Monday, August 23, 2021

MONTH WISE SPECIAL FESTIVALS प्रति मासपरत्वॆ दिनविशेष

ಪ್ರತಿ ಮಾಸ ಪರತ್ವೇ ದಿನ ವಿಶೇಷಗಳು


हिन्दू धर्म में सैंकड़ों त्योहार है। धनतेरस, दीपावली, होली, नवरात्रि, दशहरा, महाशिवरात्री, गणेश चतुर्थी, रक्षाबंधन, कृष्णजन्माष्टमी, करवां चौथ, रामनवमी, छठ, वसंत पंचमी, मकर संक्रांति, दुर्गा पूजा, भाईदूज, उगादि, ओणम, पोंगल, लोहड़ी, हनुमान जयंती, गोवर्धन पूजा, काली पूजा, विष्णु पूजा, कार्तिक पूर्णिमा, नरक चतुर्थी, रथ या‍त्रा, गौरी हब्बा उत्सव, महेश संक्रांति, हरतालिका तीज, थाईपुसम, श्राद्ध, कुंभ, ब्रह्मोत्सव,  आदि।...लेकिन इनमें से कुछ त्योहार है, कुछ पर्व, कुछ व्रत, पूजा और कुछ उपवास। उक्त सभी में फर्क करना चाहिए।

हिंदू त्योहार कुछ खास ही हैं लेकिन भारत के प्रत्येक समाज या प्रांत के अलग-अलग त्योहार, उत्सव, पर्व, परंपरा और रीतिरिवाज हो चले हैं। यह लंबे काल और वंश परम्परा का परिणाम ही है कि वेदों को छोड़कर हिंदू अब स्थानीय स्तर के त्योहार और विश्वासों को ज्यादा मानने लगा है। सभी में वह अपने मन से नियमों को चलाता है। विशेषतः सभी त्योहार कृषि, प्राकृतिक, नैसर्गिक नियमों को ध्यान में रखते हुए प्राचीन काल से मनातें आ रहे हैं। 

उन त्योहार, पर्व या उत्सवों को मनाने का महत्व अधिक है जिनकी उत्पत्ति स्थानीय परम्परा, व्यक्ति विशेष या संस्कृति से न होकर जिनका उल्लेख वैदिक धर्मग्रंथ, धर्मसूत्र और आचार संहिता में मिलता है। ऐसे कुछ पर्व हैं और इनके मनाने के अपने नियम भी हैं। इन पर्वों में सूर्य-चंद्र की संक्रांतियों और कुम्भ का अधिक महत्व है। सूर्य संक्रांति में मकर सक्रांति का महत्व ही अधिक माना गया है।

मकर संक्रांति : मकर सक्रांति देश के लगभग सभी राज्यों में अलग-अलग सांस्कृतिक रूपों में मनाई जाती है। लोग भगवान सूर्य का आशीर्वाद लेने के लिए गंगा और प्रयाग जैसी पवित्र नदियों में डुबकियां लगाते हैं, पतंग उड़ाते हैं गाय को चारा खिलाते हैं। इस ‍दिन तिल और गुड़ खाने का महत्व है। जनवरी में मकर संक्रांति के अलावा शुक्ल पक्ष में बसंत पंचमी को भी मनाया जाता।

श्रावण मास : इसके अलावा हिन्दू धर्म के प्रमुख तीन देवताओं के पर्व को मनाया जाता है उनमें शिव के लिए महाशिवरात्रि और श्रावण मास प्रमुख है और उनकी पत्नी पार्वती के लिए चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि प्रमुख त्योहार है। इसके अलावा शिव पुत्र भगवान गणेश के लिए गणेश चतुर्थी का पर्व गणेशोत्सव का नाम से मनाया जाता है जो भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को आता है।

कार्तिक मास : भगवान विष्णु के लिए कार्तिक मास नियु‍क्त है। इसके अलावा सभी एकादशी, चतुर्थी और ग्यारस को विष्णु के लिए उपवास रखा जाता है। देवोत्थान एकादशी उनमें प्रमुख है।

आषाढ़ शुक्ल एकादशी को भगवान विष्णु क्षीरसागर में चार मास के लिए योगनिद्रा में लीन हो जाते हैं। कार्तिक शुक्ल एकादशी को चातुर्मास संपन्न होता है और इसी दिन भगवान अपनी योगनिद्रा से जागते हैं। भगवान के जागने की खुशी में ही देवोत्थान एकादशी का व्रत संपन्न होता है। इसी माह में विष्णु की पत्नी लक्ष्मी के लिए दीपावली का त्योहार प्रमुखता से मनाया जाता है।

पुरुषोत्तम मास : इसे अधिक मास भी कहते हैं। धार्मिक शास्त्र और पुराणों के अनुसार हर तीसरे साल अधिक मास यानी पुरुषोत्तम मास की उत्पत्ति होती है। इस मास में भगवान विष्णु का पूजन, जप, तप, दान से अनंत पुण्यों की प्राप्ति होती है। खास तौर पर भगवान कृष्‍ण, भगवद्‍गीता, श्रीराम की आराधना, कथा वाचन और विष्‍णु भगवान की उपासना की जा‍ती है। इस माह भर में उपासना करने का अपना अलग ही महत्व माना गया है। 

राम नवमी : यह त्योहार भगवान विष्णु के सातवें जन्म के उपलक्ष्य में मनाया जाता है, भगवान श्रीराम जो चैत्र मास के नौवें दिन पैदा हुए थे। श्रीराम ने दानव राजा रावण को मारा था। यह त्योहार अप्रैल में आता है। 

कृष्ण जन्माष्टमी : यह त्योहार कृष्ण जयंती और कृष्णाष्टमी के नाम से भी प्रसिद्ध है, यह त्योहार भगवान कृष्ण के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। यह त्योहार अगस्त में आता है।

हनुमान जयंती : पंडितों और ज्योतिषियों के अनुसार चैत्र माह की पूर्णिमा पर भगवान राम की सेवा के उद्देश्य से भगवान शंकर के ग्यारहवें रुद्र ने अंजना के घर हनुमान के रूप में जन्म लिया था। इसी दिन हनुमान जयंती मनाई जाती है। इस दिन का हिन्दू धर्म में सबसे ज्यादा महत्व माना जाता है।

श्राद्ध-तर्पण : परमेश्वर, देवी-देवताओं के अलावा हिन्दू धर्म में पितृ पूजन नहीं, श्राद्ध करने का महत्व है। पितरों के लिए श्रद्धा से किए गए मुक्ति कर्म को श्राद्ध कहते हैं तथा तृप्त करने की क्रिया और देवताओं, ऋषियों या पितरों को तंडुल या तिल मिश्रित जल अर्पित करने की क्रिया को तर्पण कहते हैं। तर्पण करना ही पिंडदान करना है। श्राद्ध पक्ष का सनातन हिंदू धर्म में बहुत ही महत्व माना गया है।

गुरुपूर्णिमा : परमेश्वर, देवी-देवता, पितर के अलावा हिन्दू धर्म में गुरु का भी महत्व है। आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा या व्यास पूर्णिमा कहते हैं। भारत भर में यह पर्व बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। प्राचीनकाल में जब विद्यार्थी गुरु के आश्रम में निःशुल्क शिक्षा ग्रहण करता था तो इसी दिन श्रद्धा भाव से प्रेरित होकर अपने गुरु का पूजन करके उन्हें अपनी शक्ति सामर्थ्यानुसार दक्षिणा देकर कृतकृत्य होता था।

त्योहार और मौसम का संबंध : वेदों में प्रकृति को ईश्वर का साक्षात रूप मानकर उसके हर रूप की वंदना की गई है। इसके अलावा आसमान के तारों और आकाश मंडल की स्तुति कर उनसे रोग और शोक को मिटाने की प्रार्थना की गई है। धरती और आकाश की प्रार्थना से हर तरह की सुख-समृद्धि पाई जा सकती है। इसीलिए ऋषियों ने प्रकृति अनुसार जीवन-यापन करने की सलाह दी। साथ ही उन्होंने वर्ष में होने वाले ऋतु परिवर्तन चक्र को समझकर व्यक्ति को उस दौरान उपवास और उत्सव करने के नियम बनाए ताकि मौसम परिवर्तन के नुकसान से बचकर उसका लुत्फ उठाया जा सके।

वर्ष में 6 ऋतुएं होती हैं- 1. शीत-शरद, 2. बसंत, 3. हेमंत, 4. ग्रीष्म, 5. वर्षा और 6. शिशिर। ऋतुओं ने हमारी परंपराओं को अनेक रूपों में प्रभावित किया है। बसंत, ग्रीष्म और वर्षा देवी ऋतु हैं तो शरद, हेमंत और शिशिर पितरों की ऋतु है।

वसंत से नववर्ष की शुरुआत होती है। वसंत ऋतु चैत्र और वैशाख माह अर्थात मार्च-अप्रैल में, ग्रीष्म ऋतु ज्येष्ठ और आषाढ़ माह अर्थात मई जून में, वर्षा ऋतु श्रावण और भाद्रपद अर्थात जुलाई से सितम्बर, शरद ऋतु अश्‍विन और कार्तिक माह अर्थात अक्टूबर से नवम्बर, हेमन्त ऋतु मार्गशीर्ष और पौष माह अर्थात दिसंबर से 15 जनवरी तक और शिशिर ऋतु माघ और फाल्गुन माह अर्थात 16 जनवरी से फरवरी अंत तक रहती है।

जिस तरह इन मौसम में प्रकृति में परिवर्तन होता है उसी तरह हमारे शरीर और मन-मस्तिष्क में भी परिवर्तन होता है। और, जिस तरह प्रकृति के तत्व जैसे वृक्ष-पहाड़, पशु-पक्षी आदि सभी उस दौरान प्रकृति के नियमों का पालन करते हुए उससे होने वाली हानि से बचने का प्रयास करते हैं उसी तरह मानव को भी ऐसा करने की ऋषियों ने सलाह दी। उस दौरान ऋषियों ने ऐसे त्योहार और नियम बनाए जिनका कि पालन करने से व्यक्ति सुखमय जीवन व्यतीत कर सके।

बसंत ऋतु : हिन्दू धर्म के पहले माह की शुरुआत चैत्र माह से होती है। प्राचीन समय से ही यह माह सभी सभ्यताओं में नववर्ष की शुरुआत का माह माना जाता है। चैत और बैसाख में बसंत ऋतु अपनी शोभा का परिचय देती है। यह ऋतु अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार मार्च और अप्रैल में रहती है।

इस ऋतु में होली, धुलेंडी, रंगपंचमी, बसंत पंचमी, नवरात्रि, रामनवमी, नव-संवत्सर, हनुमान जयंती और गुरु पूर्णिमा उत्सव मनाए जाते हैं। इनमें से रंगपंचमी और बसंत पंचमी जहां मौसम परिवर्तन की सूचना देते हैं वहीं नव-संवत्सर से नए वर्ष की शुरुआत होती है। इसके अलावा होली-धुलेंडी जहां भक्त प्रहलाद की याद में मनाई जाती हैं वहीं नवरात्रि मां दुर्गा का उत्सव है तो दूसरी ओर रामनवमी, हनुमान जयंती और बुद्ध पूर्णिमा के दिन दोनों ही महापुरुषों का जन्म हुआ था।

ग्रीष्म ऋतु : ज्येष्ठ और आषाढ़ 'ग्रीष्म ऋतु' के मास हैं। इसमें सूर्य उत्तरायण की ओर बढ़ता है। ग्रीष्म ऋतु प्राणीमात्र के लिए कष्टकारी अवश्य है, पर तप के बिना सुख-सुविधा को प्राप्त नहीं किया जा सकता। यह ऋतु अंग्रेजी कैलेंडर अनुसार मई और जून में रहती है।

ग्रीष्म माह में अच्छा भोजन और बीच-बीच में व्रत करने का प्रचलन रहता है। इस माह में निर्जला एकादशी, वट सावित्री व्रत, शीतलाष्टमी, देवशयनी एकादशी और गुरु पूर्णिमा आदि त्योहार आते हैं। गुरु पूर्णिमा के बाद से श्रावण मास शुरू होता है और इसी से ऋतु परिवर्तन हो जाता है और वर्षा ऋतु का आगमन हो जाता है।

वर्षा ऋतु : श्रावण और भाद्रपद 'वर्षा ऋतु' के मास हैं। वर्षा नया जीवन लेकर आती है। मोर के पांव में नृत्य बंध जाता है। संपूर्ण श्रावण माह में उपवास रखा जाता है। यह माह उसी तरह है जिस तरह की मुस्लिमों में रोजों के लिए रमजान होता है। यह माह जुलाई-सितंबर में पड़ता है। इस ऋतु के तीज, रक्षाबंधन और कृष्ण जन्माष्टमी सबसे बड़े त्योहार हैं। 

शरद ऋतु : आश्विन और कार्तिक के मास 'शरद ऋतु' के मास हैं। शरद ऋतु प्रभाव की दृष्टि से बसंत ऋतु का ही दूसरा रूप है। वातावरण में स्वच्छता का प्रसार दिखाई पड़ता है। यह ऋति अक्टूबर से नवंबर के बीच रहती है। इस ऋतु के त्योहार हैं- श्राद्ध पक्ष, नवरात्रि, दशहरा, करवा चौथ।

इस ऋतु में ही शारदीय नवरात्रि की धूम रहती है। जगह-जगह उत्सव का माहौल रहता है। इस ऋतु के अन्य व्रत और उत्सव- छठ पूजा, गोपाष्टमी, अक्षय नवमी, देवोत्थान एकादशी, बैकुंठ चतुर्दशी, कार्तिक पूर्णिमा, उत्पन्ना एकादशी, विवाह पंचमी, स्कंद षष्ठी आदि व्रत-त्योहार भी आते हैं।

आषाढ़ शुक्ल एकादशी को भगवान विष्णु क्षीरसागर में चार मास के लिए योगनिद्रा में लीन हो जाते हैं। कार्तिक शुक्ल एकादशी को चातुर्मास संपन्न होता है और इसी दिन भगवान अपनी योग निद्रा से जागते हैं। भगवान के जागने की खुशी में ही देवोत्थान एकादशी का व्रत इसी ऋतु में संपन्न होता है।

हेमंत ऋ‍तु : प्राचीनकाल से शरद पूर्णिमा को बेहद महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है। शरद पूर्णिमा से हेमंत ऋतु की शुरुआत होती है। शीत ऋतु दो भागों में विभक्त है। हल्के गुलाबी जाड़े को हेमंत ऋतु का नाम दिया गया है और तीव्र तथा तीखे जाड़े को शिशिर। यह दिसंबर से लगभग 15 जनवरी तक रहती है।

यह ऋतु हिन्दू माह के मार्गशीर्ष और पौष मास मास के बीच रहती है। इस ऋतु में शरीर प्राय: स्वस्थ रहता है। पाचनशक्ति बढ़ जाती है। हेमंत ऋतु में कार्तिक, अगहन और पौष मास पड़ेंगे। कार्तिक मास में करवा चौथ, धनतेरस, रूप चतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा, भाई दूज आदि तीज-त्योहार पड़ेंगे, वहीं कार्तिक स्नान पूर्ण होकर दीपदान होगा। 

शिशिर ऋतु : यह ऋतु हिन्दू माह के माघ और फाल्गुन के महीने अर्थात पतझड़ माह में आती है। इस ऋतु में प्रकृति पर बुढ़ापा छा जाता है। वृक्षों के पत्ते झड़ने लगते हैं। चारों ओर कुहरा छाया रहता है। इस ऋतु से ऋतु चक्र के पूर्ण होने का संकेत मिलता है और फिर से नववर्ष और नए जीवन की शुरुआत की सुगबुगाहट सुनाई देने लगती है।

अंग्रेजी माह अनुसार यह ऋ‍तु 15 जनवरी से पूरे फरवरी माह तक रहती है। इस ऋतु में मकर संक्रांति का त्योहार आता है, जो हिन्दू धर्म का सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है। इस दिन सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण होना शुरू होता है। तिल अगर गुड का लड्डु, तिल शक्कर का रंगीन हलवा, रेवडि इत्यादि आपंस में बांटकर निंदा,मनस्ताप, द्वेष सभीको भूलकर जीवन व्यतीत करने का प्रयास । इसी ऋतु में हिन्दू मास फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को महाशिवरात्रि का महापर्व मनाया जाता है।

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ಹಿಂದೂ ಧರ್ಮದಲ್ಲಿ ನೂರಾರು ಹಬ್ಬಗಳಿವೆ.  ಧನತ್ರಯೋದಶಿ, ದೀಪಾವಳಿ, ಹೋಳಿ, ನವರಾತ್ರಿ, ದಸರಾ, ಮಹಾಶಿವರಾತ್ರಿ, ಗಣೇಶ ಚತುರ್ಥಿ, ರಕ್ಷಾಬಂಧನ, ಕೃಷ್ಣ ಜನ್ಮಾಷ್ಟಮಿ,ಭೀಮನ ಅಮಾವಾಸ್ಯೆ, ರಾಮ ನವಮಿ, ಛಟ್ಟಿ ಹುಣ್ಣಿಮೆ, ವಸಂತ ಪಂಚಮಿ, ಮಕರ ಸಂಕ್ರಾಂತಿ, ದುರ್ಗಾ ಪೂಜೆ, ಭಾವಬಿದಿಗೆ, ಯುಗಾದಿ, ಓಣಂ, ಪೊಂಗಲ್, ಗೋವರ್ಧನ ಪೂಜೆ , ಕಾಳಿ ಪೂಜೆ , ವಿಷ್ಣು ಪೂಜೆ , ಕಾರ್ತಿಕ ಪೂರ್ಣಿಮೆ , ನರಕ ಚತುರ್ಥಿ , ರಥಸಪ್ತಮಿ, ಗೌರಿ ಹಬ್ಬ ಉತ್ಸವ , ಹರತಾಳಿಕಾ , ಶ್ರಾದ್ಧ , ಕುಂಭ , ಬ್ರಹ್ಮೋತ್ಸವ , ಇತ್ಯಾದಿ ... ಆದರೆ ಇವುಗಳಲ್ಲಿ ಕೆಲವು ಹಬ್ಬಗಳು, ಕೆಲವು ವ್ರತ, ಪೂಜೆ ಮತ್ತು ಕೆಲವು ಉಪವಾಸ.  ಮೇಲಿನ ಎಲ್ಲದರಲ್ಲೂ ಬೇರೆ ಬೇರೆ ಆರಾಧನೆಗಳನ್ನು ಮಾಡುವುದು ಅವಶ್ಯಕ.

ಹಿಂದೂ ಹಬ್ಬಗಳು ವಿಶೇಷವಾದವು ಭಾರತದ ಪ್ರತಿಯೊಂದು ಸಮುದಾಯವು ತನ್ನದೇ ಆದ ಹಬ್ಬಗಳು, ಆಚರಣೆಗಳು, ಸಂಪ್ರದಾಯಗಳು ರೂಢಿ ಪರಂಪರೆಗಳನ್ನು ಹೊಂದಿವೆ ಮತ್ತು ಅದರ ಪ್ರಾಂತ್ಯದ ಪದ್ಧತಿಗಳನ್ನು ಹೊಂದಿದೆ.  ವೇದಗಳ ಹೊರತಾಗಿ, ಹಿಂದೂಗಳು ಈಗ ಸ್ಥಳೀಯ ಮಟ್ಟದ ಹಬ್ಬಗಳು ಮತ್ತು ನಂಬಿಕೆಗಳನ್ನು ಹೆಚ್ಚು ಗೌರವಿಸುತ್ತಾರೆ ಎಂಬುದು ದೀರ್ಘಕಾಲದ ಮತ್ತು ವಂಶಾವಳಿಯ ಸಂಪ್ರದಾಯದ ಪರಿಣಾಮವಾಗಿದೆ.   ಅದರಲ್ಲೂ ಎಲ್ಲ ಹಬ್ಬಗಳೂ ಪ್ರಾಚೀನ ಕಾಲದಿಂದಲೂ ಕೃಷಿ, ಪ್ರಾಕೃತಿಕ, ನೈಸರ್ಗಿಕ ನಿಯಮಗಳನ್ನು ಗಮನದಲ್ಲಿಟ್ಟುಕೊಂಡು ಆಚರಿಸಲಾಗುತ್ತದೆ.

ವೈದಿಕ ಗ್ರಂಥಗಳು, ಧರ್ಮ ಸೂತ್ರಗಳು ಮತ್ತು ನೀತಿ ಸಂಹಿತೆಗಳಲ್ಲಿ ಉಲ್ಲೇಖಿಸಲಾದ ಸ್ಥಳೀಯ ಸಂಪ್ರದಾಯ, ನಿರ್ದಿಷ್ಟ ವ್ಯಕ್ತಿಯ ಸಂಸ್ಕೃತಿಯ ಮೂಲದಿಂದಲ್ಲದ ಮನಸ್ಸಿನಲ್ಲಿ ಆ ಹಬ್ಬಗಳು ಮತ್ತು ಆಚರಣೆಗಳು ಹೆಚ್ಚು ಮುಖ್ಯವಾಗಿವೆ.  ಅಂತಹ ಕೆಲವು ಹಬ್ಬಗಳಿವೆ ಮತ್ತು ಅವುಗಳನ್ನು ಆಚರಿಸಲು ತಮ್ಮದೇ ಆದ ನಿಯಮಗಳಿವೆ.   ಈ ಹಬ್ಬಗಳಲ್ಲಿ ಸೂರ್ಯ-ಚಂದ್ರ ಸಂಕ್ರಾಂತಿ ಮತ್ತು ಕುಂಭವು ಹೆಚ್ಚು ಪ್ರಾಮುಖ್ಯತೆಯನ್ನು ಹೊಂದಿದೆ.  ಸೂರ್ಯ ಸಂಕ್ರಾಂತಿಗಿಂತ ಮಕರ ಸಂಕ್ರಾಂತಿಯನ್ನು ಪ್ರಮುಖವಾಗಿ ಪರಿಗಣಿಸಲಾಗಿದೆ.

ಮಕರ ಸಂಕ್ರಾಂತಿ: ದೇಶದ ಬಹುತೇಕ ಎಲ್ಲಾ ರಾಜ್ಯಗಳಲ್ಲಿ ಮಕರ ಸಂಕ್ರಾಂತಿಯನ್ನು ವಿವಿಧ ಸಾಂಸ್ಕೃತಿಕ ರೂಪಗಳಲ್ಲಿ ಆಚರಿಸಲಾಗುತ್ತದೆ.  ಜನರು ಗಂಗಾ ಮತ್ತು ಪ್ರಯಾಗ ದಂತಹ ಪವಿತ್ರ ನದಿಗಳಲ್ಲಿ ಸ್ನಾನ ಮಾಡುತ್ತಾರೆ, ಗಾಳಿಪಟಗಳನ್ನು ಹಾರಿಸುತ್ತಾರೆ ಮತ್ತು ಸೂರ್ಯನ ಆಶೀರ್ವಾದವನ್ನು ಪಡೆಯಲು ಹಸುಗಳಿಗೆ ಆಹಾರವನ್ನು ನೀಡುತ್ತಾರೆ.  ಈ ದಿನ ಎಳ್ಳು ಮತ್ತು ಬೆಲ್ಲವನ್ನು ತಿನ್ನುವುದು ಮುಖ್ಯ.  ಜನವರಿಯಲ್ಲಿ ಮಕರ ಸಂಕ್ರಾಂತಿಯನ್ನು ಹೊರತುಪಡಿಸಿ, ವಸಂತ ಪಂಚಮಿಯನ್ನು ಶುಕ್ಲ ಪಕ್ಷದಲ್ಲಿಯೂ ಆಚರಿಸಲಾಗುತ್ತದೆ.

 ಶ್ರಾವಣ ಮಾಸ: ಹಿಂದೂ ಧರ್ಮದ ಮೂರು ಪ್ರಮುಖ ದೇವತೆಗಳ ಹಬ್ಬಗಳನ್ನು ಆಚರಿಸಲಾಗುತ್ತದೆ, ಅವುಗಳಲ್ಲಿ ಮಹಾಶಿವರಾತ್ರಿ ಮತ್ತು ಶ್ರಾವಣ ಮಾಸವು ಶಿವನಿಗೆ ಮುಖ್ಯವಾಗಿದೆ ಮತ್ತು ಅವನ ಪತ್ನಿ ಪಾರ್ವತಿಗೆ ಚೈತ್ರ ನವರಾತ್ರಿ ಮತ್ತು ಶಾರದೀಯ ನವರಾತ್ರಿ ಪ್ರಮುಖ ಹಬ್ಬಗಳು.  ಇದಲ್ಲದೆ, ಭಾದ್ರಪದ ಶುಕ್ಲ ಪಕ್ಷದ ಚತುರ್ದಶಿಯಂದು ಬರುವ ಅವರ ಮಗನಾದ ಗಣೇಶನಿಗೆ ಗಣೇಶ ಚತುರ್ಥಿಯನ್ನು ಗಣೇಶೋತ್ಸವ  ರಾಷ್ಟ್ರೀಯ ಉತ್ಸವವೆಂದು ಆಚರಿಸಲಾಗುತ್ತದೆ.

ಕಾರ್ತಿಕ ಮಾಸ: ಭಗವಾನ್ ವಿಷ್ಣುವಿಗೆ ಕಾರ್ತಿಕ ಮಾಸವನ್ನು ನಿಗದಿಪಡಿಸಲಾಗಿದೆ.  ಇದಲ್ಲದೆ ವಿಷ್ಣುವಿಗೆ ಎಲ್ಲಾ ಏಕಾದಶಿ, ಚತುರ್ಥಿ ಮತ್ತು ಏಕಾದಶಿಗಳಂದು ಉಪವಾಸವನ್ನು ಆಚರಿಸಲಾಗುತ್ತದೆ.  ಅವುಗಳಲ್ಲಿ ದೇವೋತ್ಥಾನ ಏಕಾದಶಿ ಪ್ರಮುಖವಾದುದು.

ಆಷಾಢ ಶುಕ್ಲ ಏಕಾದಶಿಯಂದು ಭಗವಾನ್ ವಿಷ್ಣುವು ಯೋಗನಿದ್ರೆಯಲ್ಲಿ ನಾಲ್ಕು ತಿಂಗಳ ಕಾಲ ಕ್ಷೀರಸಾಗರದಲ್ಲಿ ಪವಡಿಸಿರುತ್ತಾನೆ.  ಚಾತುರ್ಮಾಸ ಕಾರ್ತಿಕ ಶುಕ್ಲ ಏಕಾದಶಿಯಂದು ಕೊನೆಗೊಳ್ಳುತ್ತದೆ ಮತ್ತು ಈ ದಿನ ದೇವರು ತನ್ನ ಯೋಗ ನಿದ್ರೆಯಿಂದ ಎಚ್ಚರಗೊಳ್ಳುತ್ತಾನೆ.  ದೇವೋತ್ಥಾನ ಏಕಾದಶಿಯ ಉಪವಾಸವು ದೇವರ ಜಾಗೃತಿಯ ಸಂತೋಷದಲ್ಲಿ ಕೊನೆಗೊಳ್ಳುತ್ತದೆ.  ಈ ತಿಂಗಳಲ್ಲಿ ವಿಷ್ಣುವಿನ ಪತ್ನಿ ಲಕ್ಷ್ಮಿಗೆ ದೀಪಾವಳಿ ಹಬ್ಬವನ್ನು ಪ್ರಮುಖವಾಗಿ ಆಚರಿಸಲಾಗುತ್ತದೆ.

ಪುರುಷೋತ್ತಮ ಮಾಸ: ಇದನ್ನು ಅಧಿಕ ಮಾಸ ಎಂದೂ ಕರೆಯುತ್ತಾರೆ.  ಧಾರ್ಮಿಕ ಗ್ರಂಥಗಳು ಮತ್ತು ಪುರಾಣಗಳ ಪ್ರಕಾರ, ಅಧಿಕ ಮಾಸ ಅಂದರೆ ಪುರುಷೋತ್ತಮ ಮಾಸ ಪ್ರತಿ ಮೂರನೇ ವರ್ಷಕ್ಕೆ ಬರುತ್ತದೆ.  ಈ ಮಾಸದಲ್ಲಿ ಭಗವಾನ್ ವಿಷ್ಣುವಿನ ಆರಾಧನೆ, ಜಪ, ತಪಸ್ಸು ಮತ್ತು ದಾನ ಮಾಡುವುದರಿಂದ ಅನಂತ ಪುಣ್ಯ ಪ್ರಾಪ್ತಿ ಯಾಗುತ್ತದೆ.  ವಿಶೇಷವಾಗಿ ಶ್ರೀಕೃಷ್ಣನ ಪೂಜೆ, ಭಗವದ್ಗೀತೆ, ಶ್ರೀರಾಮ, ಕಥೆ ಹೇಳುವುದು ಮತ್ತು ವಿಷ್ಣುವಿನ ಆರಾಧನೆಯನ್ನು ಮಾಡಲಾಗುತ್ತದೆ.  ಈ ಮಾಸದಲ್ಲಿ ಪೂಜೆ ಮಾಡುವುದು ತನ್ನದೇ ಆದ ಪ್ರಾಮುಖ್ಯತೆಯನ್ನು ಹೊಂದಿದೆ ಎಂದು ಪರಿಗಣಿಸಲಾಗಿದೆ.

ರಾಮ ನವಮಿ: ಚೈತ್ರ ಮಾಸದ ಒಂಬತ್ತನೇ ದಿನದಂದು ಜನಿಸಿದ ಭಗವಾನ್ ವಿಷ್ಣುವಿನ ಏಳನೇ ಜನ್ಮದ ನೆನಪಿಗಾಗಿ ಈ ಹಬ್ಬವನ್ನು ಆಚರಿಸಲಾಗುತ್ತದೆ.  ಶ್ರೀರಾಮನು ರಾಕ್ಷಸ ರಾಜ ರಾವಣನನ್ನು ಕೊಂದನು.  ಪ್ರತಿಯೊಬ್ಬರು ತಮ್ಮ ತಮ್ಮ ಜೀವನದಲ್ಲಿ ಮಾತಾಪಿತರ ಸೇವೆ, ಬಂಧುಪ್ರೇಮ, ವ್ರತಸ್ಥ ಜೀವನ,ಏಕ ಪತ್ನಿ ವ್ರತ , ಮರ್ಯಾದಾ, ನಿಯಮಿತ ಸೀಮೆಯ ಮೇರೆ ಮೀರದ ತೆರ ವರ್ತಿಸುವುದು ಹೇಗೆ ಎಂದು ತಿಳಿಪಡಿಸುವ ರೀತಿ ಹೇಳಲಾಗಿದೆ ಈ ಹಬ್ಬವು ಏಪ್ರಿಲ್‌ನಲ್ಲಿ ಬರುತ್ತದೆ.

ಕೃಷ್ಣ ಜನ್ಮಾಷ್ಟಮಿ: ಈ ಹಬ್ಬವನ್ನು ಕೃಷ್ಣ ಜಯಂತಿ ಮತ್ತು ಕೃಷ್ಣಾಷ್ಟಮಿ ಎಂದೂ ಕರೆಯಲಾಗುತ್ತದೆ, ಈ ಹಬ್ಬವನ್ನು ಶ್ರೀ ಕೃಷ್ಣನ ಜನ್ಮದಿನವಾಗಿ ಆಚರಿಸಲಾಗುತ್ತದೆ.  ಧರ್ಮ ನಾಶ, ಶಿಷ್ಟರ ಪ್ರತಿಪಾದನೆ ದಉಷ್ಟತ್ವದ,ದುಷ್ಕರ್ಮಿಗಳ ನಾಶ ಇವನ್ನು ಪ್ರತಿನಿಧಿಸುತ್ತದೆ ಈ ಹಬ್ಬವು ಆಗಸ್ಟ್‌ನಲ್ಲಿ ಬರುತ್ತದೆ.

ಹನುಮ ಜಯಂತಿ: ಪಂಡಿತರು ಮತ್ತು ಜ್ಯೋತಿಷಿಗಳ ಪ್ರಕಾರ, ಚೈತ್ರ ಮಾಸದ ಹುಣ್ಣಿಮೆಯಂದು, ಭಗವಾನ್ ಶಂಕರನ ಹನ್ನೊಂದನೇ ರುದ್ರನು ಶ್ರೀರಾಮನ ಸೇವೆ ಮಾಡುವ ಉದ್ದೇಶದಿಂದ ಅಂಜನಾ ದೇವಿಯ ಉದರದಲ್ಲಿ ಹನುಮಂತನಾಗಿ ಜನಿಸಿದನು.  ಈ ದಿನ ಹನುಮ ಜಯಂತಿಯನ್ನು ಆಚರಿಸಲಾಗುತ್ತದೆ.  ಈ ದಿನವನ್ನು ಹಿಂದೂ ಧರ್ಮದಲ್ಲಿ ಅತ್ಯಂತ ಪ್ರಾಮುಖ್ಯತೆ ಎಂದು ಪರಿಗಣಿಸಲಾಗಿದೆ.

ಶ್ರಾದ್ಧ-ತರ್ಪಣ: ದೇವರು ಮತ್ತು ಋಷಿಗಳ  ಹೊರತು ಪಡಿಸಿ, ಶ್ರಾದ್ಧವನ್ನು ಆಚರಿಸುವ ಮಹತ್ವವು ಹಿಂದೂ ಧರ್ಮದಲ್ಲಿ ಪೂರ್ವಜರನ್ನು ಪೂಜಿಸುವುದರಲ್ಲಿದೆ. ಪೂರ್ವಜರಿಗೆ ಗೌರವಪೂರ್ವಕವಾಗಿ ಮಾಡುವ ಮೋಕ್ಷದ ಆಚರಣೆಯನ್ನು ಶ್ರಾದ್ಧ ಎಂದು ಕರೆಯಲಾಗುತ್ತದೆ ಮತ್ತು ದೇವತೆಗಳಿಗೆ, ಋಷಿಗಳಿಗೆ ಮತ್ತು ಪೂರ್ವಜರಿಗೆ ಅಕ್ಕಿ ಮತ್ತು ಎಳ್ಳು ಬೆರೆಸಿದ ನೀರನ್ನು ಅರ್ಪಿಸಿ ತೃಪ್ತಿಪಡಿಸುವ ಮತ್ತು ಅರ್ಪಿಸುವ ಕ್ರಿಯೆಯನ್ನು ತರ್ಪಣ ಎಂದು ಕರೆಯಲಾಗುತ್ತದೆ.  ತರ್ಪಣ ಮಾಡುವುದು ಪಿಂಡ ದಾನ ಮಾಡುವುದು.  ಸನಾತನ ಹಿಂದೂ ಧರ್ಮದಲ್ಲಿ ಶ್ರಾದ್ಧ  ಪಕ್ಷವನ್ನು ಬಹಳ ಮುಖ್ಯವೆಂದು ಪರಿಗಣಿಸಲಾಗಿದೆ.

 

ಗುರುಪೂರ್ಣಿಮೆ: ಹಿಂದೂ ಧರ್ಮದಲ್ಲಿ ದೇವರು, ದೇವತೆಗಳು, ಪೂರ್ವಜರಲ್ಲದೆ ಗುರುಗಳಿಗೂ ಮಹತ್ವವಿದೆ.  ಆಷಾಢ ಮಾಸದ ಶುಕ್ಲ ಪಕ್ಷದ ಹುಣ್ಣಿಮೆಯನ್ನು ಗುರು ಪೂರ್ಣಿಮೆ ಅಥವಾ ವ್ಯಾಸ ಪೂರ್ಣಿಮೆ ಎಂದು ಕರೆಯಲಾಗುತ್ತದೆ.  ಈ ಹಬ್ಬವನ್ನು ಭಾರತದಾದ್ಯಂತ ಅತ್ಯಂತ ಶ್ರದ್ಧಾ ಭಕ್ತಿಯಿಂದ ಆಚರಿಸಲಾಗುತ್ತದೆ.  ಪುರಾತನ ಕಾಲದಲ್ಲಿ ಗುರುಗಳ ಆಶ್ರಮದಲ್ಲಿ ವಿದ್ಯಾರ್ಥಿಯೊಬ್ಬ ಉಚಿತ ಶಿಕ್ಷಣ ಪಡೆಯುತ್ತಿದ್ದಾಗ ಈ ದಿನ ಭಕ್ತಿಯಿಂದ ಪ್ರೇರಿತನಾಗಿ ಗುರುವನ್ನು ಪೂಜಿಸಿ ತನ್ನ ಶಕ್ತಿಗೆ ತಕ್ಕಂತೆ ದಕ್ಷಿಣೆ ನೀಡಿ ಕೃತಜ್ಞತೆ ಸಲ್ಲಿಸುತ್ತಿದ್ದನು.

ಹಬ್ಬಗಳು ಮತ್ತು ಋತುಗಳ ನಡುವಿನ ಸಂಬಂಧ: ವೇದಗಳಲ್ಲಿ, ಪ್ರಕೃತಿಯನ್ನು ದೇವರ ಪ್ರತಿಯೊಂದು ರೂಪದಲ್ಲಿ ಪೂಜಿಸಲಾಗುತ್ತದೆ.  ಇದಲ್ಲದೆ, ಆಕಾಶ ಮತ್ತು ಆಕಾಶದ ನಕ್ಷತ್ರಗಳನ್ನು ಸ್ತುತಿಸಿ, ರೋಗಗಳು ಮತ್ತು ದುಃಖಗಳನ್ನು ದೂರ ಮಾಡಲು ಪ್ರಾರ್ಥಿಸಲಾಗುತ್ತದೆ.  ಭೂಮಿ ಮತ್ತು ಆಕಾಶವನ್ನು ಪ್ರಾರ್ಥಿಸುವ ಮೂಲಕ ಎಲ್ಲಾ ರೀತಿಯ ಸಂತೋಷ ಮತ್ತು ಸಮೃದ್ಧಿಯನ್ನು ಪಡೆಯಬಹುದು.  ಅದಕ್ಕಾಗಿಯೇ ಋಷಿಗಳು ಪ್ರಕೃತಿಗೆ ಅನುಗುಣವಾಗಿ ಬದುಕಲು ಸಲಹೆ ನೀಡಿದರು.  ಇದರೊಂದಿಗೆ, ಅವರು ವರ್ಷದಲ್ಲಿ ಋತುಮಾನದ ಬದಲಾವಣೆಗಳ ಚಕ್ರವನ್ನು ಅರ್ಥಮಾಡಿಕೊಂಡರು ಮತ್ತು ಆ ಸಮಯದಲ್ಲಿ ಉಪವಾಸ ಮತ್ತು ಆಚರಣೆಗೆ ನಿಯಮಗಳನ್ನು ಮಾಡಿದರು, ಇದರಿಂದಾಗಿ ಋತುಮಾನದ ಬದಲಾವಣೆಗಳ ಹಾನಿಯನ್ನು ತಪ್ಪಿಸಿ ಆನಂದಿತ ಜೀವನ ನಡೆಸಬಹುದೆಂದು ಪ್ರೇರೇಪಿಸಿದ್ದಾರೆ.

ವರ್ಷದಲ್ಲಿ 6 ಋತುಗಳಿವೆ- 1. ವಸಂತ 2. ಗ್ರೀಷ್ಮ 3.ಶರದ್ 4. ವರ್ಷಾ 5 ಹೇಮಂತ್, 6. ಶಿಶಿರ್.  ಋತುಗಳು ನಮ್ಮ ಸಂಪ್ರದಾಯಗಳ ಮೇಲೆ ಹಲವು ರೀತಿಯಲ್ಲಿ ಪ್ರಭಾವ ಬೀರಿವೆ.  ವಸಂತ್, ಬೇಸಿಗೆ ಮತ್ತು ವರ್ಷವು ಶರದ್ ದೇವಿಯ ಋತುಗಳು, ಹೇಮಂತ್ ಮತ್ತು ಶಿಶಿರ್ ಪಿತೃಗಳ ಋತುಗಳು.

ವಸಂತವು ಹೊಸ ವರ್ಷದ ಆರಂಭವಾಗಿದೆ.  ವಸಂತ ಚೈತ್ರ ಮತ್ತು ವೈಶಾಖ ಮಾಸಗಳು ಅಂದರೆ ಮಾರ್ಚ್-ಏಪ್ರಿಲ್, ಬೇಸಿಗೆ ಜ್ಯೇಷ್ಠ ಮತ್ತು ಆಷಾಢ ಮಾಸಗಳು ಅಂದರೆ ಮೇ-ಜೂನ್, ಮಳೆಗಾಲದ ಶ್ರಾವಣ ಮತ್ತು ಭಾದ್ರಪದ ಅಂದರೆ ಜುಲೈನಿಂದ ಸೆಪ್ಟೆಂಬರ್, ಶರತ್ಕಾಲ ಅಶ್ವಿನ್ ಮತ್ತು ಕಾರ್ತಿಕ ಮಾಸಗಳು ಅಂದರೆ ಅಕ್ಟೋಬರ್ ನಿಂದ ನವೆಂಬರ್, ಹೇಮಂತ ಋತು ಮಾರ್ಗಶೀರ್ಷ ಮತ್ತು ಪೌಷ ತಿಂಗಳುಗಳು. ಜನವರಿ 15 ಮತ್ತು ಶಿಶಿರ ಋತು ಮಾಘ ಮತ್ತು ಫಾಲ್ಗುನ್ ತಿಂಗಳು ಅಂದರೆ ಜನವರಿ 16 ರಿಂದ ಫೆಬ್ರವರಿ ಅಂತ್ಯದವರೆಗೆ.

 ಈ ಋತುಗಳಲ್ಲಿ ಪ್ರಕೃತಿ ಬದಲಾದಂತೆ ನಮ್ಮ ದೇಹ ಮತ್ತು ಮನಸ್ಸು ಕೂಡ ಬದಲಾಗುತ್ತದೆ.  ಮತ್ತು, ಮರ ಪರ್ವತಗಳು, ಪ್ರಾಣಿಗಳು-ಪಕ್ಷಿಗಳು ಮುಂತಾದ ನಿಸರ್ಗದ ಅಂಶಗಳು ಪ್ರಕೃತಿಯ ನಿಯಮಗಳನ್ನು ಅನುಸರಿಸುವಾಗ ಪ್ರಕೃತಿಯಿಂದ ಉಂಟಾಗುವ ಹಾನಿಯನ್ನು ತಪ್ಪಿಸಲು ಪ್ರಯತ್ನಿಸುವಂತೆಯೇ, ಋಷಿಗಳು ಮಾನವರಿಗೆ ಸಲಹೆ ನೀಡಿದರು.  ಆ ಸಮಯದಲ್ಲಿ ಋಷಿಗಳು ಅಂತಹ ಹಬ್ಬಗಳು ಮತ್ತು ನಿಯಮಗಳನ್ನು ಅನುಸರಿಸಿ ಒಬ್ಬ ವ್ಯಕ್ತಿಯು ಸಂತೋಷದ ಜೀವನವನ್ನು ನಡೆಸಬಹುದು ಎಂದು ಹೇಳಿ ಆಚರಿಸುವ ಪರಂಪರೆಗಳನ್ನು ಹಾಕಿ ಕೊಟ್ಟಿ

ವಸಂತ: ಹಿಂದೂ ಧರ್ಮದ ಮೊದಲ ತಿಂಗಳು ಚೈತ್ರ ಮಾಸದಿಂದ ಪ್ರಾರಂಭವಾಗುತ್ತದೆ.  ಪ್ರಾಚೀನ ಕಾಲದಿಂದಲೂ, ಈ ತಿಂಗಳನ್ನು ಎಲ್ಲಾ ನಾಗರಿಕತೆಗಳಲ್ಲಿ ಹೊಸ ವರ್ಷದ ಆರಂಭದ ತಿಂಗಳು ಎಂದು ಪರಿಗಣಿಸಲಾಗಿದೆ.  ಚೈತ್ ಮತ್ತು ಬೈಸಾಖ್ ವಸಂತವು ತನ್ನ ಸೌಂದರ್ಯವನ್ನು ತೋರಿಸುತ್ತದೆ.  ಇಂಗ್ಲಿಷ್ ಕ್ಯಾಲೆಂಡರ್ ಪ್ರಕಾರ ಈ ಋತುವು ಮಾರ್ಚ್ ಮತ್ತು ಏಪ್ರಿಲ್ ನಲ್ಲಿ ಇರುತ್ತದೆ.

 ಹೋಳಿ, ಧುಲೆಂದಿ, ರಂಗ ಪಂಚಮಿ, ಬಸಂತ್ ಪಂಚಮಿ, ನವರಾತ್ರಿ, ರಾಮ ನವಮಿ, ನವ-ಸಂವತ್ಸರ, ಹನುಮಾನ್ ಜಯಂತಿ ಮತ್ತು ಗುರು ಪೂರ್ಣಿಮಾ ಈ ಋತುವಿನಲ್ಲಿ ಆಚರಿಸಲಾಗುತ್ತದೆ.  ಇವುಗಳಲ್ಲಿ, ರಂಗ ಪಂಚಮಿ ಮತ್ತು ಬಸಂತ್ ಪಂಚಮಿ ಹವಾಮಾನದಲ್ಲಿನ ಬದಲಾವಣೆಗಳನ್ನು ಸೂಚಿಸುತ್ತವೆ, ನವ-ಸಂವತ್ಸರವು ಹೊಸ ವರ್ಷದ ಆರಂಭವನ್ನು ಸೂಚಿಸುತ್ತದೆ.  ಇದಲ್ಲದೇ ಪ್ರಹ್ಲಾದನ ಸ್ಮರಣಾರ್ಥ ಹೋಳಿ-ಧೂಳೇಂದಿಯನ್ನು ಭಕ್ತರು ಆಚರಿಸಿದರೆ, ನವರಾತ್ರಿ ಮಾತೆ ದುರ್ಗೆಯ ಆಚರಣೆಯಾದರೆ, ಮತ್ತೊಂದೆಡೆ ರಾಮನವಮಿ, ಹನುಮ ಜಯಂತಿ, ಬುದ್ಧ ಪೂರ್ಣಿಮೆ ಎರಡೂ ಮಹಾಪುರುಷರು ಹುಟ್ಟಿದ ದಿನಗಳಾಗಿವೆ.

 

 ಬೇಸಿಗೆ: ಜ್ಯೇಷ್ಟ ಮತ್ತು ಆಷಾಢ ಮಾಸಗಳು 'ಬೇಸಿಗೆ'ಯ ತಿಂಗಳುಗಳು.  ಇದರಲ್ಲಿ ಸೂರ್ಯನು ಉತ್ತರಾಯಣದ ಕಡೆಗೆ ಚಲಿಸುತ್ತಾನೆ.  ಬೇಸಿಗೆಯು ಪ್ರಾಣಿಗಳಿಗೆ ಕಠಿಣವಾಗಿರಬೇಕು, ಆದರೆ ತಪಸ್ಸಿಲ್ಲದೆ ಒಬ್ಬನು ಸಂತೋಷವನ್ನು ಪಡೆಯಲು ಸಾಧ್ಯವಿಲ್ಲ.  ಇಂಗ್ಲಿಷ್ ಕ್ಯಾಲೆಂಡರ್ ಪ್ರಕಾರ ಈ ಋತುವು ಮೇ ಮತ್ತು ಜೂನ್ ನಲ್ಲಿ ಇರುತ್ತದೆ.

 

 ಬೇಸಿಗೆಯ ತಿಂಗಳುಗಳಲ್ಲಿ ಉತ್ತಮ ಆಹಾರ ಸೇವಿಸಿ ಉಪವಾಸ ಮಾಡುವುದು ವಾಡಿಕೆ.  ನಿರ್ಜಲ ಏಕಾದಶಿ, ವಟ ಸಾವಿತ್ರಿ ವ್ರತ, ಶೀತಲಾಷ್ಟಮಿ, ದೇವಶಯನಿ ಏಕಾದಶಿ ಮತ್ತು ಗುರು ಪೂರ್ಣಿಮಾ ಇತ್ಯಾದಿ ಹಬ್ಬಗಳು ಈ ಮಾಸದಲ್ಲಿ ಬರುತ್ತವೆ.  ಗುರು ಪೂರ್ಣಿಮೆಯ ನಂತರ, ಶ್ರಾವಣ ಮಾಸವು ಪ್ರಾರಂಭವಾಗುತ್ತದೆ ಮತ್ತು ಆದ್ದರಿಂದ ಋತುವು ಬದಲಾಗುತ್ತದೆ ಮತ್ತು ಮಳೆಗಾಲವು ಆಗಮಿಸುತ್ತದೆ.

 

 ಋತುಮಾನ: ಶ್ರಾವಣ ಮತ್ತು ಭಾದ್ರಪದ ಮಾಸಗಳು ‘ಋತು ಋತು’.  ವರ್ಷಾ ಹೊಸ ಜೀವನವನ್ನು ತರುತ್ತಾಳೆ.  ಮೋರ್ ಕೆ ಪಾವ್ ಮೇ ನೃತ್ಯ ಬಂಧ್ ಜಾತಾ ಹೈ.  ಶ್ರಾವಣ ಮಾಸ ಪೂರ್ತಿ ಉಪವಾಸ ಆಚರಿಸಲಾಗುತ್ತದೆ.  ಈ ತಿಂಗಳು ಮುಸ್ಲಿಮರಿಗೆ ರಂಜಾನ್ ಹೋತಾ ಹೈ.  ಈ ತಿಂಗಳು ಜುಲೈ-ಸೆಪ್ಟೆಂಬರ್‌ನಲ್ಲಿ ಬರುತ್ತದೆ.  ತೀಜ್, ರಕ್ಷಾಬಂಧನ ಮತ್ತು ಕೃಷ್ಣ ಜನ್ಮಾಷ್ಟಮಿ ಈ ಋತುವಿನ ದೊಡ್ಡ ಹಬ್ಬಗಳು.


ಶರದೃತು: ಅಶ್ವಿನ್ ಮತ್ತು ಕಾರ್ತಿಕ ಮಾಸಗಳು 'ಶಿಶಿರ' ಮಾಸಗಳಾಗಿವೆ.  ಶರತ್ಕಾಲದ ಪರಿಣಾಮದ ದೃಷ್ಟಿಯಿಂದ ಇದು ವಸಂತಕಾಲದ ಎರಡನೇ ರೂಪವಾಗಿದೆ.  ಪರಿಸರದಲ್ಲಿ ಸ್ವಚ್ಛತೆ ಪಸರಿಸಿರುವುದು ಕಂಡು ಬರುತ್ತಿದೆ.  ಈ ಋತುವು ಅಕ್ಟೋಬರ್ ನಿಂದ ನವೆಂಬರ್ ನಡುವೆ ಇರುತ್ತದೆ.  ಈ ಋತುವಿನ ಹಬ್ಬಗಳೆಂದರೆ ಶ್ರಾದ್ಧ ಪಕ್ಷ, ನವರಾತ್ರಿ, ದಸರಾ, ಕರ್ವಾ ಚೌತ್.

 

 ಈ ಋತುವಿನಲ್ಲಿ ಈ ಶಾರದೀಯ ನವರಾತ್ರಿಯನ್ನು ಆಚರಿಸಲಾಗುತ್ತದೆ.  ಎಲ್ಲೆಡೆ ಹಬ್ಬದ ವಾತಾವರಣ.  ಈ ಋತುವಿನ ಇತರ ಉಪವಾಸಗಳು ಮತ್ತು ಹಬ್ಬಗಳು - ಛತ್ ಪೂಜೆ, ಗೋಪಾಷ್ಟಮಿ, ಅಕ್ಷಯ ನವಮಿ, ದೇವೋತ್ಥಾನ ಏಕಾದಶಿ, ಬೈಕುಂಠ ಚತುರ್ದಶಿ, ಕಾರ್ತಿಕ ಪೂರ್ಣಿಮಾ, ಯಾದನ ಏಕಾದಶಿ, ವಿವಾಹ ಪಂಚಮಿ, ಸ್ಕಂದ ಷಷ್ಟಿ ಇತ್ಯಾದಿ.

 

 ಆಷಾಢ ಶುಕ್ಲ ಏಕಾದಶಿಯಂದು ಭಗವಾನ್ ವಿಷ್ಣುವು ಯೋಗನಿದ್ರೆಯಲ್ಲಿ ನಾಲ್ಕು ತಿಂಗಳ ಕಾಲ ಕ್ಷೀರಸಾಗರದಲ್ಲಿ ಮುಳುಗಿರುತ್ತಾನೆ.  ಚಾತುರ್ಮಾಸ್ ಕಾರ್ತಿಕ ಶುಕ್ಲ ಏಕಾದಶಿಯಂದು ಕೊನೆಗೊಳ್ಳುತ್ತದೆ ಮತ್ತು ಈ ದಿನ ಭಗವಂತನು ತನ್ನ ಯೋಗ ನಿದ್ರೆಯಿಂದ ಎಚ್ಚರಗೊಳ್ಳುತ್ತಾನೆ.  ಭಗವಾನ್ ಕೇ ಜಗನೇ ಕಿ ಖುಷಿ ಮೇ ನ ದೇವೋತ್ತನ್ ಏಕಾದಶಿ ವ್ರತವು ಈ ಋತುವಿನಲ್ಲಿ ಪೂರ್ಣಗೊಳ್ಳುತ್ತದೆ.

 

 ಹೇಮಂತ್ ಋತು: ಪ್ರಾಚೀನ ಕಾಲದಿಂದಲೂ ಶರದ್ ಪೂರ್ಣಿಮಾವನ್ನು ಬಹಳ ಮುಖ್ಯವಾದ ಹಬ್ಬವೆಂದು ಪರಿಗಣಿಸಲಾಗಿದೆ.  ಶರದ್ ಪೂರ್ಣಿಮಾ ಹೇಮಂತ್ ಋತುವಿನ ಆರಂಭವಾಗಿದೆ.  ಚಳಿಗಾಲವನ್ನು ಎರಡು ಭಾಗಗಳಾಗಿ ವಿಂಗಡಿಸಲಾಗಿದೆ.  ತಿಳಿ ಗುಲಾಬಿ ಚಳಿಗಾಲವನ್ನು ಹೇಮಂತ್ ರಿತು ಎಂದು ಕರೆಯಲಾಗುತ್ತದೆ ಮತ್ತು ತೀವ್ರವಾದ ಮತ್ತು ತೀಕ್ಷ್ಣವಾದ ಚಳಿಗಾಲವನ್ನು ಶಿಶಿರ್ ಎಂದು ಕರೆಯಲಾಗುತ್ತದೆ.  ಇದು ಡಿಸೆಂಬರ್ ನಿಂದ ಜನವರಿ 15 ರವರೆಗೆ ಇರುತ್ತದೆ.


 ಈ ಋತುವು ಹಿಂದೂ ತಿಂಗಳ ಮಾರ್ಗಶೀರ್ಷ ಮತ್ತು ಪೌಷ್ ತಿಂಗಳ ನಡುವೆ ಬರುತ್ತದೆ.  ಈ ಋತುವಿನಲ್ಲಿ, ದೇಹವು ಸಾಮಾನ್ಯವಾಗಿ ಆರೋಗ್ಯಕರವಾಗಿರುತ್ತದೆ.  ಜೀರ್ಣಶಕ್ತಿ ಹೆಚ್ಚುತ್ತದೆ.  ಹೇಮಂತ ಋತುವಿನಲ್ಲಿ ಕಾರ್ತಿಕ, ಆಗಹ ಮತ್ತು ಪೌಷ ಮಾಸಗಳು ಬರುತ್ತವೆ.  ಕಾರ್ತಿಕ ಮಾಸದಲ್ಲಿ ಕರ್ವ ಚೌತ್, ಧಂತೇರಸ್, ರೂಪ ಚತುರ್ದಶಿ, ದೀಪಾವಳಿ, ಗೋವರ್ಧನ ಪೂಜೆ, ಭಾಯಿ ದೂಜ್ ಮುಂತಾದವುಗಳನ್ನು ಆಚರಿಸಲಾಗುತ್ತದೆ, ಕಾರ್ತಿಕ ಸ್ನಾನವನ್ನು ಮುಗಿಸಿ ದೀಪ ದಾನವನ್ನು ಮಾಡಲಾಗುತ್ತದೆ.

 

 ಶಿಶಿರ ಋತು: ಈ ಋತುವು ಹಿಂದೂ ತಿಂಗಳ ಮಾಘ ಮತ್ತು ಫಾಲ್ಗುನ್‌ನಲ್ಲಿ ಬರುತ್ತದೆ, ಅಂದರೆ ಪತನ.  ಈ ಋತುವಿನಲ್ಲಿ ವೃದ್ಧಾಪ್ಯವು ಪ್ರಕೃತಿಯ ಮೇಲೆ ಬೀಳುತ್ತದೆ.  ಮರಗಳ ಎಲೆಗಳು ಉದುರುತ್ತವೆ.  ಸುತ್ತಲೂ ಮಂಜು ಇದೆ.  ಈ ಋತುಮಾನವು ಋತುಚಕ್ರದ ಮುಕ್ತಾಯವನ್ನು ಸೂಚಿಸುತ್ತದೆ ಮತ್ತು ಮತ್ತೆ ಹೊಸ ವರ್ಷದ ಸುಗಂಧ ಮತ್ತು ಹೊಸ ಜೀವನದ ಆರಂಭವನ್ನು ಕೇಳಲು ಪ್ರಾರಂಭಿಸುತ್ತದೆ

ಇಂಗ್ಲಿಷ್ ತಿಂಗಳ ಪ್ರಕಾರ, ಈ ಋತುವು ಜನವರಿ 15 ರಿಂದ ಇಡೀ ಫೆಬ್ರವರಿ ತಿಂಗಳವರೆಗೆ ಇರುತ್ತದೆ.  ಮಕರ ಸಂಕ್ರಾಂತಿ ಹಬ್ಬವು ಈಗ ಈ ಋತುವಿನಲ್ಲಿದೆ, ಇದನ್ನು ಹಿಂದೂ ಧರ್ಮದ ಅತಿದೊಡ್ಡ ಹಬ್ಬವೆಂದು ಪರಿಗಣಿಸಲಾಗಿದೆ.  ಈ ದಿನ ದಕ್ಷಿಣಾಯಣದಿಂದ ಉತ್ತರಾಯಣದವರೆಗೆ ಸೂರ್ಯನು ಪ್ರಾರಂಭವಾಗುತ್ತಾನೆ.  ತಿಲ್ ಅಗರ್ ಗುಡ್ ಕಾ ಲಡ್ಡು, ತಿಲ್ ಶುಗರ್ ಕಾ ಕಲರ್ ಫುಲ್ ಹಲ್ವಾ, ರೇವಡಿ ಇತ್ಯಾದಿಗಳನ್ನು ಹಂಚಿಕೊಳ್ಳುವ ಮೂಲಕ ನಿಮ್ಮ ಜೀವನವನ್ನು ಕಳೆಯಲು ಪ್ರಯತ್ನಿಸಿ.  ಹಿಂದೂ ತಿಂಗಳ ಫಾಲ್ಗುಣ ಕೃಷ್ಣ ಚತುರ್ದಶಿಯಂದು ಈ ಋತುವಿನಲ್ಲಿ ಮಹಾಶಿವರಾತ್ರಿಯನ್ನು ಆಚರಿಸಲಾಗುತ್ತದೆ.


ಚೈತ್ರ ಮಾಸ
ಚಂದ್ರಮಾನ ಯುಗಾದಿ (ಶುಕ್ಲ ಪಾಡ್ಯ) ಧರ್ಮಧ್ವಜಾರೋಹಣ ನಿಂಬಕ ಪುಷ್ಪ ಭಕ್ಷಣಂ 
ಶ್ರೀ ರಾಮ ನವರಾತ್ರಾರಂಭ  
ಬಾಲ ಚಂದ್ರಮಾ ವ್ರತ 
ಗೌರಿ ತೃತಿಯಾ ದೋಲೋತ್ಸವ 
ಶ್ರೀ ರಾಮ ನವಮಿ (ಶುಕ್ಲ ನವಮಿ)
ಕಾಮದಾ ಏಕಾದಶಿ 
ಹನುಮ ಜಯಂತಿ (ಹುಣ್ಣಿಮೆ) ದವನ ಪೌರ್ಣಿಮ 
ವೈಶಾಖ ಸ್ನಾನ ಆರಂಭಃ 
ಸನ್ನತಿ ಚಂದ್ರಲಾಂಬಾ ರಥೋತ್ಸವ 
ಮತ್ಸ್ಯ ಜಯಂತಿ (ಕೃಷ್ಣ ಪಂಚಮಿ)
ವರಾಹ ಜಯಂತಿ (ಕೃಷ್ಣ ತ್ರಯೋದಶಿ)
ದರ್ಶ  ಅಕ್ಷಯ ತೃತೀಯ ಅಮಾವಾಸ್ಯ 
ವೈಶಾಖ ಮಾಸ 
ಅಕ್ಷಯ ತೃತೀಯ (ಶುಕ್ಲ ತದಿಗೆ) ತ್ರೇತಾ ಯುಗಾದಿ  ಜಲಕುಮ್ಭ ದಾನ 
ಗಂಗಾ ಪೂಜ (ಶುಕ್ಲ ಸಪ್ತಮಿ)
ಮೋಹಿನೀ ಏಕಾದಶಿ (ಶುಕ್ಲ ಏಕಾದಶಿ)
ಬುದ್ಧ ಜಯಂತಿ; ವೈಶಾಖ ಸ್ನಾನ ಸಮಾಪ್ತಿ (ಆಗೀ ಹುಣ್ಣಿಮೆ)
ಧನಿಷ್ಟಾ ನವಕಾರಂಭಃ  ತಥಾ ಸಮಾಪ್ತಿ 
ಅಪರಾ ಏಕಾದಶಿ (ಕೃಷ್ಣ ಏಕಾದಶಿ)
ನರಸಿಂಹ ಜಯಂತಿ
ವೇದವ್ಯಾಸ ಜಯಂತಿ
ಕೂರ್ಮ ಜಯಂತಿ
ಶಂಕರಾಚಾರ್ಯ ಜಯಂತ
ರಾಮಾನುಜ ಜಯಂತಿ
ಭಾವುಕಾ ಅಮಾವಾಸ್ಯಾ  ದರ್ಶ   ಶನೈಶ್ಚರ ಜಯಂತಿ  
ಜ್ಯೇಷ್ಠ ಮಾಸ
 ದಶಹರಾ ಆರಂಭ
ದಶಹರಾ ಸಮಾಪ್ತಿ  
ನಿರ್ಜಲಾ ಏಕಾದಶಿ (ಶುಕ್ಲ ಏಕಾದಶಿ)
ವಟ ಸಾವಿತ್ರಿ ವ್ರತ   
ಕಾರ ಹುಣ್ಣಿಮೆ  ಅನಂಗವಾಹ ಪೌರ್ಣಿಮಾ 
ಯೋಗಿನೀ ಏಕಾದಶಿ (ಕೃಷ್ಣ ಏಕಾದಶಿ)
ದರ್ಶ    ಮೃತ್ತಿಕಾ ವೃಷಭ ಪೂಜಾ ಅಮಾವಾಸ್ಯಾ 
ಆಷಾಢ ಮಾಸ
ಪ್ರಥಮಾ/ಶಯನೀ ಏಕಾದಶಿ; ತಪ್ತ ಮುದ್ರಾ ಧಾರಣ 
ಚಾತುರ್ಮಾಸಾರಂಭ (ಶುಕ್ಲ ಏಕಾದಶಿ) ಶಾಖ ವ್ರತ 
ಚಾತುರ್ಮಾಸ ವ್ರತಗಳು 
ಗೋಪದ್ಮ ವ್ರತ 
ಗುರು ಪೂರ್ಣಿಮ / ವ್ಯಾಸ ಪೂರ್ಣಿಮ (ಹುಣ್ಣಿಮೆ)
ಅಶೂನ್ಯಶಯನ ವ್ರತ 
ಕಾಮಿಕಾ ಏಕಾದಶಿ (ಕೃಷ್ಣ ಏಕಾದಶಿ)
ಕರ್ಕ ಸಂಕ್ರಮಣ, ದಕ್ಷಿಣಾಯಣ ಪರ್ವಕಾಲ
ದೀಪ ಸ್ಥಂಭ ಗೌರಿ ವ್ರತ ಪೂಜಾ 
ದರ್ಶ  ಭೀಮನ ಅಮವಾಸ್ಯೆ 
ಶ್ರಾವಣ ಮಾಸ 
ನಕ್ತ ವ್ರತ  (ಕೇವಲ ಸುರ್ಯಾಸ್ತಾ ನಂತರ ಭೋಜನ ಮಾಡುವುದು)  
ನಾಗ ಚೌತಿ (ಶುಕ್ಲ ಚೌತಿ)
ನವ ನಾಗ ಪೂಜನ 
ನಾಗ ಪಂಚಮಿ (ಶುಕ್ಲ ಪಂಚಮಿ)
ಶುಕ್ರವಾರ ಲಕ್ಷ್ಮೀ ಪೂಜೆ
ದುರ್ವಾ ಗಣಪತಿ ಪೂಜನ 
ಪುತ್ರದಾ ಏಕಾದಶಿ(ಶುಕ್ಲ ಏಕಾದಶಿ)
ರಕ್ಷಾಬಂಧನ (ಹುಣ್ಣಿಮೆ)
ಸುಪೋದನ ವರ್ಣ ಷಷ್ಠಿ 
ಶ್ರೀ ಕೃಷ್ಣ ಜಯಂತಿ  ಗೋಕುಲಾಷ್ಟಮಿ (ಕೃಷ್ಣಪಕ್ಷ ಅಷ್ಟಮಿ) ಶ್ರೀ ಕೃಷ್ಣ ಜನ್ಮಾಷ್ಟಮಿ
ರಾಘವೇಂದ್ರ ಸ್ವಾಮಿಗಳ ಆರಾಧನೆ (ಕೃಷ್ಣ ಬಿದಿಗೆ)
ಅಜ ಏಕಾದಶಿ (ಕೃಷ್ಣ ಏಕಾದಶಿ) ಪವಿತ್ರಾ ರೋಪಣಂ 
ದರ್ಶ ಸೋಮವತಿ ಅಮಾವಾಸ್ಯಾ 
ಕಲ್ಕಿ ಜಯಂತಿ
ಶ್ರೀ ವರಮಹಾಕ್ಷ್ಮೀ ಪೂಜೆ
ಮಂಗಳ ಗೌರಿ ವ್ರತ 
ಶ್ರಾವಣ ಶನಿವಾರ
ಋಕ್ ಉಪಾಕರ್ಮ
ಯಮ ತರ್ಪಣ  ತರ್ಪಯಾಮಿ ಎಂದು (ತಂದೆ ಇರುವವರು ನೀರಿನಲ್ಲಿ ಅಕ್ಷತೆ ಹಾಕಿ ಬಲಗೈ ಹೆಬ್ಬೆರಳಿನಿಂದ ನೀರು ಬೀಳುವಂತೆ ಯಮ ತರ್ಪಣ ಬಿಡಬೇಕು ಇತರರು  ನೀರಿನಲ್ಲಿ ಎಳ್ಳು ಹಾಕಿ ಬಲಗೈ ಹೆಬ್ಬೆರಳಿನಿಂದ ನೀರು ಬೀಳುವಂತೆ ಯಮ ತರ್ಪಣ ಬಿಡಬೇಕು) ಯಮಂ, ಧರ್ಮರಾಜಂ, ಮೃತ್ಯುಂ, ಅಂತಕಂ, ವೈವಸ್ವತಂ, ಕಾಲಂ, ಸರ್ವಭೂತ ಕ್ಷಯಕರಂ, ಔದುಮ್ಬರಮ, ದದ್ನಂ, ನೀಲಂ, ಪರಮೇಷ್ಟಿನಂ, ವೃಕೊದರಂ, ಚಿತ್ರಂ, ಚಿತ್ರಗುಪ್ತಂತರ್ಪಯಾಮಿ ಈ ಕ್ರಿಯಾ ನಂತರ ಎದ್ದು ನಿಂತು ದಕ್ಷಿಣಕ್ಕೆ ಮುಖಮಾಡಿ ಕೈಜೋಡಿಸಿ ಹತ್ತು ಸಲ ಪಠಿಸ ಬೇಕು “ ಯಮೋ ನಿಹಂತಾ ಪಿತೃ ಧರ್ಮರಾಜೋ ವೈವಸ್ವತೋ ದಂಡ ಧರಶ್ಚಕಾಲ: | ಪ್ರೆತಾಧಿಪೋ ದತ್ತ ಕೃತಾನುಸಾರಿ ಕ್ರುತಾಂತ ಏತದ್ ದಶ ಕೃಜ್ಜಪಂತಿ || “            
ಯಜುರ್ ಉಪಾಕರ್ಮ ರಕ್ಷಾ ಬಂಧನ  ಶಿರಿಯಾಳ ಷಷ್ಠೀ
ಭಾದ್ರಪದ ಮಾಸ
ಮೌನ ವ್ರತ 
ಸಾಮ ವೇದಿನಾಂ ಉಪಾಕರ್ಮ 
ಹರಿತಾಲಿಕಾ ವ್ರತ 
ಶ್ರೀ ವಿನಾಯಕ ಚತುರ್ಥಿ (ಶುಕ್ಲ ಚೌತಿ)
ಋಷಿ ಪಂಚಮಿ (ಶುಕ್ಲ ಪಂಚಮಿ)
ಶ್ರೀ ಸ್ವರ್ಣಗೌರಿ ಪೂಜೆ
ಜ್ಯೇಷ್ಟಾ ಗೌರಿ ಆವಾಹನ 
ಜ್ಯೇಷ್ಟಾ ಗೌರಿ ಪೂಜನ 
ಜ್ಯೇಷ್ಟಾ ಗೌರಿ ವಿಸರ್ಜನ 
ಅದು:ಖ ನವಮಿ 
ಪರಿವರ್ತಿನೀ ಏಕಾದಶಿ (ಶುಕ್ಲ ಏಕಾದಶಿ)
ಅನಂತಪದ್ಮನಾಭ ವ್ರತ (ಶುಕ್ಲ ಚತುರ್ದಶಿ)
ಉಮಾಮಹೇಶ್ವರ ವ್ರತ (ಅನಂತ ಪೌರ್ಣಿಮಾ)
ಪಿತೃಪಕ್ಷ  ಮಹಾಲಯ ಆರಂಭ (ಕೃಷ್ಣಪಕ್ಷ)
ಮಹಾಭರಣೀ (ಕೃಷ್ಣ ಚೌತಿ)
ಮಧ್ಯಾಷ್ಟಮಿ (ಕೃಷ್ಣ ಅಷ್ಟಮಿ)
ಅವಿಧವಾ ನವಮಿ (ಕೃಷ್ಣ ನವಮಿ) ಅನ್ವಾಷ್ಟಕಾ ಶ್ರಾದ್ಧ 
ಇಂದಿರಾ ಏಕಾದಶಿ (ಕೃಷ್ಣ ಏಕಾದಶಿ)
ಸನ್ಯಾಸಿನಾಂ ಮಹಾಲಯ 
ಕಲಿಯುಗಾರಂಭ (ಕೃಷ್ಣ ತ್ರಯೋದಶಿ)
ಶಸ್ತ್ರಾದಿ ಹತ ಘಾತ ಚತುರ್ದಶಿ (ಕೃಷ್ಣ ಚತುರ್ದಶಿ)
ಸರ್ವಪಿತೃ ಅಮಾವಾಸ್ಯೆ / ಮಹಾಲಯ ಅಮಾವಾಸ್ಯೆ  ಗಜಚ್ಚಾಯಾ ಶ್ರಾದ್ಧ 
ಆಶ್ವಯಜ ಮಾಸ  
ಘಟಸ್ಥಾಪನ  ನವರಾತ್ರಾರಂಭ  ಮಾತಾಮಹ ಶ್ರಾದ್ಧ 
ಸಪ್ತರಾತ್ರೋತ್ಸವ 
ಲಲಿತಾ ಪಂಚಮಿ ಪಂಚರಾತ್ರೋತ್ಸವ 
ಶರನ್ನವರಾತ್ರಿ (ಶುಕ್ಲ ಪಾಡ್ಯ- ನವಮಿ)
ಸರಸ್ವತಿ ಪೂಜೆ (ಶುಕ್ಲ ಸಪ್ತಮಿ) ತ್ರಿರಾತ್ರೋತ್ಸವ 
ದುರ್ಗಾಷ್ಟಮಿ  ಏಕರಾತ್ರೋತ್ಸವ 
ಮಹಾನವಮಿ, ಆಯುಧಪೂಜೆ (ಶುಕ್ಲ ನವಮಿ)
ವಿಜಯದಶಮಿ / ಬನ್ನಿವೃಕ್ಷ ಪೂಜೆ (ಶುಕ್ಲ ದಶಮಿ)
ಮಧ್ವ ಜಯಂತಿ 
ಪಾಶಾಂಕುಶಾ ಏಕಾದಶಿ (ಶುಕ್ಲ ಏಕಾದಶಿ)
ಶರತ್ ಪೂರ್ಣಿಮ / ಸೀಗೆ ಹುಣ್ಣಿಮೆ / ಕಾರ್ತಿಕ ಸ್ನಾನಾರಾಂಭ (ಹುಣ್ಣಿಮೆ)
ರಮಾ ಏಕಾದಶಿ (ಕೃಷ್ಣ ಏಕಾದಶಿ)
ಧನ ತ್ರಯೋದಶಿ (ಕೃಷ್ಣ ತ್ರಯೋದಶಿ) ಜಲಪೂರ್ಣ ತ್ರಯೊದಶಿ (ಕೃಷ್ಣ ತ್ರಯೊದಶಿ) ಯಮ ದೀಪ ದಾನ 
ಕೊಜಾಗರಿ ಪೌರ್ಣಿಮಾ 
ನರಕ ಚತುರ್ದಶಿ,  ನಾರೀ ಕೃತ ನಿರಾಂಜನ  ಯಮ ತರ್ಪಣ (ಕೃಷ್ಣ ಚತುರ್ದಶಿ)
ಪ್ರತಿ ಹೆಸರಿನ ನಂತರ ತರ್ಪಯಾಮಿ ಎಂದು (ತಂದೆ ಇರುವವರು ನೀರಿನಲ್ಲಿ ಅಕ್ಷತೆ ಹಾಕಿ ಬಲಗೈ ಹೆಬ್ಬೆರಳಿನಿಂದ ನೀರು ಬೀಳುವಂತೆ ಯಮ ತರ್ಪಣ ಬಿಡಬೇಕು ಇತರರು  ನೀರಿನಲ್ಲಿ ಎಳ್ಳು ಹಾಕಿ ಬಲಗೈ ಹೆಬ್ಬೆರಳಿನಿಂದ ನೀರು ಬೀಳುವಂತೆ ಯಮ 
ತರ್ಪಣ ಬಿಡಬೇಕು) ಯಮಂ, ಧರ್ಮರಾಜಂ, ಮೃತ್ಯುಂ, ಅಂತಕಂ, ವೈವಸ್ವತಂ, ಕಾಲಂ, ಸರ್ವಭೂತ ಕ್ಷಯಕರಂ, ಔದುಮ್ಬರಮ, ದದ್ನಂ, ನೀಲಂ, ಪರಮೇಷ್ಟಿನಂ, ವೃಕೊದರಂ, ಚಿತ್ರಂ, ಚಿತ್ರಗುಪ್ತಂತರ್ಪಯಾಮಿ ಈ ಕ್ರಿಯಾ ನಂತರ ಎದ್ದು ನಿಂತು ದಕ್ಷಿಣಕ್ಕೆ ಮುಖಮಾಡಿ ಕೈಜೋಡಿಸಿ ಹತ್ತು ಸಲ ಪಠಿಸ ಬೇಕು “ ಯಮೋ ನಿಹಂತಾ ಪಿತೃ ಧರ್ಮರಾಜೋ ವೈವಸ್ವತೋ ದಂಡ ಧರಶ್ಚಕಾಲ: | ಪ್ರೆತಾಧಿಪೋ ದತ್ತ ಕೃತಾನುಸಾರಿ ಕ್ರುತಾಂತ ಏತದ್ ದಶ ಕೃಜ್ಜಪಂತಿ || “            
ದೀಪಾವಳಿ ಅಮಾವಾಸ್ಯೆ (ಅಮಾವಾಸ್ಯೆ) ಶ್ರೀ ಮಹಾ ಲಕ್ಷ್ಮೀ ಪೂಜಾ 
ಕಾರ್ತೀಕ ಮಾಸ
ಬಲಿಪಾಡ್ಯ (ಶುಕ್ಲ ಪಾಡ್ಯ) ಪುಸ್ತಕ ಪೂಜೆ  ಗೋವರ್ಧನ ಪೂಜಾ  
ಅನ್ನ ಕೂಟ 
ಯಮ ದ್ವಿತೀಯಾ ಭಗಿನಿ ಹಸ್ತೇನ ಭೋಜನಂ 
ಪಾಂಡವ ಪಂಚಮಿ 
ಯಮ ತರ್ಪಣ 
ಪ್ರತಿ ಹೆಸರಿನ ನಂತರ ತರ್ಪಯಾಮಿ ಎಂದು (ತಂದೆ ಇರುವವರು ನೀರಿನಲ್ಲಿ ಅಕ್ಷತೆ ಹಾಕಿ ಬಲಗೈ ಹೆಬ್ಬೆರಳಿನಿಂದ ನೀರು ಬೀಳುವಂತೆ ಯಮ ತರ್ಪಣ ಬಿಡಬೇಕು ಇತರರು  ನೀರಿನಲ್ಲಿ ಎಳ್ಳು ಹಾಕಿ ಬಲಗೈ ಹೆಬ್ಬೆರಳಿನಿಂದ ನೀರು ಬೀಳುವಂತೆ ಯಮ ತರ್ಪಣ ಬಿಡಬೇಕು) ಯಮಂ, ಧರ್ಮರಾಜಂ, ಮೃತ್ಯುಂ, ಅಂತಕಂ, ವೈವಸ್ವತಂ, ಕಾಲಂ, ಸರ್ವಭೂತ ಕ್ಷಯಕರಂ, ಔದುಂಬರಂ, ದದ್ನಂ, ನೀಲಂ, ಪರಮೇಷ್ಟಿನಂ, ವೃಕೊದರಂ, ಚಿತ್ರಂ, ಚಿತ್ರಗುಪ್ತಂತರ್ಪಯಾಮಿ ಈ ಕ್ರಿಯಾ ನಂತರ ಎದ್ದು ನಿಂತು ದಕ್ಷಿಣಕ್ಕೆ ಮುಖಮಾಡಿ ಕೈಜೋಡಿಸಿ ಹತ್ತು ಸಲ ಪಠಿಸ ಬೇಕು “ ಯಮೋ ನಿಹಂತಾ ಪಿತೃ ಧರ್ಮರಾಜೋ ವೈವಸ್ವತೋ ದಂಡ ಧರಶ್ಚಕಾಲ: | ಪ್ರೆತಾಧಿಪೋ ದತ್ತ ಕೃತಾನುಸಾರಿ ಕ್ರುತಾಂತ ಏತದ್ ದಶ ಕೃಜ್ಜಪಂತಿ || “ 
ಕೃತಯುಗಾರಂಭ (ಶುಕ್ಲ ನವಮಿ)   ಕೂಷ್ಮಾಂಡ ನವಮಿ  
ಪ್ರಬೋಧಿನೀ ಏಕಾದಶಿ; ಭೀಷ್ಮಪಂಚಕವ್ರತಾರಂಭ; ಚಾತುರ್ಮಾಸ ಸಮಾಪ್ತಿ (ಶುಕ್ಲ ಏಕಾದಶಿ) 
ಮಹಾಲಯ ಗೌಣ ಕಾಲ ಸಮಾಪ್ತ
ಉತ್ಥಾನ ದ್ವಾದಶಿ; ತುಳಸಿ ಪೂಜೆ (ಶುಕ್ಲ ದ್ವಾದಶಿ)
ವೈಕುಂಠ ಚತುರ್ದಶಿ (ಶುಕ್ಲ ಚತುರ್ದಶಿ) ಧಾತ್ರಿ ಪೂಜಾ ತುಳಸೀ ವಿವಾಹ ಸಮಾಪ್ತಿ 
ಭೀಷ್ಮಪಂಚಕವ್ರತ ಸಮಾಪ್ತಿ; ಕಾರ್ತಿಕಸ್ನಾನ ಸಮಾಪ್ತಿ  ತ್ರಿಪುರಾರಿ ಹುಣ್ಣಿಮೆ
ಉತ್ಪತ್ತಿ ಏಕಾದಶಿ (ಕೃಷ್ಣ ಏಕಾದಶಿ)
ಕಾಳಭೈರವ ಜಯಂತಿ
ಧನ್ವಂತರಿ ಜಯಂತಿ
ಕನಕದಾಸ ಜಯಂತಿ 
ದರ್ಶ  ಛಟ್ಟಿ ಅಮಾವಾಸ್ಯಾ  
ಮಾರ್ಗಶೀರ್ಷ ಮಾಸ  
ಚಂಪಾ ಷಷ್ಠಿ  ಮಾರ್ತಂಡ ಭೈರವೋತ್ಥಾಪನ 
ದುರ್ಗಾಷ್ಟಮಿ 
ಖಂಡೋಬಾ ನವರಾತ್ರಿ ಶಡ್ರಾತ್ರೋತ್ಸವ ಆರಂಭ 
ಮೋಕ್ಷದಾ ಏಕಾದಶಿ, ಗೀತಾ ಜಯಂತಿ (ಶುಕ್ಲ ಏಕಾದಶಿ)
ಹನುಮದ್ ವ್ರತ   ಧನುರ್ ಮಾಸ ಆರಂಭ 
ದತ್ತಾತ್ರೇಯ ಜಯಂತಿ (ಹೊಸ್ತಿಲ ಹುಣ್ಣಿಮೆ)
ಭಾನು ಸಪ್ತಮಿ 
ಸಫಲಾ ಏಕಾದಶಿ (ಕೃಷ್ಣ ಏಕಾದಶಿ)
ಸ್ಕಂದ ಷಷ್ಠೀ
ವಿಷ್ಣು ದೀಪೋತ್ಸವ 
ಹುತ್ತರೀ ಹಬ್ಬ - ಧಾನ್ಯಲಕ್ಷ್ಮೀ ಪೂಜೆ 
ಕಾಲಭೈರವಾಷ್ಟಮಿ 
ದರ್ಶ ಎಳ್ಳು ಅಮವಾಸ್ಯೆ 
ಪುಷ್ಯ ಮಾಸ
ಶಾಕಂಬರಿ ಪೂಜಾ  ಪರ್ಜನ್ಯ ವೃಷ್ಟಿಗಾಗಿ 
ಪುತ್ರದಾ ಏಕಾದಶಿ; ವೈಕುಂಠ ಏಕಾದಶಿ (ಶುಕ್ಲ ಏಕಾದಶಿ)
ಮುಕ್ಕೋಟಿ ದ್ವಾದಶಿ (ಶುಕ್ಲ ದ್ವಾದಶಿ)  ಭೋಗಿ  ಧನುರ್ ಮಾಸ ಸಮಾಪ್ತಿ
ಬನದ ಹುಣ್ಣಿಮೆ / ಮಾಘಸ್ನಾನಾರಂಭ (ಹುಣ್ಣಿಮೆ)
ತ್ಯಾಗರಾಜ ಆರಾಧನ (ಕೃಷ್ಣ ಪಂಚಮಿ)
ಷಟ್ತಿಲಾ ಏಕಾದಶಿ (ಕೃಷ್ಣ ಏಕಾದಶಿ)
ದರ್ಶ ಸೋಮವತಿ ಅವರಾತ್ರಿ ಅಮಾವಾಸ್ಯಾ 
ಮಕರ ಸಂಕ್ರಾಂತಿ 
ಉತ್ತರಾಯಣ ಪರ್ವಕಾಲ
ಮಾಘ ಮಾಸ
ವಿನಾಯಕ ಚತುರ್ಥಿ ಗಣೇಶ ಜಯಂತಿ 
ಸೂರ್ಯನಾರಾಯಣ ಪೂಜೆ
ವಸಂತ ಪಂಚಮಿ 
ಭೋಗಿ   
ರಥ ಸಪ್ತಮಿ ಅರ್ಕ ಪರ್ಣ ಸಹ ಸ್ನಾನ ಕುಷ್ಮಾಂಡ ದಾನ 
ವಸಂತ ಪಂಚಮಿ (ಶುಕ್ಲ ಪಂಚಮಿ)
ಭೋಗೀ (ಶುಕ್ಲ ಷಷ್ಠಿ)
ಭೀಷ್ಮಾ ಷ್ಟಮಿ (ಶುಕ್ಲ ಅಷ್ಟಮಿ)
ಶ್ರೀ ಮಧ್ವ ನವಮಿ ಶ್ರೀಮದಾನಂದ ತಿರ್ಥಾನಾಂ ಬದರಿಕಾಶ್ರಮ ಪ್ರವೇಶಃ 
ಜಯ ಏಕಾದಶಿ (ಶುಕ್ಲ ಏಕಾದಶಿ)
ಭೀಷ್ಮ ದ್ವಾದಶಿ  ಜಲ ತರ್ಪಣಾದಿಕಂ 
ಮಾಘಸ್ನಾನ ಸಮಾಪ್ತಿ; ದ್ವಾಪರಯುಗಾದಿ (ಭಾರತ ಹುಣ್ಣೀಮೆ)
ಗುರು ಪ್ರತಿಪದಾ 
ಯಲಗುರ ಕ್ಷೇತ್ರೇ ಪ್ರಾಣದೇವ ಕಾರ್ತಿಕೊತ್ಸವ  
ಸೀತಾ ಜಯಂತಿ (ಕೃಷ್ಣ ಅಷ್ಟಮಿ)
ಶ್ರೀ ರಾಮದಾಸ ನವಮಿ 
ವಿಜಯ ಏಕಾದಶಿ (ಕೃಷ್ಣ ಏಕಾದಶಿ)
ಮಹಾಶಿವರಾತ್ರಿ (ಕೃಷ್ಣ ತ್ರಯೋದಶಿ)
ದರ್ಶ  ಶಿವರಾತ್ರಿ ಅಮಾವಾಸ್ಯಾ 
ಫಾಲ್ಗುಣ ಮಾಸ
ಪಯೋ ವ್ರತಾರಂಭ 
ಆಮಲಕೀ ಏಕಾದಶಿ (ಶುಕ್ಲ ಏಕಾದಶಿ)
ಪಯೋ ವ್ರತ ಸಮಾಪ್ತಿ 
ಹುತಾಶನಿ ಪೌರ್ಣಿಮಾ ಹೋಳಿ ಹುಣ್ಣಿಮೆ
ವಸಂತೋತ್ಸವ (ಕೃಷ್ಣ ಪ್ರತಿಪದ)
ಧೂಲಿವಂದನ  ಆಮ್ರ ಕುಸುಮ ಪ್ರಾಶನ 
ಸಂಕಷ್ಟ ಚತುರ್ಥಿ 
ರಂಗ ಪಂಚಮಿ (ಕೃಷ್ಣ ಪಂಚಮಿ)
ಸಂತ ಏಕನಾಥ ಷಷ್ಠಿ  
ಕಾಲಾಷ್ಟಮಿ 
ಪಾಪಮೋಚನಿ ಏಕಾದಶಿ (ಕೃಷ್ಣ ಏಕಾದಶಿ)
ಶಿವರಾತ್ರಿ  ಚತುರ್ದಶಿ ಶ್ರಾದ್ಧ 
ದರ್ಶ, ಯುಗಾದಿ ಅಮಾಮಸ್ಯ 
प्रति मासपरत्वॆ दिनविशेष
 चैत्र मास
चंद्रमान युगादि (शुक्ल पाड्य) धर्मध्वजारोहण निंबक पुष्प भक्षणं 
श्री राम नवरात्रारंभ  
बाल चंद्रमा व्रत 
गौरि तृतिया दोलोत्सव 
श्री राम नवमि (शुक्ल नवमि)
कामदा एकादशि 
हनुम जयंति (हुण्णिमॆ) दवन पौर्णिम 
वैशाख स्नान आरंभः 
सन्नति चंद्रलांबा रथोत्सव 
मत्स्य जयंति (कृष्ण पंचमि)
वराह जयंति (कृष्ण त्रयोदशि)
दर्श  अक्षय तृतीय अमावास्य 
वैशाख मास 
अक्षय तृतीय (शुक्ल तदिगॆ) त्रेता युगादि  जलकुम्भ दान 
गंगा पूज (शुक्ल सप्तमि)
मोहिनी एकादशि (शुक्ल एकादशि)
बुद्ध जयंति; वैशाख स्नान समाप्ति (आगी हुण्णिमॆ)
धनिष्टा नवकारंभः  तथा समाप्ति 
अपरा एकादशि (कृष्ण एकादशि)
नरसिंह जयंति
वेदव्यास जयंति
कूर्म जयंति
शंकराचार्य जयंत
रामानुज जयंति
भावुका अमावास्या  दर्श   शनैश्चर जयंति  
ज्येष्ठ मास
दशहरा आरंभ
दशहरा समाप्ति  
निर्जला एकादशि (शुक्ल एकादशि)
वट सावित्रि व्रत   
कार हुण्णिमॆ  अनंगवाह पौर्णिमा 
योगिनी एकादशि (कृष्ण एकादशि)
दर्श    मृत्तिका वृषभ पूजा अमावास्या 
आषाढ मास
प्रथमा/शयनी एकादशि; तप्त मुद्रा धारण 
चातुर्मासारंभ (शुक्ल एकादशि) शाख व्रत 
चातुर्मास व्रतगळु 
गोपद्म व्रत 
गुरु पूर्णिम / व्यास पूर्णिम (हुण्णिमॆ)
अशून्यशयन व्रत 
कामिका एकादशि (कृष्ण एकादशि)
कर्क संक्रमण, दक्षिणायण पर्वकाल
दीप स्थंभ गौरि व्रत पूजा 
दर्श  भीमन अमवास्यॆ 
श्रावण मास 
नक्त व्रत  (केवल सुर्यास्ता नंतर भोजन माडुवुदु)  
नाग चौति (शुक्ल चौति)
नव नाग पूजन 
नाग पंचमि (शुक्ल पंचमि)
शुक्रवार लक्ष्मी पूजॆ
दुर्वा गणपति पूजन 
पुत्रदा एकादशि(शुक्ल एकादशि)
रक्षाबंधन (हुण्णिमॆ)
सुपोदन वर्ण षष्ठि 
श्री कृष्ण जयंति  गोकुलाष्टमि (कृष्णपक्ष अष्टमि) श्री कृष्ण जन्माष्टमि
राघवेंद्र स्वामिगळ आराधनॆ (कृष्ण बिदिगॆ)
अज एकादशि (कृष्ण एकादशि) पवित्रा रोपणं 
दर्श सोमवति अमावास्या 
कल्कि जयंति
श्री वरमहाक्ष्मी पूजॆ
मंगळ गौरि व्रत 
श्रावण शनिवार
ऋक् उपाकर्म
यम तर्पण  तर्पयामि ऎंदु (तंदॆ इरुववरु नीरिनल्लि अक्षतॆ हाकि बलगै हॆब्बॆरळिनिंद नीरु बीळुवंतॆ यम तर्पण बिडबेकु इतररु  नीरिनल्लि ऎळ्ळु हाकि बलगै हॆब्बॆरळिनिंद नीरु बीळुवंतॆ यम 
तर्पण बिडबेकु) यमं, धर्मराजं, मृत्युं, अंतकं, वैवस्वतं, कालं, सर्वभूत क्षयकरं, औदुम्बरम, दद्नं, नीलं, परमेष्टिनं, वृकॊदरं, चित्रं, चित्रगुप्तंतर्पयामि ई क्रिया नंतर ऎद्दु निंतु दक्षिणक्कॆ मुखमाडि कैजोडिसि हत्तु सल पठिस बेकु “ यमो निहंता पितृ धर्मराजो वैवस्वतो दंड धरश्चकाल: । प्रॆताधिपो दत्त कृतानुसारि क्रुतांत एतद् दश कृज्जपंति ॥ “
यजुर् उपाकर्म
रक्षा बंधन 
शिरियाळ षष्ठी
भाद्रपद मास
मौन व्रत 
साम वेदिनां उपाकर्म 
हरितालिका व्रत 
श्री विनायक चतुर्थि (शुक्ल चौति)
ऋषि पंचमि (शुक्ल पंचमि)
श्री स्वर्णगौरि पूजॆ
ज्येष्टा गौरि आवाहन 
ज्येष्टा गौरि पूजन 
ज्येष्टा गौरि विसर्जन 
अदु:ख नवमि 
परिवर्तिनी एकादशि (शुक्ल एकादशि)
अनंतपद्मनाभ व्रत (शुक्ल चतुर्दशि)
उमामहेश्वर व्रत (अनंत पौर्णिमा)
पितृपक्ष  महालय आरंभ (कृष्णपक्ष)
महाभरणी (कृष्ण चौति)
मध्याष्टमि (कृष्ण अष्टमि)
अविधवा नवमि (कृष्ण नवमि) अन्वाष्टका श्राद्ध 
इंदिरा एकादशि (कृष्ण एकादशि)
सन्यासिनां महालय 
कलियुगारंभ (कृष्ण त्रयोदशि)
शस्त्रादि हत घात चतुर्दशि (कृष्ण चतुर्दशि)
सर्वपितृ अमावास्यॆ / महालय अमावास्यॆ  गजच्चाया श्राद्ध 
आश्वयज मास  
घटस्थापन  नवरात्रारंभ  मातामह श्राद्ध 
सप्तरात्रोत्सव 
ललिता पंचमि पंचरात्रोत्सव 
शरन्नवरात्रि (शुक्ल पाड्य- नवमि)
सरस्वति पूजॆ (शुक्ल सप्तमि) त्रिरात्रोत्सव 
दुर्गाष्टमि  एकरात्रोत्सव 
महानवमि, आयुधपूजॆ (शुक्ल नवमि)
विजयदशमि / बन्निवृक्ष पूजॆ (शुक्ल दशमि)
मध्व जयंति 
पाशांकुशा एकादशि (शुक्ल एकादशि)
शरत् पूर्णिम / सीगॆ हुण्णिमॆ / कार्तिक स्नानारांभ (हुण्णिमॆ)
रमा एकादशि (कृष्ण एकादशि)
धन त्रयोदशि (कृष्ण त्रयोदशि) जलपूर्ण त्रयॊदशि (कृष्ण त्रयॊदशि) यम दीप दान 
कॊजागरि पौर्णिमा 
नरक चतुर्दशि,  नारी कृत निरांजन  यम तर्पण (कृष्ण चतुर्दशि)
प्रति हॆसरिन नंतर तर्पयामि ऎंदु (तंदॆ इरुववरु नीरिनल्लि अक्षतॆ हाकि बलगै हॆब्बॆरळिनिंद नीरु बीळुवंतॆ यम तर्पण बिडबेकु इतररु  नीरिनल्लि ऎळ्ळु हाकि बलगै हॆब्बॆरळिनिंद नीरु बीळुवंतॆ यम 
तर्पण बिडबेकु) यमं, धर्मराजं, मृत्युं, अंतकं, वैवस्वतं, कालं, सर्वभूत क्षयकरं, औदुम्बरम, दद्नं, नीलं, परमेष्टिनं, वृकॊदरं, चित्रं, चित्रगुप्तंतर्पयामि ई क्रिया नंतर ऎद्दु निंतु दक्षिणक्कॆ मुखमाडि कैजोडिसि हत्तु सल पठिस बेकु “ यमो निहंता पितृ धर्मराजो वैवस्वतो दंड धरश्चकाल: । प्रॆताधिपो दत्त कृतानुसारि क्रुतांत एतद् दश कृज्जपंति ॥ “
दीपावळि अमावास्यॆ (अमावास्यॆ) श्री महा लक्ष्मी पूजा 
कार्तीक मास
बलिपाड्य (शुक्ल पाड्य) पुस्तक पूजॆ  गोवर्धन पूजा  
अन्न कूट 
यम द्वितीया भगिनि हस्तेन भोजनं 
पांडव पंचमि 
यम तर्पण 
प्रति हॆसरिन नंतर तर्पयामि ऎंदु (तंदॆ इरुववरु नीरिनल्लि अक्षतॆ हाकि बलगै हॆब्बॆरळिनिंद नीरु बीळुवंतॆ यम तर्पण बिडबेकु इतररु  नीरिनल्लि ऎळ्ळु हाकि बलगै हॆब्बॆरळिनिंद नीरु बीळुवंतॆ यम 
तर्पण बिडबेकु) यमं, धर्मराजं, मृत्युं, अंतकं, वैवस्वतं, कालं, सर्वभूत क्षयकरं, औदुम्बरम, दद्नं, नीलं, परमेष्टिनं, वृकॊदरं, चित्रं, चित्रगुप्तंतर्पयामि ई क्रिया नंतर ऎद्दु निंतु दक्षिणक्कॆ मुखमाडि कैजोडिसि हत्तु सल पठिस बेकु “ यमो निहंता पितृ धर्मराजो वैवस्वतो दंड धरश्चकाल: । प्रॆताधिपो दत्त कृतानुसारि क्रुतांत एतद् दश कृज्जपंति ॥ “ 
कृतयुगारंभ (शुक्ल नवमि)   कूष्मांड नवमि  
प्रबोधिनी एकादशि; भीष्मपंचकव्रतारंभ; चातुर्मास समाप्ति (शुक्ल एकादशि) 
महालय गौण काल समाप्त
उत्थान द्वादशि; तुळसि पूजॆ (शुक्ल द्वादशि)
वैकुंठ चतुर्दशि (शुक्ल चतुर्दशि) धात्रि पूजा तुळसी विवाह समाप्ति 
भीष्मपंचकव्रत समाप्ति; कार्तिकस्नान समाप्ति  त्रिपुरारि हुण्णिमॆ
उत्पत्ति एकादशि (कृष्ण एकादशि)
काळभैरव जयंति
धन्वंतरि जयंति
कनकदास जयंति 
दर्श  छट्टि अमावास्या  
मार्गशीर्ष मास  
चंपा षष्ठि  मार्तंड भैरवोत्थापन 
दुर्गाष्टमि 
खंडोबा नवरात्रि शड्रात्रोत्सव आरंभ 
मोक्षदा एकादशि, गीता जयंति (शुक्ल एकादशि)
हनुमद् व्रत   धनुर् मास आरंभ 
दत्तात्रेय जयंति (हॊस्तिल हुण्णिमॆ)
भानु सप्तमि 
सफला एकादशि (कृष्ण एकादशि)
स्कंद षष्ठी
विष्णु दीपोत्सव 
हुत्तरी हब्ब - धान्यलक्ष्मी पूजॆ 
कालभैरवाष्टमि 
दर्श ऎळ्ळु अमवास्यॆ 
पुष्य मास
शाखम्बरि पूजा  पर्जन्य वृष्टिगागि 
पुत्रदा एकादशि; वैकुंठ एकादशि (शुक्ल एकादशि)
मुक्कोटि द्वादशि (शुक्ल द्वादशि)  भोगि  धनुर् मास समाप्ति
बनद हुण्णिमॆ / माघस्नानारंभ (हुण्णिमॆ)
त्यागराज आराधन (कृष्ण पंचमि)
षट्तिला एकादशि (कृष्ण एकादशि)
दर्श सोमवति अवरात्रि अमावास्या 
मकर संक्रांति 
उत्तरायण पर्वकाल
माघ मास
विनायक चतुर्थि गणेश जयंति 
सूर्यनारायण पूजॆ
वसंत पंचमि 
भोगि   
रथ सप्तमि अर्क पर्ण सह स्नान कुष्मांड दान 
वसंत पंचमि (शुक्ल पंचमि)
भोगी (शुक्ल षष्ठि)
भीष्मा ष्टमि (शुक्ल अष्टमि)
श्री मध्व नवमि श्रीमदानंद तिर्थानां बदरिकाश्रम प्रवेशः 
जय एकादशि (शुक्ल एकादशि)
भीष्म द्वादशि  जल तर्पणादिकं 
माघस्नान समाप्ति; द्वापरयुगादि (भारत हुण्णीमॆ)
गुरु प्रतिपदा 
यलगुर क्षेत्रे प्राणदेव कार्तिकॊत्सव  
सीता जयंति (कृष्ण अष्टमि)
श्री रामदास नवमि 
विजय एकादशि (कृष्ण एकादशि)
महाशिवरात्रि (कृष्ण त्रयोदशि)
दर्श  शिवरात्रि अमावास्या 
फाल्गुण मास
पयो व्रतारंभ 
आमलकी एकादशि (शुक्ल एकादशि)
पयो व्रत समाप्ति 
हुताशनि पौर्णिमा होळि हुण्णिमॆ
वसंतोत्सव (कृष्ण प्रतिपद)
धूलिवंदन  आम्र कुसुम प्राशन 
संकष्ट चतुर्थि 
रंग पंचमि (कृष्ण पंचमि)
संत एकनाथ षष्ठि  
कालाष्टमि 
पापमोचनि एकादशि (कृष्ण एकादशि)
शिवरात्रि  चतुर्दशि श्राद्ध 
दर्श, युगादि अमावास्य 


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