आद्य कट्टि आचार्यस्य वंश वृक्षः
ॐ
उर्ध्वमूल मधः शाख अश्वत्थः प्राहुरव्ययं
अ उ म
विश्व तेज प्रज्ञ्य
वैश्वानर स्वप्न सुषुप्ति
नाद,बिंदु,घोष तुरीय,आत्म ज्ञ्यानात्म ,परमात्म ,अंतरात्म
अव्यक्त अविनाशी, विश्वरुपि परम पुरुषः
तम तमसत्व सत्वरज रज
समस्त ब्रह्माण्ड जलावृत्त
श्री मन् नारायण
( उग्र ) प्रळयांतक ( सौम्य) सृष्टि नियामक ब्रह्म
श्री मद् गोविंदराज देव जलधि वट पत्र शयन सृष्टि कर्ता उत्पत्ति
अर्धनारि नटेश्वर
अव्यक्त प्रकृति:
द्युलोक अंतरिक्ष भृलोक
अष्टवसु, एकादश रुद्र , द्वादशादित्य , प्रणव
तत्पुरुष अघोर सद्योजात वामदेव मृत्युंजय
इंद्र यम वरुण कुबेर ॐ
अग्नि निऋत वायु ईशान
सृष्टिकर्त ब्रह्म:
स्वयंभ वागीश
ऋग्वेद यजुर्वेद सामवेद अथर्वणवेद
ब्रह्म मानस पुत्र:
मरीचि, अत्रि, आंगिरस, दक्ष, पुलस्त्य, भृगु, प्राचेतस, कृधु, नारद, शतरूपा
पृथ्वि जल अग्नि वायु आकाश मानस
मूलाधार स्वाधिष्ठान मणिपुर अनाहत अंतर्मन बुद्धि
पद्मासन प्रत्याहार वज्रासन प्राणायाम सुखासन अहंकार
गंध रस रूप स्पर्श शब्द निनाह
घ्राण जिव्हा चक्षु चर्म श्रवण चित्त
भद्रता विचारधारा विश्वास चेतन एकाग्र शरीर
शांत तीव्र शक्ति आनंद वैशाल्य भूमि
देव आत्म आत्मीय ऋषि पितर य्योम
अनामिक कनिष्टिक अंगुष्ठ तर्जनि मध्यमा पंचीकरण
त्रिभुवन पितर आब्रह्म: ( सर्वपितृ )
आब्रह्म स्थंभ पर्यंतम् देवर्षि पितृ मानवाः । त्रुप्यम् तु पितरः सर्वे मातृमाता महादयः ॥अतीत कुलकोटिनाम्
सप्त द्वीप निवासिनां । आब्रह्म भुवनाल्लोकाद् इदमस्तु कुशोदकं ॥ ये के चात् समत्कुलेजाता अपुत्रा गोत्रिणो मृताः । ते गृंह्णं तु मयादत्तं सूत्र निष्पीडनोदकं ॥
ब्रह्म मानस पुत्र महर्षि पुलस्त्य:
अग्नि वायु
मित्र वरुण
महर्षि मित्रावरुण :
भगवति ऊर्वशि:
घटोद्भवद्वयोः जननम्
अगस्त्य वशिष्ट
क्रिस्तशक पूर्व 3000 श्रावण शुक्ल पंचमि कृतिका नक्षत्र प्रथम चरण अगस्त्य जन्म स्थळ वारणाशि
रुद्ररौद्राणि पुत्र कार्तिकेयस्य आद्य शिष्य भारद्वाज ऋष्यानुग्रहॆण आयुर्वेद शिक्षण विशेषतः “सिद्ध “
श्री मद् अगस्त्य ऋषि विरचित “ अगस्त्य संहिता ” ग्रंथॆ विद्युत् शक्ति ,वेग वेगोत्कर्ष पदार्थ विज्ञ्यान
नैपुण्यता स्थित समग्र विद्युत् उत्पादन तथा विशेषतः विद्युल्लेपन विषय
संस्थाप्य मृण्मयॆ पात्रॆ ताम्र पत्रं सुसंसकृतं । छादयेच्चिखिग्रिवेणचार्दाभि: काष्टपाम्सुभि: ।
दस्तालोष्टो निधात्वयः पारदाच्चादितस्ततः । संयोगाज्जायतॆ तेजो मित्रावरुण संज्नितं ।
एवं खगोळ शास्त्र ज्योतिर् विज्ञ्यान महर्षि अग्निवेश कृपेन धनुर्विद्या शस्त्र अस्त्र प्राविण्यता
परम पुरुषस्य आराध्य समये इध्मवाह,सांबवाह,सोमवाह,दर्भवाह,यज्न्यवाह,सारवाह कर्म
अगस्त्यस्य प्रथम पत्नि अगस्त्यस्य द्वितीय पत्नि
विदर्भ राजकन्या लोपामुद्रा कावेरा ऋषि कन्या कावेरि
ऋग्वेद दशम मंडल रचयिता नद्य रूपेण लोककल्याणार्थ प्रपद्यंतॆ वहति
प्रथम पुत्र सन्यास आश्रम द्वितीय पुत्र
दार्ढ्य ( धृडदस्यु, भृंगि ) महर्षि अच्युताचार्यैन वंश वृद्धिं गतः
ऋग्वेदस्य आश्वलायन सूत्र शाखल्य शाखाः
स्वाध्याय कर्मः
ब्राह्मण ग्रंथ अरण्यक ग्रंथ उपनिषद ग्रंथ
ऐत्तरॆय ऐत्तरॆय ऐत्तरॆय
पंच महायज्ञ देव ( अग्निहोत्रादि ), ऋषि ( वेदपारायण संध्या गायत्रि जपादि ), पितृ ( तर्पण श्राद्धादि )
मनुष्य ( अतिथि सेवा ), भूत ( वैश्वदेव बलिहरण )
करुणामूर्ति उग्र प्रळयांतक देवतानुग्रहेण काशी स्थित श्री विश्वनाथ रुद्र देवस्य आदेशांतर्गत जन कल्याणार्थ पत्नि पुत्र कळत्र सहित सिद्धाश्रम वियुक्त अन्य मनस्क कुंभोद्भव दक्षिणस्थ पयण श्री रुद्र देवस्य अनुज्ञ्यात् नारदानु ग्रहेण वैष्णवाराधन अगस्त्य ऋष्यस्य कुलदेवता तीव्र उग्र श्रीमद् गोविंद राजस्य मूर्त रूपं रचंति.......
ब्राह्म तेज शापादपि, क्षात्र तेज शरादपि, श्रीमन् महर्षि अगस्त्य करार्चित प्रळयांतक श्रीमद् गोविंदराजदेव
अभयं गदिनं च शंख चक्रं । चापं तुणिरं द्रष्टमयं तदैव ।
तॆनैव रूपेण चतुर्भुजेन । प्रळयांतको भव विश्व मूर्तॆ ॥
गोविंद पुर ग्रामे श्री गोविंदराज सन्निधौ श्री दार्ढ्य ऋष्याश्रम
ॐ श्री गोविंदपुर वराधीशाय विद्ह्महे ।महाश्वत्थरूपाय धीमहि तन्नो श्री लक्ष्मी गोविंदराज प्रचोदयात् ॥
दक्षिण (पूर्वाभिमुखि) ( मद्ध्य) पूर्वाभिमुखि उत्तर (पूर्वाभिमुखि) भगवति श्री माता श्रीमद् गोविंद राजदेव भगवति श्री माता
चंद्रलांबादेवि प्रसीदतु लक्ष्मी देवि प्रसीदतु
उग्र स्वरूपि खड्गधारि सौम्य स्वरूप अभय
( शंख चक्र गदा चाप बाण धारिणि ) ( शंख चक्र गदा पद्म कलश धारिणि )
उत्तुंग शिला पीठासनस्थ ( कट्टी )
श्रीमद् गोविंद राजदेवस्य प्रतीक द्रविड रूपक अश्वत्थ तथा निंबक वृक्ष द्वय सम्मुखॆ लिंग स्वरूपि रुद्र देव ,मुख्य प्राणदेव ,एवं नागद्वय शेषदेव ,श्री क्षेत्र देवस्य दक्षिणांगॆ देवि चंद्रला,वाम भागे देवि लक्षमी दक्षिण वाही भीमरथि वहंति तस्य स्थिथॆ अगस्त्य पुत्र दार्ढ्यऋष्याश्रम स्थापितः
अगस्तिर्दार्ढ्यच्युत इद्ह्मवाहेति त्रिप्रवरान्वित अगस्त्य गोत्रोत्पन्न वंशवाहि
य्योम मृत्यु पाताळ
ऋग्वेदि , भरत देशस्थ, वैष्णव
अनभिज्ञ्य पूर्वजः
समस्त: वे,शा, सं. 1 श्री वेदव्यासाचार्याः 2 श्री गोविन्दाचार्याः 3 श्री श्रीधराचार्याः
4 श्री मुरलिधराचार्या 5 श्री गोवर्धनाचार्याः 6 श्री अच्युताचार्याः , 7 श्री नरसिंहाचार्याः , 8 श्री पाण्डुरङ्गाचार्याः ,
9 श्री जनार्दनाचार्यः 10 श्री विठ्ठलाचार्या: 11 श्री वासुदेवाचार्याः 12 श्री अनिरुद्धाचाचार्यः 13 श्री प्रद्युम्नाचार्याः 14 श्रीमाधवाचार्याः, 15 श्री त्रिविक्रमाचार्याः 16 श्री मध्वाचार्या:
( 17 ) ( ज्ञ्यात प्रथम पूर्वज ) आद्य श्री कट्टी अनंताचार्यः पत्नि सौ .वारुणिदेवि
प्रथमपुत्र श्री प्रह्लादाचार्यः ( 18 ) द्वितीयपुत्र श्री कट्टी रामाचार्यः तृतीयपुत्र श्री शेषाचार्य
उमर्जि परिवार विजयपुर पत्नि सौ रमाबायी ( पुर्वाश्रम नाम )
च पूर्वज: संन्यास आश्रम स्वीकार
अज्ञ्यात उत्तरादिमठ
शाखाधिकारि
श्री कट्टी रामाचार्यस्य एकैक पुत्र ( 19 ) श्री कट्टी द्वैपायनाचार्यः (१८५७) पत्नि भागीरथिबायी ( उमरज ग्राम जोषि )
कृष्णाचार्यः अनन्ताचार्य उर्फ बंडोपंत सीतारामाचार्यः
पत्नि सौ. गंगाबायी पुरोहित [ .............. सशस्त्र क्रांति कारकः .............. ] पत्नि सौ.तुळसाबायी उमरज ( ता,इंडि ) हळ्ळि ता. जत्त निवरगि ( ता,इंडि )
( १८७५ ) ( १८७७ ) ( १८७९-१९०८ ) ( १८८१-१९०८ ) ( १८८३-१९०७ ) ( १८८५ – १९७५ )
कट्टि श्री सीतारामाचार्यः पत्नि सौ तुळसादेवि (1885-1975) निवरगी विजापुर
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वेदव्यासाचार्यः (21) श्रीधराचार्यः अरुंधति मुरलीधराचार्यः जनार्दन विट्ठलराज वेंकट वासुदेव
ब्रह्मचारी (१९३३-२०१५ )
सौ इन्दिरादेवि मृत सौ विजयादेवि सौ वन्दनादेवि सौ रुक्मिणिदेवि मृत सौ गायत्रिदेवि
| श्रीनिवास पुरुषोत्तम गिरिश सुजयिंद्र प्रसन्नवदन
| सौ पद्मावती सौ धनश्री सौ गिरीजा सौ परिमळ सौ सुप्रिया
| विनय गोविंद प्रथम रघुनंदन सर्वज्ञ
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(22) सुधीर द्वैपायन वेणिमाधव चन्नकेशव
सौ जयश्री सौ दीपिका सौ प्रयागराजश्री सौ अश्विनि
| वाणि वादिराज प्रगति वेदांत उपेंद्र प्रज्ञा प्रतिक्षा ---------------------------------------------
सीताराम घनश्याम त्रिविक्रम
सौ श्री तुलसि सौ जाह्नवी सौ.त्रिवेणी
साक्षी श्रीधर श्रेया सात्विक सुमंत
साक्षी श्रीधर श्रेया सात्विक सुमंत
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