Monday, February 25, 2019

Vishnusahasranam Stotram AVAKAHADA Chakra ( अवकहड चक्र एवं विष्णु सहस्रनाम स्तोत्रम् )

                                                                                                                                                  संग्रहित 
AVAKAHADA  CHAKRA Vishnusahasranam Stotram
 ( अवकहड चक्र एवं विष्णु सहस्रनाम स्तोत्रम् )                                                              



 ॥ हरिः ॐ ॥

मेषअश्विनि नक्षत्र,  प्रथम चरण    चू                                         
विश्वं विष्णुर्वषट्कारो भूतभव्यभवत्प्रभुः।
भूतकृद्भूतभृद्भावो भूतात्मा भूतभावनः        ॥१॥    
       
मेष अश्विनि नक्षत्र,  द्वितीय  चरण    चे 

भूतात्मा परमात्मा च मुक्तानां परमा गतिः।
अव्ययः पुरुषः साक्षी क्षेत्रज्ञोऽक्षर एव च       ॥२॥

मेष राशी, अश्विनि नक्षत्र,  तृतीय  चरण     चो 
योगो योगविदां नेता प्रधानपुरुषेश्वरः।
नारसिंहवपुः श्रीमान् केशवः पुरुषोत्तमः      ॥३॥

मेष राशी, अश्विनि नक्षत्र,  चतुर्थ  चरण      ला 
सर्वः शर्वः शिवः स्थाणुर्भूतादिर्निधिरव्ययः।
संभवो भावनो भर्ता प्रभवः प्रभुरीश्वरः         ॥४॥

मेष राशी, भरणी नक्षत्र,  प्रथम  चरण      ली 
स्वयंभूः शम्भुरादित्यः पुष्कराक्षो महास्वनः।
अनादिनिधनो धाता विधाता धातुरुत्तमः    ॥५॥

मेष राशी, भरणी नक्षत्र, द्वितीय  चरण      लू 



अप्रमेयो हृषीकेशः पद्मनाभोऽमरप्रभुः।
विश्वकर्मा मनुस्त्वष्टा स्थविष्ठःस्थविरो ध्रुवः॥६॥

मेष राशी, भरणी नक्षत्र, तृतीय चरण      ले 
अग्राह्यः शाश्वतः कृष्णो लोहिताक्षः प्रतर्दनः।
प्रभूतस्त्रिककुब्धाम पवित्रं मङ्गलं परम्         ॥७॥

मेष राशी, भरणी नक्षत्र, चतुर्थ चरण     लो 
ईशानः प्राणदः प्राणो ज्येष्ठः श्रेष्ठः प्रजापतिः।
हिरण्यगर्भो भूगर्भो माधवो मधुसूदनः            ॥८॥

मेष राशी, कृतिका नक्षत्र,  प्रथम चरण     आ 
ईश्वरो विक्रमी धन्वी मेधावी विक्रमः क्रमः।
अनुत्तमो दुराधर्षः कृतज्ञः कृतिरात्मवान्       ॥९॥

वृषभ राशी कृतिका नक्षत्र,  द्वितीय चरण     ई 



सुरेशः शरणं शर्म विश्वरेताः प्रजाभवः।
अहः संवत्सरो व्यालः प्रत्ययः सर्वदर्शनः        ॥१०॥

वृषभ राशी कृतिका नक्षत्र, तृतीय चरण    ऊ 
अजः सर्वेश्वरः सिद्धः सिद्धिः सर्वादिरच्युतः।
वृषाकपिरमेयात्मा सर्वयोगविनिःसृतः           ॥११॥

वृषभ राशी  कृतिका नक्षत्र, चतुर्थ चरण     ए 
वसुर्वसुमनाः सत्यः समात्माऽसम्मितः समः।
अमोघः पुण्डरीकाक्षो वृषकर्मा वृषाकृतिः        ॥१२॥

वृषभ राशी रोहिणी नक्षत्र,  प्रथम चरण     ओ 
रुद्रो बहुशिरा बभ्रुर्विश्वयोनिः शुचिश्रवाः।
अमृतः शाश्वत स्थाणुर्वरारोहो महातपाः       ॥१३॥

वृषभ रोहिणी नक्षत्र, द्वितीय  चरण     वा 
सर्वगः सर्वविद्भानुर्विष्वक्सेनो जनार्दनः।
वेदो वेदविदव्यङ्गो वेदाङ्गो वेदवित् कविः   ॥१४॥


वृषभ राशी  रोहिणी नक्षत्र, तृतीय चरण     वी 
लोकाध्यक्षः सुराध्यक्षो धर्माध्यक्षः कृताकृतः।
चतुरात्मा चतुर्व्यूहश्चतुर्दंष्ट्रश्चतुर्भुजः         ॥१५॥

वृषभ राशी रोहिणी नक्षत्र, चतुर्थ चरण     वू 
भ्राजिष्णुर्भोजनं भोक्ता सहिष्णुर्जगदादिजः।
अनघो विजयो जेता विश्वयोनिः पुनर्वसुः      ॥१६॥

वृषभ राशी  मृगशिर नक्षत्र,  प्रथम चरण     वे 
उपेन्द्रो वामनः प्रांशुरमोघः शुचिरूर्जितः।
अतीन्द्रः संग्रहः सर्गो धृतात्मा नियमो यमः  ॥१७॥

वृषभ मृगशिर नक्षत्र, द्वितीय चरण     वो 



वेद्यो वैद्यः सदायोगी वीरहा माधवो मधुः।
अतीन्द्रियो महामायो महोत्साहो महाबलः    ॥१८॥

मिथुन राशी  मृगशिर नक्षत्र, तृतीय चरण      का 
महाबुद्धिर्महावीर्यो महाशक्तिर्महाद्युतिः।
अनिर्देश्यवपुः श्रीमानमेयात्मा महाद्रिधृक्    ॥१९॥

मिथुन राशी  मृगशिर नक्षत्र, चतुर्थ       की 
महेष्वासो महीभर्ता श्रीनिवासः सतां गतिः।
अनिरुद्धः सुरानन्दो गोविन्दो गोविदां पतिः  ॥२०॥



मिथुन राशी  आरिद्रा  नक्षत्र  प्रथम चरण      कू 
मरीचिर्दमनो हंसः सुपर्णो भुजगोत्तमः।
हिरण्यनाभः सुतपाः पद्मनाभः प्रजापतिः       ॥२१॥

मिथुन आरिद्रा नक्षत्र  द्वितीय चरण      घ 
अमृत्युः सर्वदृक् सिंहः सन्धाता सन्धिमान् स्थिरः। अजो दुर्मर्षणः शास्ता विश्रुतात्मा सुरारिहा     ॥२२॥



मिथुन  आरिद्रा  नक्षत्र  तृतीय  चरण       
गुरुर्गुरुतमो धाम सत्यः सत्यपराक्रमः।
निमिषोऽनिमिषः स्रग्वी वाचस्पतिरुदारधीः   ॥२३॥

मिथुन राशी  आरिद्रा  नक्षत्र  चतुर्थ चरण      छ 
अग्रणीर्ग्रामणीः श्रीमान् न्यायो नेता समीरणः।
सहस्रमूर्धा विश्वात्मा सहस्राक्षः सहस्रपात्      ॥२४॥

मिथुन राशी  पुनर्वसु  नक्षत्र  प्रथम चरण      के 
आवर्तनो निवृत्तात्मा संवृतः संप्रमर्दनः।
अहः संवर्तको वह्निरनिलो धरणीधरः           ॥२५॥

मिथुन  पुनर्वसु  नक्षत्र  द्वितीय चरण      को 
सुप्रसादः प्रसन्नात्मा विश्वधृग्विश्वभुग्विभुः।
सत्कर्ता सत्कृतः साधुर्जह्नुर्नारायणो नरः      ॥२६॥

मिथुन राशी  पुनर्वसु  नक्षत्र  तृतीय चरण      हा 
असंख्येयोऽप्रमेयात्मा विशिष्टः शिष्टकृच्छुचिः।
सिद्धार्थः सिद्धसंकल्पः सिद्धिदः सिद्धिसाधनः  ॥२७॥

कर्क राशी  पुनर्वसु  नक्षत्र  चतुर्थ चरण      ही 
वृषाही वृषभो विष्णुर्वृषपर्वा वृषोदरः।
वर्धनो वर्धमानश्च विविक्तः श्रुतिसागरः        ॥२८॥

कर्क राशी  पुष्य नक्षत्र  प्रथम चरण      हू 
सुभुजो दुर्धरो वाग्मी महेन्द्रो वसुदो वसुः।
नैकरूपो बृहद्रूपः शिपिविष्टः प्रकाशनः           ॥२९॥

कर्क  पुष्य  नक्षत्र  द्वितीय चरण     हे  
ओजस्तेजोद्युतिधरः प्रकाशात्मा प्रतापनः।
ऋद्धः स्पष्टाक्षरो मन्त्रश्चन्द्रांशुर्भास्करद्युतिः  ॥३०॥


कर्क राशी  पुष्य नक्षत्र  तृतीय चरण     हो 
अमृतांशूद्भवो भानुः शशबिन्दुः सुरेश्वरः।
औषधं जगतः सेतुः सत्यधर्मपराक्रमः              ॥३१॥

कर्क राशी  पुष्य नक्षत्र  चतुर्थ चरण      डा 
भूतभव्यभवन्नाथः पवनः पावनोऽनलः।
कामहा कामकृत्कान्तः कामः कामप्रदः प्रभुः     ॥३२॥

कर्क राशी  आश्लेषा नक्षत्र प्रथम चरण     डी 
युगादिकृद्युगावर्तो नैकमायो महाशनः। 
अदृश्यो व्यक्तरूपश्च सहस्रजिदनन्तजित्        ॥३३॥

कर्क राशी  आश्लेषा नक्षत्र द्वितीय चरण     डू 



इष्टोऽविशिष्टः शिष्टेष्टः शिखण्डी नहुषो वृषः।
क्रोधहा क्रोधकृत्कर्ता विश्वबाहुर्महीधरः             ॥३४॥

कर्क राशी  आश्लेषा नक्षत्र तृतीय चरण     डे 
अच्युतः प्रथितः प्राणः प्राणदो वासवानुजः।
अपांनिधिरधिष्ठानमप्रमत्तः प्रतिष्ठितः          ॥३५॥

कर्क राशी  आश्लेषा नक्षत्र चतुर्थ चरण     डो 
स्कन्दः स्कन्दधरो धुर्यो वरदो वायुवाहनः।
वासुदेवो बृहद्भानुरादिदेवः पुरन्दरः                    ॥३६॥

सिंह राशी  मघा क्षत्र प्रथम चरण      मा 
अशोकस्तारणस्तारः शूरः शौरिर्जनेश्वरः।
अनुकूलः शतावर्तः पद्मी पद्मनिभेक्षणः              ॥३७॥

सिंह राशी  मघा क्षत्र द्वितीय चरण     मी 
पद्मनाभोऽरविन्दाक्षः पद्मगर्भः शरीरभृत्।
महर्द्धिरृद्धो वृद्धात्मा महाक्षो गरुडध्वजः             ॥३८॥



सिंह राशी  मघा क्षत्र तृतीय चरण     मू 
अतुलः शरभो भीमः समयज्ञो हविर्हरिः।
सर्वलक्षणलक्षण्यो लक्ष्मीवान् समितिञ्जयः    ॥३९॥

सिंह राशी  मघा क्षत्र चतुर्थ चरण     मे 
विक्षरो रोहितो मार्गो हेतुर्दामोदरः सहः।
महीधरो महाभागो वेगवानमिताशनः             ॥४०॥

सिंह राशी  पूर्वा  नक्षत्र  प्रथम चरण     मो 
उद्भवः क्षोभणो देवः श्रीगर्भः परमेश्वरः।
करणं कारणं कर्ता विकर्ता गहनो गुहः            ॥४१॥

सिंह राशी  पूर्वा  नक्षत्र  द्वितीय चरण     टा 



व्यवसायो व्यवस्थानः संस्थानः स्थानदो ध्रुवः।
परर्द्धिः परमस्पष्टस्तुष्टः पुष्टः शुभेक्षणः       ॥४२॥

सिंह राशी  पूर्वा  नक्षत्र  तृतीय चरण    टी
रामो विरामो विरजो मार्गो नेयो नयोऽनयः।
वीरः शक्तिमतां श्रेष्ठो धर्मो धर्मविदुत्तमः     ॥४३॥

सिंह राशी  पूर्वा  नक्षत्र  चतुर्थ चरण     टू
वैकुण्ठः पुरुषः प्राणः प्राणदः प्रणवः पृथुः।
हिरण्यगर्भः शत्रुघ्नो व्याप्तो वायुरधोक्षजः     ॥४४॥

सिंह राशी उत्तरा नक्षत्र  प्रथम चरण     टे 
ऋतुः सुदर्शनः कालः परमेष्ठी परिग्रहः।
उग्रः संवत्सरो दक्षो विश्रामो विश्वदक्षिणः      ॥४५॥

कन्या राशी   उत्तरा नक्षत्र  द्वितीय चरण     टो 

विस्तारः स्थावरस्थाणुः प्रमाणं बीजमव्ययम्।
अर्थोऽनर्थो महाकोशो महाभोगो महाधनः       ॥४६॥

कन्या राशी   उत्तरा नक्षत्र  तृतीय चरण    पा 
अनिर्विण्णः स्थविष्ठोऽभूर्धर्मयूपो महामखः।
नक्षत्रनेमिर्नक्षत्री क्षमः क्षामः समीहनः           ॥४७॥

कन्या राशी  उत्तरा नक्षत्र चतुर्थ चरण     पी 
यज्ञ इज्यो महेज्यश्च क्रतुः सत्रं सतां गतिः।
सर्वदर्शी विमुक्तात्मा सर्वज्ञो ज्ञानमुत्तमम्    ॥४८॥

कन्या राशी  हस्ता नक्षत्र  प्रथम चरण     पू 
सुव्रतः सुमुखः सूक्ष्मः सुघोषः सुखदः सुहृत्।
मनोहरो जितक्रोधो वीरबाहुर्विदारणः              ॥४९॥

कन्या  हस्ता नक्षत्र  द्वितीय चरण     षा 
स्वापनः स्ववशो व्यापी नैकात्मा नैककर्मकृत्।
वत्सरो वत्सलो वत्सी रत्नगर्भो धनेश्वरः         ॥५०॥



कन्या राशी  हस्ता नक्षत्र  तृतीय चरण    णा 
धर्मगुब्धर्मकृद्धर्मी सदसत्क्षरमक्षरम्।
अविज्ञाता सहस्रांशुर्विधाता कृतलक्षणः          ॥५१॥

कन्या राशी  हस्ता नक्षत्र  चतुर्थ चरण    ठा 
गभस्तिनेमिः सत्त्वस्थः सिंहो भूतमहेश्वरः।
आदिदेवो महादेवो देवेशो देवभृद्गुरुः              ॥५२॥

कन्या राशी चित्रा नक्षत्र प्रथम चरण     पे 
उत्तरो गोपतिर्गोप्ता ज्ञानगम्यः पुरातनः।
शरीरभूतभृद्भोक्ता कपीन्द्रो भूरिदक्षिणः          ॥५३॥

कन्या   चित्रा नक्षत्र  द्वितीय चरण    पो 


सोमपोऽमृतपः सोमः पुरुजित्पुरुसत्तमः।
विनयो जयः सत्यसंधो दाशार्हः सात्त्वतांपतिः  ॥५४॥

तुला राशी  चित्रा नक्षत्र  तृतीय चरण    रा 
जीवो विनयिता साक्षी मुकुन्दोऽमितविक्रमः।
अम्भोनिधिरनन्तात्मा महोदधिशयोऽन्तकः     ॥५५॥

तुला राशी  चित्रा नक्षत्र  चतुर्थ चरण     री 
अजो महार्हः स्वाभाव्यो जितामित्रः प्रमोदनः।
आनन्दो नन्दनो नन्दः सत्यधर्मा त्रिविक्रमः       ॥५६॥

तुला  राशी  स्वाति नक्षत्र प्रथम चरण     रु  
महर्षिः कपिलाचार्यः कृतज्ञो मेदिनीपतिः।
त्रिपदस्त्रिदशाध्यक्षो महाशृङ्गः कृतान्तकृत्      ॥५७॥

तुला  स्वाति नक्षत्र  द्वितीय चरण     रे 
महावराहो गोविन्दः सुषेणः कनकाङ्गदी।
गुह्यो गभीरो गहनो गुप्तश्चक्रगदाधरः             ॥५८॥



तुला राशी   स्वाति नक्षत्र  तृतीय चरण      रो 
वेधाः स्वाङ्गोऽजितः कृष्णो दृढः संकर्षणोऽच्युतः।
वरुणो वारुणो वृक्षः पुष्कराक्षो महामनाः            ॥५९॥

तुला राशी  स्वाति नक्षत्र  चतुर्थ चरण     ता 
भगवान् भगहाऽऽनन्दी वनमाली हलायुधः।
आदित्यो ज्योतिरादित्यः सहिष्णुर्गतिसत्तमः   ॥६०॥

तुला राशी विशाखा नक्षत्र प्रथम चरण     ती 
सुधन्वा खण्डपरशुर्दारुणो द्रविणप्रदः।
दिवःस्पृक् सर्वदृग्व्यासो वाचस्पतिरयोनिजः    ॥६१॥

तुला विशाखा नक्षत्र  द्वितीय चरण    तू  
त्रिसामा सामगः साम निर्वाणं भेषजं भिषक्।
संन्यासकृच्छमः शान्तो निष्ठा शान्तिः परायणम्॥६२॥



तुला राशी  विशाखा नक्षत्र  तृतीय चरण     ते 
शुभाङ्गः शान्तिदः स्रष्टा कुमुदः कुवलेशयः।
गोहितो गोपतिर्गोप्ता वृषभाक्षो वृषप्रियः         ॥६३॥

वृश्चिक  राशी  विशाखा नक्षत्र  चतुर्थ चरण    तो  
अनिवर्ती निवृत्तात्मा संक्षेप्ता क्षेमकृच्छिवः।
श्रीवत्सवक्षाः श्रीवासः श्रीपतिः श्रीमतांवरः     ॥६४॥

वृश्चिक राशी अनुराधा नक्षत्र  प्रथम चरण    ना 
श्रीदः श्रीशः श्रीनिवासः श्रीनिधिः श्रीविभावनः।
श्रीधरः श्रीकरः श्रेयः श्रीमाँल्लोकत्रयाश्रयः     ॥६५॥

वृश्चि अनुराधा  द्वितीय चरण     नी 
स्वक्षः स्वङ्गः शतानन्दो नन्दिर्ज्योतिर्गणेश्वरः।
विजितात्माऽविधेयात्मा सत्कीर्तिश्छिन्नसंशयः॥६६॥



वृश्चिक राशी  अनुराधा नक्षत्र  तृतीय चरण       नू
उदीर्णः सर्वतश्चक्षुरनीशः शाश्वतस्थिरः।
भूशयो भूषणो भूतिर्विशोकः शोकनाशनः         ॥६७॥

वृश्चिक राशी  अनुराधा नक्षत्र  चतुर्थ चरण    ने 
अर्चिष्मानर्चितः कुम्भो विशुद्धात्मा विशोधनः।
अनिरुद्धोऽप्रतिरथः प्रद्युम्नोऽमितविक्रमः      ॥६८॥

वृश्चिक  राशी ज्येष्ठा नक्षत्र  प्रथम चरण     नो
कालनेमिनिहा वीरः शौरिः शूरजनेश्वरः।
त्रिलोकात्मा त्रिलोकेशः केशवः केशिहा हरिः    ॥६९॥

वृश्चिक ज्येष्ठा नक्षत्र  द्वितीय चरण     या 
कामदेवः कामपालः कामी कान्तः कृतागमः।
अनिर्देश्यवपुर्विष्णुर्वीरोऽनन्तो धनंजयः        ॥७०॥


वृश्चिक  राशी ज्येष्ठा नक्षत्र  तृतीय चरण     यी
ब्रह्मण्यो ब्रह्मकृद् ब्रह्मा ब्रह्म ब्रह्मविवर्धनः।
ब्रह्मविद् ब्राह्मणो ब्रह्मी ब्रह्मज्ञो ब्राह्मणप्रियः॥७१॥

वृश्चिक राशी  ज्येष्ठा नक्षत्र  चतुर्थ चरण     यू 
महाक्रमो महाकर्मा महातेजा महोरगः।
महाक्रतुर्महायज्वा महायज्ञो महाहविः             ॥७२॥

धनु राशी  मूला नक्षत्र  प्रथम चरण     ये  
स्तव्यः स्तवप्रियः स्तोत्रं स्तुतिः स्तोता रणप्रियः।
पूर्णः पूरयिता पुण्यः पुण्यकीर्तिरनामयः          ॥७३॥

धनु मूला नक्षत्र  द्वितीय चरण     यो   



मनोजवस्तीर्थकरो वसुरेता वसुप्रदः।
वसुप्रदो वासुदेवो वसुर्वसुमना हविः                ॥७४॥

धनु राशी  मूला नक्षत्र  तृतीय चरण     भा   
सद्गतिः सत्कृतिः सत्ता सद्भूतिः सत्परायणः।
शूरसेनो यदुश्रेष्ठः सन्निवासः सुयामुनः       ॥७५॥

धनु राशी  मूला नक्षत्र  चतुर्थ चरण     भी   
 भूतावासो वासुदेवः सर्वासुनिलयोऽनलः।
दर्पहा दर्पदो दृप्तो दुर्धरोऽथापराजितः          ॥७६॥

धनु राशी  पूर्वाषाढा नक्षत्र  प्रथम चरण     भू   
विश्वमूर्तिर्महामूर्तिर्दीप्तमूर्तिरमूर्तिमान्।
अनेकमूर्तिरव्यक्तः शतमूर्तिः शताननः      ॥७७॥

धनु  पूर्वाषाढा नक्षत्र  द्वितीय चरण     धा 

एको नैकः सवः कः किं यत् तत्पदमनुत्तमम्।
लोकबन्धुर्लोकनाथो माधवो भक्तवत्सलः   ॥७८॥

धनु राशी  पूर्वाषाढा नक्षत्र  तृतीय चरण     फा 
सुवर्णवर्णो हेमाङ्गो वराङ्गश्चन्दनाङ्गदी।
वीरहा विषमः शून्यो घृताशीरचलश्चलः      ॥७९॥

धनु राशी  पूर्वाषाढा नक्षत्र  चतुर्थ चरण     ढा 
अमानी मानदो मान्यो लोकस्वामी त्रिलोकधृक्।
सुमेधा मेधजो धन्यः सत्यमेधा धराधरः    ॥८०॥

धनु राशी उत्तरा षाढा नक्षत्र  प्रथम चरण    भे  
तेजोवृषो द्युतिधरः सर्वशस्त्रभृतां वरः।
प्रग्रहो निग्रहो व्यग्रो नैकशृङ्गो गदाग्रजः    ॥८१॥

मकर राशी  उत्तरा षाढा नक्षत्र  द्वितीय चरण    भो 

चतुर्मूर्तिश्चतुर्बाहुश्चतुर्व्यूहश्चतुर्गतिः।
चतुरात्मा चतुर्भावश्चतुर्वेदविदेकपात्        ॥८२॥

मकर राशी  उत्तरा षाढा नक्षत्र  तृतीय चरण    जा 
समावर्तोऽनिवृत्तात्मा दुर्जयो दुरतिक्रमः।
दुर्लभो दुर्गमो दुर्गो दुरावासो दुरारिहा         ॥८३॥

मकर राशी  उत्तरा षाढा नक्षत्र  चतुर्थ चरण    जी 
शुभाङ्गो लोकसारङ्गः सुतन्तुस्तन्तुवर्धनः।
इन्द्रकर्मा महाकर्मा कृतकर्मा कृतागमः     ॥८४॥

मकर राशी  श्रवण नक्षत्र  प्रथम चरण     खी 
उद्भवः सुन्दरः सुन्दो रत्ननाभः सुलोचनः।
अर्को वाजसनः शृङ्गी जयन्तः सर्वविज्जयी  ॥८५॥

मकर राशी श्रवण नक्षत्र  द्वितीय चरण    खू   

सुवर्णबिन्दुरक्षोभ्यः सर्ववागीश्वरेश्वरः।
महाह्रदो महागर्तो महाभूतो महानिधिः        ॥८६॥

मकर राशी श्रवण नक्षत्र  तृतीय चरण     खे 
कुमुदः कुन्दरः कुन्दः पर्जन्यः पावनोऽनिलः।
अमृतांशोऽमृतवपुः सर्वज्ञः सर्वतोमुखः       ॥८७॥

मकर राशी श्रवण नक्षत्र  चतुर्थ चरण    खो  
सुलभः सुव्रतः सिद्धः शत्रुजिच्छत्रुतापनः।
न्यग्रोधोऽदुम्बरोऽश्वत्थश्चाणूरान्ध्रनिषूदनः॥८८॥

मकर राशी धनिष्ठा नक्षत्र  प्रथम चरण     गा 
सहस्रार्चिः सप्तजिह्वः सप्तैधाः सप्तवाहनः।
अमूर्तिरनघोऽचिन्त्यो भयकृद्भयनाशनः     ॥८९॥

मकर धनिष्ठा नक्षत्र  द्वितीय चरण    गी 
अणुर्बृहत्कृशः स्थूलो गुणभृन्निर्गुणो महान्।
अधृतः स्वधृतः स्वास्यः प्राग्वंशो वंशवर्धनः ॥९०॥


कुंभ राशी धनिष्ठा नक्षत्र तृतीय चरण    गू 
भारभृत् कथितो योगी योगीशः सर्वकामदः।
आश्रमः श्रमणः क्षामः सुपर्णो वायुवाहनः    ॥९१॥

कुंभ राशी धनिष्ठा नक्षत्र चतुर्थ चरण    गे 
धनुर्धरो धनुर्वेदो दण्डो दमयिता दमः।
अपराजितः सर्वसहो नियन्ताऽनियमोऽयमः॥९२॥

कुंभ राशी शततारा नक्षत्र प्रथम चरण    गो
सत्त्ववान् सात्त्विकः सत्यः सत्यधर्मपरायणः।
अभिप्रायः प्रियार्होऽर्हः प्रियकृत् प्रीतिवर्धनः   ॥९३॥

कुंभ शततारा नक्षत्र द्वितीय चरण    सा

विहायसगतिर्ज्योतिः सुरुचिर्हुतभुग्विभुः।
रविर्विरोचनः सूर्यः सविता रविलोचनः        ॥९४॥

कुंभ राशी शततारा नक्षत्र तृतीय चरण    सी 
अनन्तो हुतभुग्भोक्ता सुखदो नैकजोऽग्रजः।
अनिर्विण्णः सदामर्षी लोकाधिष्ठानमद्भुतः  ॥९५॥

कुंभ राशी शततारा नक्षत्र चतुर्थ चरण    सू 
सनात्सनातनतमः कपिलः कपिरव्ययः।
स्वस्तिदः स्वस्तिकृत्स्वस्ति स्वस्तिभुक्स्वस्तिदक्षिणः॥९६॥

कुंभ राशी पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र  प्रथम चरण    से 
अरौद्रः कुण्डली चक्री विक्रम्यूर्जितशासनः।
शब्दातिगः शब्दसहः शिशिरः शर्वरीकरः           ॥९७॥

कुंभ राशी पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र द्वितीय चरण    सो 



अक्रूरः पेशलो दक्षो दक्षिणः क्षमिणांवरः।
विद्वत्तमो वीतभयः पुण्यश्रवणकीर्तनः           ॥९८॥

कुंभ राशी पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र तृतीय चरण    दा 
उत्तारणो दुष्कृतिहा पुण्यो दुःस्वप्ननाशनः।
वीरहा रक्षणः सन्तो जीवनः पर्यवस्थितः         ॥९९॥

मीन राशी पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र चतुर्थ चरण    दी 
अनन्तरूपोऽनन्तश्रीर्जितमन्युर्भयापहः।
चतुरश्रो गभीरात्मा विदिशो व्यादिशो दिशः      ॥१००॥

मीन राशी उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र प्रथम चरण     दू 
अनादिर्भूर्भुवो लक्ष्मीः सुवीरो रुचिराङ्गदः।
जननो जनजन्मादिर्भीमो भीमपराक्रमः          ॥१०१॥

मीन राशी उत्तराभाद्रपद नक्षत्र  द्वितीय चरण     


आधारनिलयोऽधाता पुष्पहासः प्रजागरः।
ऊर्ध्वगः सत्पथाचारः प्राणदः प्रणवः पणः       ॥१०२॥

मीन राशी उत्तराभाद्रपद नक्षत्र तृतीय चरण       
प्रमाणं प्राणनिलयः प्राणभृत्प्राणजीवनः।
तत्त्वं तत्त्वविदेकात्मा जन्ममृत्युजरातिगः   ॥१०३॥

मीन राशी उत्तराभाद्रपद नक्षत्र चतुर्थ चरण    था 
भूर्भुवःस्वस्तरुस्तारः सविता प्रपितामहः।
यज्ञो यज्ञपतिर्यज्वा यज्ञाङ्गो यज्ञवाहनः       ॥१०४॥  


मीन राशी  रेवति नक्षत्र प्रथम चरण    दे 
यज्ञभृद् यज्ञकृद् यज्ञी यज्ञभुक् यज्ञसाधनः।
यज्ञान्तकृद् यज्ञगुह्यमन्नमन्नाद एव च     ॥१०५॥

मीन  रेवति नक्षत्र द्वितीय चरण    दो  
आत्मयोनिः स्वयंजातो वैखानः सामगायनः।
देवकीनन्दनः स्रष्टा क्षितीशः पापनाशनः     ॥१०६॥
    

मीन राशी  रेवति नक्षत्र तृतीय चरण    चा  
शङ्खभृन्नन्दकी चक्री शार्ङ्गधन्वा गदाधरः।
रथाङ्गपाणिरक्षोभ्यः सर्वप्रहरणायुधः          ॥१०७॥   
श्री सर्वप्रहरणायुध ॐ नम इति।

मीन राशी  रेवति नक्षत्र चतुर्थ चरण    ची  
वनमाली गदी शार्ङ्गी शङ्खी चक्री च नन्दकी।
श्रीमान् नारायणो विष्णुर्वासुदेवोऽभिरक्षतु     ॥१०८॥    
श्री वासुदेवोऽभिरक्षतु ॐ नम इति।

|| श्री कृष्णार्पणमस्तु ||


इष्टार्थ सिद्धिप्रद मंत्रः
उद्योग प्राप्ति:
व्यवसायो व्यवस्थानः।संस्थानः स्थानदो ध्रुवः
परद्धि परमस्पष्ट स्तुष्टः।पुष्टः शुभेक्षणः॥  (४२ श्लोक)

दारिद्र्यनाशन, धनप्राप्ति:।
विस्तारः स्थावरः स्थाणुः।प्रमाणं बीजमव्ययम्।
अर्थोअनर्थो महाकोशो।महाभोगो महाधनः॥ (४६ श्लोक)

ऐश्वर्य प्राप्ति:

श्रीदः श्रीशः श्रीनिवासः।श्रीनिधिः श्रीविभावनः।
श्रीधरः श्रीकरः श्रेयः। श्रीमान् लोकत्रयाश्रयः॥ (६५ श्लोक)

विद्या प्राप्ति:

अमानी मानदो मान्यो।लोकस्वामी त्रिलोकधृत्।
सुमेधा मेधजो धन्यः।सत्यमेधा धराधरः॥ (८० श्लोक)

संतान प्राप्ति:

अणुर्बृहत् कृशः स्थूलो।गुणभृन्निर्गुणो महान्।
अधृतः स्वधृतः स्वास्यः।प्राग्वंशो वंशवर्धनः॥ (९० श्लोक)

सर्व रोग निवारण:

प्रमाणं प्राणनिलयः।प्राणभृत् प्राणजीवनः।
तत्त्वं तत्त्वविदेकात्मा।जन्म मृत्युजरातिगः॥ (१०३ श्लोक)

पाप नाशन:

आत्म योनिः स्वयंजातो।वैखानः सामगायनः।
देवकीनंदनः स्रष्टा।क्षितीशः पापनाशनः॥  (१०६ श्लोक)

सुख प्रसव:

शंखभृन्नंदकी चक्री।शाङ्ग९धन्वा गदाधरः।
रथांगपाणिरक्षोभ्यः।सर्वप्रहरणायुधः॥  (१०७ श्लोक)










                                                                                       




























































































































































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