गोविन्दराज भगवं तव सुप्रभातंम्
हरिः ॐ
दैवत्रयात्मकाश्वत्थ रूप अरुणउदयारभ्यतॆ |
उत्तिष्ठ दैव दर्पघ्नं उत्तिष्ठ लोक माह्निकं |
उत्तिष्टोत्तिष्ट अश्वत्थ उत्तिष्ठ चंद्रलापतिं |
उत्तिष्ठ लक्ष्मिकांत त्रिभुवने मंगलं कुरु | १ |
अपरः परत्व पुरुषः परब्रह्म वृक्ष |
मूल प्रधूर्ध्व प्रसरः अधवः प्रपत्र |
मूल प्रधूर्ध्व प्रसरः अधवः प्रपत्र |
पुष्पांत्य बीजचक्रः महतत्व वृध्द्धि |
गोविंदराज भगवं तव सुप्रभातं | २ |
गोविंदराज भगवं तव सुप्रभातं | २ |
वैश्व्वानरो स्वप्न सुशुप्ति प्राज्ञा: |
ज्ञानात्मनाद तुरीय स्थित बिंदुघोष |
ज्ञानात्मनाद तुरीय स्थित बिंदुघोष |
सौम्यत्व रौद्रछसमवेत व्यक्तः प्रकृतिः |
गोविंदराज भगवं तव सुप्रभातं | ३ |
प्रलयः कृतांत दंडो वैवस्वतस्य |
आकाशतत्व प्रतिभेद मिति कालचक्र |
आकाशतत्व प्रतिभेद मिति कालचक्र |
रौद्रत्व युक्त प्रतिहार प्रति दुष्ट तत्वैः |
गोविंदराज भगवं तव सुप्रभातं | ४ |
गोविंदराज भगवं तव सुप्रभातं | ४ |
चंद्रार्क पंचशूलः ताराधिकारी |
दर्शंतु बाण भरितः भरदिवै संघै |
अमरादिदेव वृंदः शस्त्रः प्रतीकै|
गोविंदराज भगवं तव सुप्रभातं | ५ |
प्रावाह्य दक्षिण भीमरथै तटं च |
देवस्य दक्षिणपथे सिनिवालि मंदै : |
आग्नेय कोण मार्गे वृंदावनस्थै : |
गोविंदराज भगवं तव सुप्रभातं | ६ |
पिप्पलैर्बंधु कृतकाष्ट मुनिवर्यगस्त्यै |
परि पालयं पिंगल पद्म नाभै |
क्रूर ग्रह स्थानेषु सुख सौख्य चरति |
गोविंदराज भगवं तव सुप्रभातं | ७ |
वेताळ पंच विंशति निर्णायकत्वा |
पुर्णाहुति स्वधाने कापट्य हरणं |
नृपविक्रमार्क विजयं रहस्यकथया |
गोविंदराज चरणं शरणं प्रपद्दॆ | ८ |
गोखेटराज वामे वनदेवि धामै : |
विशाल प्रांगण ऊर्ध्व जलकन्य रत्नै: |
निंबकाश्वथ तरू मह फणिराज दक्षै: |
अश्वत्थ रूप चरणं शरणं प्रपद्ये | ९ |
रक्षाटमल्ल महभद्र शार्दूल रामा |
मोक्षार्थ काम धर्मः पुरुषार्थ पूर्ण |
वृक्ष स्वरूप द्रविडाद्याराध्य नाथै |
अश्वत्थ रूप चरणं शरणं प्रपद्ये | १० |
रक्षार्थ राम धनुषः दृष्ट्वातु वामे |
कृष्णै सुदर्शन धरः प्रमथः प्रशंसा |
शंखः करेण वरदः करुणांक हस्त |
अश्वत्थ रूप चरणं शरणं प्रपद्ये | ११ |
भवरोग राजरजसा धिक्कार जननं |
संहार सार तमसा नैषेद्य पूर्ण |
सत्यत्वनित्य गृहितः कुंभोद्भवादात् |
अश्वत्थ रूप चरणं शरणं प्रपद्ये | १२ |
हरिभक्ति पूर्ण पयसा स्फुटवीर्य युक्तै :|
निर्माण दद्य घटयः परि छिन्न भिन्न |
गोविंद नाट्य माया नतुजान्य लीलां |
अश्वत्थ रूप चरणं शरणं प्रपद्ये | १३ |
गजवदन रुद्र हनुमान नागादि यक्षै:|
भज वृक्ष राज नामं उपतिष्ठ वृंदै :|
कृपयाभिलाष पूर्णं फलितं कृतस्य |
अश्वत्थ रूप चरणं शरणं प्रपद्ये |१४|
सर्वेप्सितः प्रदं भिषज सर्व क्लेश विनाशनं |भूताय भूतवासाय भीतो भयात् प्रमुच्यतॆ |
सद्भूतयॆ सर्व दुःखॆभ्यॊ मुक्तो भवति मानव |
इति श्री ऋग्वेद संहिता भाष्याचार्य श्री सीतारामाचार्य द्वैपायनाचार्य कट्टी उमरजकर उपनामाख्येन विरचित श्री मद् गोविंदराज सुप्रभातम् संपूर्णं ||
इति श्री ऋग्वेद संहिता भाष्याचार्य श्री सीतारामाचार्य द्वैपायनाचार्य कट्टी उमरजकर उपनामाख्येन विरचित श्री मद् गोविंदराज सुप्रभातम् संपूर्णं ||
|| श्री
कृष्णार्पणमस्तु ||
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