Friday, August 08, 2025

Chidananda Rupah. शिवोsहं शिवोsहं



श्री गुरुभ्यो नमः हरी: ॐ 

मनो बुद्धि अहंकार चित्तानी नाहं,
नच श्रोत्र जिव्हे नच घ्राण नेत्रे।
नच व्योम भूमि न तेजो न वायु,
चिदानन्द रूप: शिवोऽहम्शिवोऽहम्॥१॥

नच प्राण संज्ञो न वै पञ्चवायु:,
न वा सप्तधातुर्नवा पञ्चकोश:।
न वाक्पाणिपादौ न च उपस्थ पायुः,
चिदानन्द रूप: शिवोऽहम्शिवोऽहम्॥२॥
 
नमे द्वेषरागौ नमे लोभ मोहौ,
मदो नैव मे नैव मात्सर्यभाव:।
न धर्मो नचार्थो न कामो न मोक्ष:,
चिदानन्दरूप: शिवोऽहम्शिवोऽहम्॥३॥

न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दु:खम्,
न मन्त्रो न तीर्थं न वेदार्न यज्ञा:।
अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता,
चिदानन्द रूप:शिवोऽहम्शिवोऽहम्॥४॥

न मे मृत्युशंका नमे जातिभेद:,
पिता नैव मे नैव माता न जन्म:।
न बन्धुर्न मित्रं गुरुर्नैव शिष्य:,
चिदानन्द रूप:शिवोऽहम्शिवोऽहम्॥५॥

अहं निर्विकल्पॊ निराकार रूपॊ,
विभुत्वाच्च सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम्।
नचासंगतंनैवमुक्तिर्नमेय:,
चिदानन्द रूप:शिवोऽहम्शिवोऽहम्॥६॥

आदि श्री शंकराचार्यां विरचित   शिवोsहं शिवोsहं 
स्तोत्रं संपूर्णं
श्री कृष्णार्पणमस्तु 

भावार्थ:

मैं शुद्ध चेतना हूं,अनादि‍,अनंत शिव हूँ
मैं न तो मन हूं,न बुद्धि,न अहंकार,न ही चित्त हूँ ,
मैं न तो कान हूं,न जीभ,न नासिका,न ही नेत्र हूँ।
मैं न तो आकाश हूं,न धरती,न अग्नि,न ही वायु हूँ,
मैं तो शुद्ध चेतना हूं,अनादि,अनंत शिव हूँ।१

मैं न प्राण हूं,न ही पंच वायु हूँ,मैं न सात धातु हूं,और न ही पांच कोश हूँ।मैं न वाणी हूं,न हाथ हूं,न पैर,न ही उत्‍सर्जन की इन्द्रियां हूँ,मैं तो शुद्ध चेतना हूं,अनादि,अनंत शिव हूँ।२

न मुझे घृणा है,न लगाव है,न मुझे लोभ है।और न मोह।न मुझे अभिमान है,न ईर्ष्या,मैं धर्म,धन,काम एवं मोक्ष से परे हूँ।मैं तो शुद्ध चेतना हूं,अनादि,अनंत शिव हूँ।३

मैं पुण्य,पाप,सुख और दुख से विलग हूँ।
मैं न मंत्र हूं,न तीर्थ,न ज्ञान,न ही यज्ञ,न मैं भोजन(भोगने की वस्‍तु) हूँ,न ही भोग का अनुभव, और न ही भोक्ता हूँ।मैं तो शुद्ध चेतना हूं,अनादि,अनंत शिव हूँ।४

न मुझे मृत्यु का डर है,न जाति का भेदभाव।
मेरा न कोई पिता है,न माता,न ही मैं कभी जन्मा था।
मेरा न कोई भाई है,न मित्र,न गुरू,न शिष्य,
मैं तो शुद्ध चेतना हूँ,अनादि,अनंत शिव हूँ।५

मैं निर्विकल्प हूँ,निराकार हूँ,मैं चैतन्‍य के रूपमेंसबजगहव्‍याप्‍तहूं,सभीइन्द्रियोंमें हूं,न मुझे किसी चीज में आसक्ति है,न ही मैं उससे मुक्त हूँ,
मैं तो शुद्ध चेतना हूँ,अनादि‍,अनंत शिव हूँ|६




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