आरति धृत रूप अश्वत्थ
पितांबर वनु उट्टु रक्त वल्लिय तॊट्टु । नेताडुव कौस्तुभदिं कमलाकर संतुष्ट
रत्नाकर रंजितमय मंगल किरिटवनिट्टु । कस्तूरि केशरिगळ द्वादश गंधद नोट
जयदेव जयदेव जय लक्ष्मी कांत । गोविंदराजा धृत रूपवु अश्वत्थ ॥ १ ॥
दश अवतारध्धारक ऋषिगण गुण ऋत्विक ।
पसरिप पल्लवनेक द्राविड जन रूपक
वास्तव्यतॆ भीमांक पावनमय तीर्थोदक ।
उत्तर दक्षिण वाहिनि भजकर परिपालक
जयदेव जयदेव जय लक्ष्मी कांत । गोविंदराजा धृत रूपवु अश्वत्थ ॥ २ ॥
विठ्ठ्ल प्रतियुत पूर्वद अनाधिनिधि देव ।
तॊट्टिह मर अश्वत्थद भक्तर प्रेमद भाव
अट्टिदॆ महमल्लन तव रक्षिसि जन सत्व ।
सृष्टिसि सुंदर सत्यद तीर्थांबुधि ठाव
जयदेव जयदेव जय लक्ष्मी कांत ।
गोविंदराजा धृत रूपवु अश्वत्थ ॥ ३ ॥
गोवळ मॊसराटदलि घट रूपद घटना ।
धाविसि दधि घट नश्वर इंतॆंबुदु कवन
गोविंदं गोविंदं गोकुल संकलन ।
पावनरागलु पडॆदु वैकुंठ प्राप्तियनु |
जयदेव जयदेव जय लक्ष्मी कांत ।
गोविंदराजा धृत रूपवु अश्वत्थ ॥ ४ ॥
समचरणंगळ वारिधि आकर्षिसि भक्त । भ्रमरंगळ नामामृत नादव माडुत्त
उमरज मठ अधिकारि सीताराम प्रीत । नमिपॆवु अनुदिन श्रीधर तुळसात्मज सारि
जयदेव जयदेव जय लक्ष्मी कांत । गोविंदराजा धृत रूपवु अश्वत्थ ॥ ५ ॥
.................. तुळसात्मज
पितांबर वनु उट्टु रक्त वल्लिय तॊट्टु । नेताडुव कौस्तुभदिं कमलाकर संतुष्ट
रत्नाकर रंजितमय मंगल किरिटवनिट्टु । कस्तूरि केशरिगळ द्वादश गंधद नोट
जयदेव जयदेव जय लक्ष्मी कांत । गोविंदराजा धृत रूपवु अश्वत्थ ॥ १ ॥
दश अवतारध्धारक ऋषिगण गुण ऋत्विक ।
पसरिप पल्लवनेक द्राविड जन रूपक
वास्तव्यतॆ भीमांक पावनमय तीर्थोदक ।
उत्तर दक्षिण वाहिनि भजकर परिपालक
जयदेव जयदेव जय लक्ष्मी कांत । गोविंदराजा धृत रूपवु अश्वत्थ ॥ २ ॥
विठ्ठ्ल प्रतियुत पूर्वद अनाधिनिधि देव ।
तॊट्टिह मर अश्वत्थद भक्तर प्रेमद भाव
अट्टिदॆ महमल्लन तव रक्षिसि जन सत्व ।
सृष्टिसि सुंदर सत्यद तीर्थांबुधि ठाव
जयदेव जयदेव जय लक्ष्मी कांत ।
गोविंदराजा धृत रूपवु अश्वत्थ ॥ ३ ॥
गोवळ मॊसराटदलि घट रूपद घटना ।
धाविसि दधि घट नश्वर इंतॆंबुदु कवन
गोविंदं गोविंदं गोकुल संकलन ।
पावनरागलु पडॆदु वैकुंठ प्राप्तियनु |
जयदेव जयदेव जय लक्ष्मी कांत ।
गोविंदराजा धृत रूपवु अश्वत्थ ॥ ४ ॥
समचरणंगळ वारिधि आकर्षिसि भक्त । भ्रमरंगळ नामामृत नादव माडुत्त
उमरज मठ अधिकारि सीताराम प्रीत । नमिपॆवु अनुदिन श्रीधर तुळसात्मज सारि
जयदेव जयदेव जय लक्ष्मी कांत । गोविंदराजा धृत रूपवु अश्वत्थ ॥ ५ ॥
.................. तुळसात्मज
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