गोविंद मर
( राग : सौराष्ट्र ताळ : त्रिताळ )
शरणु मोक्ष प्रदायक सर्व क्लेश विनाशक
शरणु वर गोविंद वृक्षनॆ शरणु निन्नय पादकॆ ॥ शरणु शरणु ॥
नंद पुत्रनॆ लकुमि रमणनॆ धेनु वृंद प्रीयनॆ
इंदु वदननॆ ब्रह्म बीजनॆ कर्ण कुंडल धारनॆ ॥ १ ॥ शरणु शरणु ॥
कोमलांगनॆ क्षात्र तेजनॆ कृपावारिधि देवने
मामनोहर भीमरथि तट गोविदं पुर वासने ॥ २ ॥ शरणु शरणु ॥
पदुमनाभनॆ परम पुरुषने परम ज्योति स्वरूपनॆ
मुददि दार्ढ्यर नुतिप देवने चाप बाणव धरिसिदॆ ॥ ३ ॥ शरणु शरणु ॥
दिविजरॊडॆयने उदधि शयननॆ ऊर्ध्वपुन्ड्रव धरिसिदॆ
भविय श्री अश्वत्थ रूपने सीतारामाराध्यने ॥ ४ ॥ शरणु शरणु ॥
........जानकि राम
शरणु मोक्ष प्रदायक सर्व क्लेश विनाशक
शरणु वर गोविंद वृक्षनॆ शरणु निन्नय पादकॆ ॥ शरणु शरणु ॥
नंद पुत्रनॆ लकुमि रमणनॆ धेनु वृंद प्रीयनॆ
इंदु वदननॆ ब्रह्म बीजनॆ कर्ण कुंडल धारनॆ ॥ १ ॥ शरणु शरणु ॥
कोमलांगनॆ क्षात्र तेजनॆ कृपावारिधि देवने
मामनोहर भीमरथि तट गोविदं पुर वासने ॥ २ ॥ शरणु शरणु ॥
पदुमनाभनॆ परम पुरुषने परम ज्योति स्वरूपनॆ
मुददि दार्ढ्यर नुतिप देवने चाप बाणव धरिसिदॆ ॥ ३ ॥ शरणु शरणु ॥
दिविजरॊडॆयने उदधि शयननॆ ऊर्ध्वपुन्ड्रव धरिसिदॆ
भविय श्री अश्वत्थ रूपने सीतारामाराध्यने ॥ ४ ॥ शरणु शरणु ॥
........जानकि राम
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