Sunday, August 10, 2025

SHIVA RAKSHA Stotram. श्री शिवरक्षा स्तोत्रम्

श्री शिवरक्षा स्तोत्रम्
श्री गुरुभ्यो नमः हरी: ॐ

विनियोग: – ऊँ अस्य श्रीशिवरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य याज्ञवल्क्य ऋषि:, श्रीसदाशिवो देवता, अनुष्टुप् छन्द:, श्रीसदाशिवप्रीत्यर्थं शिवरक्षास्तोत्रजपे विनियोग: ।

चरितं देवदेवस्य महादेवस्य पावनम् ।
अपारं परमोदारं चतुर्वर्गस्य साधनम् ।।1।।

गौरीविनायकोपेतं पंचवक्त्रं त्रिनेत्रकम् ।
शिवं ध्यात्वा दशभुजं शिवरक्षां पठेन्नर: ।।2।।

गंगाधर: शिर: पातु भालमर्धेन्दुशेखर: ।
नयने मदनध्वंसी कर्णौ सर्पविभूषण: ।।3।। 

घ्राणं पातु पुरारातिर्मुखं पातु जगत्पति:। 
जिह्वां वागीश्वर: पातु कन्धरां शितिकन्धर:।।4।। 

श्रीकण्ठ: पातु मे कण्ठं स्कन्धौ विश्वधुरन्धर:।
भुजौ भूभारसंहर्ता करौ पातु पिनाकधृक् ।।5।।

हृदयं शंकर: पातु जठरं गिरिजापति: ।
नाभिं मृत्युंजय: पातु कटी व्याघ्राजिनाम्बर: ।।6।।

सक्थिनी पातु दीनार्तशरणागतवत्सल: ।
ऊरू महेश्वर: पातु जानुनी जगदीश्वर: ।।7।।

जंघे पातु जगत्कर्ता गुल्फौ पातु गणाधिप: ।
चरणौ करुणासिन्धु: सर्वांगानि सदाशिव: ।।8।।

एतां शिवबलोपेतां रक्षां य: सुकृती पठेत् ।
स भुक्त्वा सकलान् कामान् शिवसायुज्यमाप्नुयात् ।।9।। 

ग्रहभूतपिशाचाद्यास्त्रैलोक्ये विचरन्ति ये ।
दूरादाशु पलायन्ते शिवनामाभिरक्षणात् ।।10।।

अभयंकरनामेदं कवचं पार्वतीपते: ।
भक्त्या बिभर्ति य: कण्ठे तस्य वश्यं जगत्त्रयम् ।।11।।

इमां नारायण: स्वप्ने शिवरक्षां यथाssदिशत् ।
प्रातरुत्थाय योगीन्द्रो याज्ञवल्क्यस्तथाsलिखत् ।।12।।

।।इति श्रीयाज्ञवल्क्यप्रोक्तं शिवरक्षास्तोत्रम् सम्पूर्णम्।।
श्री कृष्णार्पणमस्तु 

भावार्थ : इस शिवरक्षास्तोत्र मन्त्र के मंत्र याज्ञवल्क्य ऋषि हैं, श्रीसदाशिव देवता हैं और अनुष्टुप छन्द है, श्रीसदाशिव की प्रसन्नता के लिए शिवरक्षास्तोत्र के जप में इसका विनियोग किया जाता है. 
१.  देवाधिदेव महादेव का यह परम पवित्र चरित्र चतुर्वर्ग (धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष) – की सिद्धि प्रदान करने वाला दाशन है, यह अतीव उदार है. इसकी उदारता का पार नहीं है. 
२. साधक को गौरी और विनायक से युक्त, पाँच मुख वाले दश भुजाधारी त्र्यम्बक भगवान शिव का ध्यान करके शिवरक्षास्तोत्र का पाठ करना चाहिए. 
३. गंगा को जटाजूट में धारण करने वाले गंगाधर शिव मेरे मस्त्क की, शिरोभूषण के रूप में अर्धचन्द्र को धारण करने वाले अर्धेन्दुशेखर मेरे ललाट की, मदन को ध्वंस करने वाले मदनदहन मेरे दोनों नेत्रों की, सर्प को आभूषण के रूप में धारण करने वाले सर्पविभूषण शिव मेरे कानों की रक्षा करें. 
४. त्रिपुरासुर के विनाशक पुराराति मेरे घ्राण (नाक) की, जगत की रक्षा करने वाले जगत्पति मेरे मुख की, वाणी के स्वामी वागीश्वर मेरी जिह्वा की, शितिकन्धर (नीलकण्ठ) मेरी गर्दन की रक्षा करें. 
५. श्री अर्थात सरस्वती यानी वाणी निवास करती है जिनके कण्ठ में, ऎसे श्रीकण्ठ मेरे कण्ठ की, विश्व की धुरी को धारण करने वाले विश्वधुरन्धर शिव मेरे दोनों कन्धों की, पृथ्वी के भारस्वरुप दैत्यादि का संहार करने वाले भूभारसंहर्ता शिव मेरी दोनों भुजाओं की, पिनाक धारण करने वाले पिनाकधृक मेरे दोनों हाथों की रक्षा करें. 
६. भगवान शंकर मेरे हृदय की और गिरिजापति मेरे जठरदेश की रक्षा करें. भगवान मृत्युंजय मेरी नाभि की रक्षा करें तथा व्याघ्रचर्म को वस्त्ररूप में धारण करने वाले भगवान शिव मेरे कटि-प्रदेश की रक्षा करें. 
७. दीन, आर्त और शरणागतों के प्रेमी – दीनार्तशरणागतवत्सल मेरे समस्त सक्थियों (हड्डियों) की, महेश्वर मेरे ऊरूओं तथा जगदीश्वर मेरे जानुओं की रक्षा करें. 
८. जगत्कर्ता मेरे जंघाओं की, गणाधिप दोनों गुल्फों (एड़ी की ऊपरी ग्रंथि) की, करुणासिन्धु दोनों चरणों की तथा भगवान सदाशिव मेरे सभी अंगों की रक्षा करें. 
९. जो सुकृती साधक कल्याणकारिणी शक्ति से युक्त इस शिवरक्षास्तोत्र का पाठ करता है, वह समस्त कामनाओं का उपभोग कर अन्त में शिवसायुज्य को प्राप्त करता है. 
१०. त्रिलोक में जितने ग्रह, भूत, पिशाच आदि विचरण करते हैं, वे सभी इस शिवऱअस्तोत्र के पाठ मात्र से ही तत्क्षण दूर भाग जाते हैं. 
११. जो साधक भक्तिपूर्वक पार्वतीपति शंकर के इस “अभयंकर” नामक कवच को कण्ठ में धारण करता है, तीनों लोक उसके अधीन हो जाते हैं. 
१२. भगवान नारायण ने स्वप्न में इस “शिवरक्षास्तोत्र” का इस प्रकार उपदेश किया, योगीन्द्र मुनि याज्ञवल्क्य ने प्रात:काल उठकर उसी प्रकार इस स्तोत्र को लिख लिया. 
 


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