Friday, November 22, 2024

Nilkantha Ashtakam पार्वतीवल्लभ नीलकण्ठाष्टकं

                अथ पार्वतीवल्लभ नीलकण्ठाष्टकं 


श्री गुरूभ्यो नमः. हरी: ॐ 

 नमो भूतनाथं नमो देवदेवं

    नमः कालकालं नमो दिव्यतेजम् ।

नमः कामभस्मं नमश्शान्तशीलं

    भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ १॥

सदा तीर्थसिद्धं सदा भक्तरक्षं

    सदा शैवपूज्यं सदा शुभ्रभस्मम् ।

सदा ध्यानयुक्तं सदा ज्ञानतल्पं

    भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ २॥

श्मशाने शयानं महास्थानवासं

    शरीरं गजानं सदा चर्मवेष्टम् ।

पिशाचं निशोचं पशूनां प्रतिष्ठं

    भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ३॥

फणीनाग कण्ठे भुजङ्गाद्यनेकं

    गले रुण्डमालं महावीर शूरम् ।

कटिं व्याघ्रचर्मं चिताभस्मलेपं

    भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ४॥

शिरश्शुद्धगङ्गा शिवा वामभागं

    बृहद्दिव्यकेशं सदा मां त्रिनेत्रम् । 

फणी नागकर्णं सदा भालचन्द्रं  

    भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ५॥

करे शूलधारं महाकष्टनाशं

    सुरेशं वरेशं महेशं जनेशम् ।

धनेशस्तुतेशं ध्वजेशं गिरीशं  

    भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ६॥

उदानं सुदासं सुकैलासवासं  

    धरा निर्धरं संस्थितं ह्यादिदेवम् ।

अजा हेमकल्पद्रुमं कल्पसेव्यं

    भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ७॥

मुनीनां वरेण्यं गुणं रूपवर्णं

    द्विजानं पठन्तं शिवं वेदशास्त्रम् ।

अहो दीनवत्सं कृपालुं शिवं हि

    भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ८॥

सदा भावनाथं सदा सेव्यमानं

    सदा भक्तिदेवं सदा पूज्यमानम् ।

मया तीर्थवासं सदा सेव्यमेकं

    भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ९॥


इति पार्वतीवल्लभ नीलकण्ठाष्टकं सम्पूर्णम् ।


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