ओ मात पिता तुम्हे वंदन, मैंने किस्मत से तुम्हें पाया
मुझे इस दुनिया में लाया, मुझे बोलना चलन सिखाया
ओ मात पिता तुम्हे वंदन ....
मैं जब से जग में आया, बने तब से ही तले छाया
कभी सहलाया गोदी में कभी कांधे पर है बिठाया
मेरे सिर पर हाथ रख कर बस प्यार ही प्यार लुटाया
ओ मात पिता तुम्हे वंदन....
मैं उठकर सर चल पाऊ, इस लायक तुमने किया है
कहीं हाथ नहीं फैलाऊ, मुझे इतना तुमने दिया है
मुझे जग की रीत सिखाई, मुझे धर्म का पाठ पढ़ाया
ओ मात पिता तुम्हे वंदन....
मां-बाप की आंखों से मैं, आंसू बनकर ना गीरूगा
मां बाप का दिल जो दुखा दे, मैं ऐसा कुछ ना करूंगा
मां बाप के रूप में मैंने, भगवान को जैसे पाया
ओ मात पिता तुम्हे वंदन ....
जब देव भी मात पिता के, उपकार चुका ना पाए
नागोड़ा दरबार प्रदीप, किन शब्दों में गुण गाए
मैं फर्ज निभा पाऊं तो, समझूंगा अंश चुकाया
ओ मात पिता तुम्हे वंदन ..
मुझे इस दुनिया में लाया मुझे बोलना चलन सिखाया
ओ मात पिता तुम्हे वंदन मैंने किस्मत से तुम्हें पाया
ओ मात पिता तुम्हे वंदन ..ओ मात पिता तुम्हे वंदन ..
नागोड़ा दरबार प्रदीप,
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