्संगाप्तिं देहि भुक्तिं च मुक्तिं।।
भावासक्तिं चाखिलानंदमूर्ते।
घोरात्कष्टादुद्धरास्मान्नमस्ते।।५।।
श्लोक
श्लोकपंचकमेतद्यो लोकमंगलवर्धनम्।
प्रपठेन्नियतो भक्त्या स श्रीदत्तप्रियो भवेत्।।
इति श्री पाद वल्लभ कृत दत्त घोरकष्टोद्धरण स्तोत्रं संपूर्णं श्री कृष्णार्पणमस्तु
No comments:
Post a Comment