कौषितक
|
एत्तरेय
गुह्य
सुत्रः शांखायन आश्वलायन
धर्मसुत्रः
वशिष्ट
|
एत्तरेय
बाष्कल्य कौषितक
|
होतारः
|
|||
यजुर्वेद
अध्याय
४० मन्त्रः १९७५
उपवेद
– धनुर्वेद शुक्ल
सुत्रः- कात्यायन
कृष्ण
–
सुत्रःआपस्तंब,
हिरण्यकेषि
बौधायन,
भारद्वाज,मानव, वैखानस
|
शुक्ल
|
माध्यंदिन
काण्व (शाखाः १६ शेष -२)
|
शतपथ
(मा)
शतपथ
(का)
|
बृहदारण्यक
(मा) बृहदारण्यक (का) गुह्य सुत्रःपारस्कर
धर्मसुत्रः
शंखलिखित
|
बृहदारण्यक
ईशावास्य
शिवसंकल्प
|
कृष्ण यजुष
|
कृष्ण
|
तैत्तरिय
मैत्रायणि काठक कपिष्ठल
|
तैत्तरिय
|
तैत्तरिय
मैत्रायणि गुह्यसुत्रः=
श्रौतसूत्रः
=
धर्मसुत्रः
|
तैत्तरिय
महानारायण मैत्रि
कठ
श्वेताश्वतर
|
||
सामवेद
ऋचः
१८१०
उपवेद
– गांधर्व
सुत्रः लाट्यायन,द्राह्मायण आर्षेय, |
कौथुम
राणायनि जैमिनी (शाखाः–१०००
शेषः
-३)
|
तांड्यमहा
ब्राह्मण,
पंचविंश,
षड्
विंश, विंश,
सामविधान.
|
गुह्यसुत्रः
गोभिल, खादिर
धर्मसुत्रः
गौतम
|
केन,
छांदोग्य
|
उद्गाता
|
|
अथर्वण
ऋचः ६००० कर्म कांड २० प्रपाठक ३४ अनुवाक १११ सूक्त ७३१ मंत्र ५८३९
स्थापत्य,
इतिहास, पुराण, सर्प,
पिशाच्य,
असुर,
इत्यादि
सूत्र
– वैतान
|
शौनक
पैप्पलाद (शाखाः ९ शेष -२)
|
गोपथ
|
गुह्यसुत्रः
कौशिक
|
प्रश्न,
मुंडक,
मांडुक्य,
अथर्व,
शिका
इत्यादि
५२
|
ब्रह्माः
|
वैदिक साहित्य काल संबंधित अनुमान =
प्रथमः
सर् मैक्समुल्लर
– वेद निर्माण काल गणना इ स पू १२०० / ६००
द्वितीयः
सर् जर्मन विद्वान् विंटर निटज् -
वेद निर्माण काल गणना इ स पू २५०० / २०००
तृतीयः श्री तिलक तथा याकोबी - वेद
निर्माण काल गणना (ग्रह नक्षत्र तिथिगति आधार )इ स पू ४५००
चतुर्थः
श्री अविनाशचंद्र दास तथा पावगी - वेद
निर्माण काल गणना ऋग्वेदस्थित वर्णित भूगर्भ विषयक
साक्षी अन्वयो कित्येक लक्ष वर्ष पूर्व निर्माण:
साक्षी अन्वयो कित्येक लक्ष वर्ष पूर्व निर्माण:
संहिता : मंत्र
विभाग
ब्राह्मण : कर्म कांड गद्य विवेचन
आरण्यक : कर्म
कांड उद्येश विवेचन
उपनिषद् : आत्मा
तथा परमात्मा द्वयस्याभावोऽस्ति संबंध
दार्शनिक एवं ज्ञान पूर्वक वर्णन
श्रौतसूत्रः
= वैदिक यज्ञ संबंधी कर्मकांड, गुह्यसुत्रः
= गृहस्थ दैनिक यज्ञ,
धर्मसुत्रः
= सामाजिक नियम, शल्बसुत्रः =
श्रौत सूत्रःस्य संबंधितः यज्ञ स्थान यज्ञ वेदि यज्ञ निर्माण आदि विश्रुत वर्णन
तथा
भारतीय ज्यामिति संबंधितः प्राचितम श्रोत ग्रंथः
भारतीय ज्यामिति संबंधितः प्राचितम श्रोत ग्रंथः
ऋग्वेद
संहिता : यह दस मंडलोमे विभक्त हो गया है | सूक्त
रुपमे देवतावोंके स्तुति सम्मिलित है | यह
भव्य उदात्त और काव्यमय देखाजाता है |
इसमेका अधिकतम सुक्तोंकी रचना पंच नदीयों की क्षेत्र मे हुई है | ये सूक्तादि होतृ गणसे पठी जाति थि | उस समय आर्य संस्कृति अफगाणिस्तानसे गंगा-यमुना नदी तट तक फ़ैले हुए थे | ऋग्वेदमे कुभा ( काबूल ), सुवास्तु (स्वात ), क्रमु (कुर्रम),गोमती (गोमल ), सिंधु ,गंगा , यमुना , सरस्वती
तथा शतुद्रि ( सतलज् ), विपाशा ( व्यास ), परुष्णि (रावी ), असिवनि ( चिनाब ),और वितस्ता ( झैलम ) पांच नदियों के सिंचित भरत वर्ष के क्षेत्र मे आर्य संस्कृति का उदय ऐसा माना जाता है |
इसमेका अधिकतम सुक्तोंकी रचना पंच नदीयों की क्षेत्र मे हुई है | ये सूक्तादि होतृ गणसे पठी जाति थि | उस समय आर्य संस्कृति अफगाणिस्तानसे गंगा-यमुना नदी तट तक फ़ैले हुए थे | ऋग्वेदमे कुभा ( काबूल ), सुवास्तु (स्वात ), क्रमु (कुर्रम),गोमती (गोमल ), सिंधु ,गंगा , यमुना , सरस्वती
तथा शतुद्रि ( सतलज् ), विपाशा ( व्यास ), परुष्णि (रावी ), असिवनि ( चिनाब ),और वितस्ता ( झैलम ) पांच नदियों के सिंचित भरत वर्ष के क्षेत्र मे आर्य संस्कृति का उदय ऐसा माना जाता है |
यजुर्वेद
संहिता : इस संहिता मे यज्ञ विषयक मंत्रों का
समुच्चय है | यज्ञ के समय अध्वर्यु गणसे मंत्र पठी जाति थि | ऋग्वेद मे आर्योका कार्य पंच
नदीयों की क्षेत्र मे है | ततः कुरु –पांचाल, कुरु –सतलज तथा यमुना यहि क्षेत्र आर्य संकृतिका केंद्र बिंदु था | ऋग्वेद मे धर्मोपासना को प्राधान्यता
रहते किंतु यजुर्वेद मे शुक्ल यजुष ,और कृष्ण यजुष दो विभाग, शुक्ल यजुषमे स्वरयुक्त, छंदोबद्ध मन्त्र सहित गद्यात्मक भाग भी है | कृष्ण यजुष
मे केवल मंत्रोका समुच्चय है |
नदीयों की क्षेत्र मे है | ततः कुरु –पांचाल, कुरु –सतलज तथा यमुना यहि क्षेत्र आर्य संकृतिका केंद्र बिंदु था | ऋग्वेद मे धर्मोपासना को प्राधान्यता
रहते किंतु यजुर्वेद मे शुक्ल यजुष ,और कृष्ण यजुष दो विभाग, शुक्ल यजुषमे स्वरयुक्त, छंदोबद्ध मन्त्र सहित गद्यात्मक भाग भी है | कृष्ण यजुष
मे केवल मंत्रोका समुच्चय है |
साम
वेद संहिता : इसमे गायन योग्य मंत्रोम्का संचय है | यज्ञ
मे जिस देवतावोंकेलिये आवाहन किया जाता था | देवतावोंको आवाहित मंत्र उद्गातृ
उचित स्वरयुक्त स्तुति मंत्र गाया करते थे | प्रायः ऋग्वेद सूक्त ही गाते थे | अतः सामवेद मे ऋचांये सम्मिलित है | भारतीय संगीत संस्कृति का
मूल इसी संहिता मे उपलब्ध है |
उचित स्वरयुक्त स्तुति मंत्र गाया करते थे | प्रायः ऋग्वेद सूक्त ही गाते थे | अतः सामवेद मे ऋचांये सम्मिलित है | भारतीय संगीत संस्कृति का
मूल इसी संहिता मे उपलब्ध है |
अथर्वण
वेद संहिता : यज्ञो मे इस संहिता का संबंध बहुत कम है | यह
विभिन्न प्रकारोंकी औषधिया तथा रोग, रुग्ण लक्षण ,रोगात्मक किटाणु
वोंका दमन ,शमन भूत पिशाच्य उच्चाटन ,सर्प दंश विषयक मंत्र व प्रक्रिया, यंत्र शास्त्र, स्थापत्य शास्त्र इत्यादियोंका उल्लेख है | ये सब
मंत्रोम्का प्रयोग ब्रह्मा लोग किया करते थे |
वोंका दमन ,शमन भूत पिशाच्य उच्चाटन ,सर्प दंश विषयक मंत्र व प्रक्रिया, यंत्र शास्त्र, स्थापत्य शास्त्र इत्यादियोंका उल्लेख है | ये सब
मंत्रोम्का प्रयोग ब्रह्मा लोग किया करते थे |
समग्र
प्राणिमात्रोंका,मानव जातिका सुखमय जीवन केलिये,सातत्यता केलिये सभी नियोजनाये उल्लिखित चतुर्वेद मे दिखांये
देता है | ये चारही संहितावोंका समग्र एकत्रित समुच्चय हुवा करता था | लेकिन यज्ञ प्रक्रिया के संबंध, यज्ञ सिद्धि के संबंध विनियोग के हेतु
श्री व्यास महर्षि ने चार भागो मे विभजित कर दिया |
देता है | ये चारही संहितावोंका समग्र एकत्रित समुच्चय हुवा करता था | लेकिन यज्ञ प्रक्रिया के संबंध, यज्ञ सिद्धि के संबंध विनियोग के हेतु
श्री व्यास महर्षि ने चार भागो मे विभजित कर दिया |
||
लोका समस्ताः सुखिनो भवंतु ||
No comments:
Post a Comment