Sunday, August 21, 2022

MAHAALAYA XV /SAMVATSARIKA SHRAADDHA महालय /प्रतिसांवत्सरिक श्राद्ध

महालय /प्रतिसांवत्सरिक श्राद्ध 

1)  प्रयाग, गया, त्रिवेणी संगम इत्यादि तीर्थ क्षेत्रोमे समस्त पितरोंका श्राद्ध किया जाता है | उधर के पुरोहित क्षेत्र महति बताते हुये बोल जाते है “ इन क्षेत्रो मे अगर श्राद्ध किया जाय तो आगे श्राद्ध  करनेकी जरुरत ही नहि,  उतना पुण्य मिलता है “ इसका मतलब कुछ लोग ऐसे लेते है की सच मे पितरोंकाश्राद्ध क्रिया नहि करना है| यह गलत है, पितरोंका श्रद्धा कभी कम नहिहोता, ऋण कभी चुका नहि  सकते| इसलिये तीर्थक्षेत्रो मे श्राद्ध कर्म करनेके बाद भी पितरोंका महालय / प्रति सांवत्सरिक श्राद्ध करना अवश्यक है |

  2 पुत्र नहि, पुत्री है तो पुत्री श्राद्ध कर सकती है | पुत्री से अधिकार लेनेके पश्चात जामाता भी श्राद्ध करणे योग्य हो जाता है |

3) पत्नी का मातापितावोंका श्राद्ध भी जामाता कर सकता है | उपकृतोंका तर्पण दिया जाता है तो जो मातापिता उनकी पुत्रि को देकर उपकृत करता है | तो जामाता भी श्राद्ध करने योग्य हो सकता है |

4) जिन मातापितावोंको पुत्र पुत्री कोइ नहि  उनके कुटुंब मे का कोइ / कुटुंब बाहर का कोइ श्राद्ध करने का मानस रखता है, मृत कुटुंबियोसे अधिकार लेके क्रिया कर्म कर सकता है |

5) जिन मातापितावोंको पुत्र पुत्री कोइ नहि  उनके कुटुंब मे का कोइ / कुटुंब बाहर का कोइ उन माता पितावोंका जमिन जायदाद संपत्ति का उपभोग लेता है तो वह उपभोक्ता भी श्राद्ध करने योग्य रहता है इसकेलिये अधिकार लेनेकी जरुरत नहि |

6) श्राद्ध करने केलिये अनुकूलता है, यथा शक्ति कर सकता है, मन मे श्रद्धा है तो श्राद्ध मे पिंड प्रदान अवश्य करना चाहिये, केवल अनानुकूलता मे अनिवार्य परिस्थिति मे संकल्प श्राद्ध, हिरण्य श्राद्ध कर सकते है अन्यथा पिंड प्रदान करना जरुरी है |

7) श्राद्ध कर्म करने योग्य अनुकूलता नहि तो आखिर ऐसे भी शास्त्रो मे प्रावधान है की निर्जन प्रदेश मे जाकर दक्षिण दिशा की ओर मुख करके हाथ उपर करके “ मै पितरोंका श्राद्ध नहि कर सकता मुझो क्षमा करे “ ऐसा पश्चात्ताप पूर्वक अगर बोला जाय तो श्राद्ध किया जैसा ही समझा जाता है |

8) श्राद्ध अपराह्न कालमे करना ऐसा शास्त्र है | अगर तिथि  दिन श्राद्ध समय पहले दिन मे दस मिनिट अथवा कम समय मे अपराह्न काल मुक्ताय हो ( मध्याह्न तीन घण्टे के बाद ) दुसरे दिन अपराह् प्रारम्भ पहले दिन से कम मध्याह्न एक बजे पर्यन्त श्राद्ध तिथि दिन ही श्राद्ध करना युक्त, क्योकि की पहले दिन श्राद्ध तिथि समय मुक्ताय हो जाता है |

“ चतुर्थे प्रहरे प्राप्ते यः श्राद्धं कुरुते नरः | आसुरं तद् भवेत श्राद्धं दाता च नरकं व्रजेत् || “

ऐसा बौधायन वचन है 6 घंटा सुर्योदय दिनमानसे 3 घण्टा बाद चतुर्था प्रहर प्राप्त होनेसे वह निषिद्ध है | दिनमान के अष्टम भाग कुतुप काल प्रमुख समय व्याप्ति मे श्राद्ध करना सूक्त रहता है |     

    अविधवा नवमि : पत्नी का निधन होता है तो अविधवा नवमि महालय श्राद्ध पितृ पक्षमे करना आवश्यक है | अगर जब वाहि पति का भी निधन हो जाय, तो “अविधवा नवमि महालय श्राद्ध “ करना चाहिये या नहि ?

9) जिज्ञासा : जब पत्नी का निधन होता है उस दिन का और भविष्यमे भी पत्नी का स्तिथि दर्जा देखा जाय – वो नहि रह सकती और निरन्तर अविधवा ही रहति है | इसलिये अविधवा नवमि महालय श्राद्ध करना चाहिये | जब तक पुत्र या पुत्री छोटे है तब तक पिता ही अविधवा नवमि श्राद्ध करना है | बाद मे पुत्र को करना होगा, वैसे ही तर्पण क्रिया पति को ही करना है | 

10) धर्म सिन्धु नियम : जब कभी पति का निधन के बाद पत्नी का स्तिथि / दर्जा सनातन संप्रदायानुसार पत्नी का विधवा ही नहि बल्कि अविधवा ही नहि रह सकती  मरणोत्तर पति का महालय श्राद्ध मे “ सपत्नीकः “ ऐसा उच्चारण करना, तर्पण करना आवश्यक रहता है | इसलिये पत्नी का पितृ पक्ष अविधवा नवमि महालय श्राद्ध आवश्यक नहि रहति | पति का महालय श्राद्ध के अन्तर्गत स्तिथि आ जाता है | लेकिन दोनो का निधन तिथि अनुसार अलग से प्रति सांवत्सरिक श्राद्ध करना आवश्यक है |

11) मनः शान्ति : उल्लेखित दोनो विचारोंके उपर उच्च कोटि का समालोचन किया जाय तो प्रशस्तः धृढ मानसिक स्तिथि, मनः शान्ति और कौटुंबिक सातत्य, बडों का आशिर्वाद के संबधित विचार ध्यान मे रखते हुये - अविधवा नवमि महालय श्राद्ध अगर किया जाय तो गलत कुछ नहि करते |

12) अन्ततः श्राद्ध कर्म करना छोड देनेसे करते रहना कुटुंब स्वास्थ्य केलिये योग्य उच्त और उत्तम रहता है ।

13) स्वधा व स्वाहाकार यह दोनो क्रिया अपने रहते घर मे ही होना चाहिये ऐसा नियम है जो सज्जन परदेश गमन करता है और परदेश मे ही रहता है स्वधा क्रिया कर्म का पूर्तता करते रहना सूक्त है | जिस दम्पत्ति को अपत्य प्राप्ति नहि होति उनकी कुण्डली मे बारहवा पितृ स्थल दूषित व शत्रु ग्रहोसे पीडित रहता है |

 14)  हर साल भाद्रपद मास का कृष्‍ण पक्ष पितरों को समर्पित किया जाता है. 15 दिन के इस समय को पितृ पक्ष कहते हैं.  इस दौरान पूर्वजों की आत्‍मा की शांति के लिए श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान कर्म किए जाते हैं. साथ ही यह समय पितृ दोष से निजात पाने के लिए भी उत्‍तम माना गया है. पितृ दोष शांति के उपाय जल्‍द से जल्‍द कर लेना चाहिए, वरना जीवन में मुसीबतें खत्‍म नहीं होती हैं. 

        यदि मृतक का अंतिम संस्‍कार विधि-विधान से न किया जाए या किसी की अकाल मृत्‍यू हो जाए तो उसके परिवार पर पितृ दोष लगता है. इसका असर कई पीढ़ियों तक रहता है. पितृ दोष के कारण उस परिवार आर्थिक तंगी झेलता है. लोगों की तरक्‍की नहीं होती है. घर में झगड़े-कलह होते हैं. लड़के-लड़कियों का विवाह नहीं होता है. संतान सुख नहीं मिलता है. यदि संतान हो भी तो उसे कोई शारीरिक-मानसिक समस्‍या रहती है. परिवार के बच्‍चे बुरी संगत में पड़कर जीवन तबाह कर बैठते हैं. नौकरी और व्‍यवसाय में मेहनत करने के बावजूद भी लगातार नुकसान होता रहता है. परिवार का सदस्‍य हमेशा बीमार रहता है. घर में मांगलिक कार्य नहीं होते हैं. 

पितृ दोष दूर करने के उपाय 

पितृ दोष दूर करने के लिए पितरों की आत्‍मा की शांति के लिए तर्पण-श्राद्ध, पिंडदान करें. दक्षिण दिशा में पितरों की फोटो लगाकर रोज उनको प्रणाम करें. इससे राहत मिलेगी. 

- पीपल के पेड़ पर दोपहर में जल चढ़ाएं. साथ ही फूल, अक्षत, दूध और काले तिल भी चढ़ाएं. 

- शाम को दक्षिण दिशा में रोज एक दीपक जलाएं. यदि ऐसा संभव न हो तो भी कम से कम पितृ पक्ष के दौरान जरूर ऐसा करें. 

र्व काल मे परदेश गमन ही क्यो लम्बे दुरी पर के यात्रा स्थलोन्को जाकर आता है तो वो लोग वापिस नहि आते ऐसा समझा जाता था, बल्कि उनका निधन हो गया ऐसा ही समझते थे | परदेश मे उधर का संस्कार, रहना, खाना, पिना, भारत वासियोम्को निषिद्ध समझा जाता था, उस समय हिन्दुस्थानके सनातन सामाजिक स्तिथि ध्यान मे रखते हुये ऐसा समझना उचित था, लेकिन प्रस्तुत अब की परिस्थिति ऐसा नहि इसलिये वह मानसिकता रखना ठीक नहि |  

15)  पूर्व काल मे परदेश गमन ही क्यो लम्बे दुरी पर के यात्रा स्थलोन्को जाकर आता है तो वो लोग वापिस नहि आते ऐसा समझा जाता था, बल्कि उनका निधन हो गया ऐसा ही समझते थे | परदेश मे उधर का संस्कार, रहना, खाना, पिना, भारत वासियोम्को निषिद्ध समझा जाता था, उस समय हिन्दुस्थानके सनातन सामाजिक स्तिथि ध्यान मे रखते हुये ऐसा समझना उचित था, लेकिन प्रस्तुत अब की परिस्थिति ऐसा नहि इसलिये वही मानसिकता रखना ठीक नहि | 

16)  पितृपक्ष शब्द सुनते या पढ़ते ही मन में पूर्वजों का चित्र और उनकी स्मृतियां तुरंत ही ध्यान आ जाती हैं और इसके साथ ही उनके प्रति श्रद्धा भी उत्पन्न होती है. पितृपक्ष एक ऐसा अवसर है, जिसमें नई पीढ़ी को अपने ज्ञात पूर्वजों के बारे में बताना चाहिए, साथ ही उनसे जुड़ी हुई घटनाओं का भी सजीव चित्रण करने का प्रयास करना चाहिए. हालात ऐसे हो गए हैं कि आज की नई पीढ़ी को अपने माता-पिता के अलावा बाबा तक का नाम अकसर मालूम नहीं होता है. हमेशा न सही, लेकिन साल के 15 दिनों में ही कभी आप अपने पूर्वजों के बारे में नई पीढ़ी को बता सकें या आपको नहीं मालूम है तो पता कर सकें तो यह भी एक प्रकार का पितरों को प्रणाम है. इसको अपने ऊपर लेकर सोचना चाहिए कि हम रात-दिन बच्चों के भविष्य के लिए मेहनत कर रहे हैं, लेकिन यदि आपका पौत्र आपका अभिवादन तक नहीं करता हो तो आत्मा को बहुत कष्ट होगा

श्राद्ध तर्पण से पूज्यों कि हो जाती है पूजा 

कहावत है कि मूलधन से ब्याज प्यारा होता है. यानी बेटे से ज्यादा पौत्र-पौत्री प्यारे और दुलारे होते हैं. जैसे बड़े-बुजुर्गों की हम लोगों पर स्नेह दृष्टि होती है, उसी प्रकार पूर्वजों का कीर्ति शरीर भी हम लोगों पर दृष्टि रखता है, इसलिए उनके जीवन में किए गए संघर्ष और उपलब्धियों से वर्तमान पीढ़ी को अवगत कराना उनका सच्चा सम्मान हैं. यह मानसिक श्राद्ध भी है, इसी से वह तृप्त भी होंगे. बेमन और दिखावे में किए गए श्राद्ध का कोई फल नहीं मिलता है. भीष्म पितामह का श्राद्ध पांडवों ने किया था. वाराहपुराण, सुमन्तु, यम-स्मृति, ब्रह्मपुराण धर्म शास्त्रों में श्राद्ध की महत्ता बताई गई है. वाराहपुराण में कहा गया है कि श्राद्ध तर्पण से जगत के पूज्यों की भी पूजा हो जाती है. सुमन्तु ने श्राद्ध कर्म को सर्वश्रेष्ठ कर्म कहा गया है. यम-स्मृति में कहा गया है, जो श्राद्ध करता है अथवा उसकी सलाह देता है, उन सभी को श्राद्ध का फल मिलता है.

किस दिन करें श्राद्ध कर्म

दो-तीन पीढ़ी ऊपर के पूर्वजों को तो सभी जानते हैं, क्योंकि वह आपसे जुड़े भी रहे हैं. उनका श्राद्ध देह त्याग की तिथि को ही करना चाहिए, किंतु जिन पूर्वजों की तिथि के बारे में नहीं पता है, उनका श्राद्ध दर्श, अमावास्या को करना शास्त्रों में बताया गया है.

शीघ्र उपयोग में आनेवाली वस्तुएं ही दान में दे 

श्राद्ध में ध्यान देने वाली बात यह है कि जिस व्यक्ति विशेष के लिए जो वस्तुएं आप खरीद रहे हों या दान रूप में दे रहे हों, वह उनके शीघ्र ही काम आने वाली हों. ऐसा न हो कि आप जिन वस्तुओं पर धन खर्च करें, वह वस्तुएं लंबे समय तक बिना काम के पड़ी रहें. जिसका श्राद्ध करें, उनकी पसंद की चीजें ही दान करें. पसंद में एक बात याद रखें कि पसंद सकारात्मक होनी चाहिए न कि आशक्ति. ऐसी भूल कभी भी न करें. यदि दादा जी को शराब पसंद थी तो उनको प्रसन्न करने के लिए शराब पीने और पिलाने लगें |                                                                                                          ..... विविध मूलसे आधारित 

           

  

             

    


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