Friday, May 17, 2019

GOVINDA ASHTAKAM श्रीगोविन्दाष्टकं ( श्रीमच्छंकराचार्य विरचितं )

श्रीगोविन्दाष्टकं 
( श्रीमच्छंकराचार्य विरचितं )
श्रीगोविन्दाष्टकं सत्यं ज्ञानमनन्तं नित्यमनाकाशं 
परमाकाशं गोष्ठप्रांगणरिंखणलोलमनायासं परमायासम् । 
मायाकल्पितनानाकारमनाकारं भुवनाकारं 
क्ष्माया नाथमनाथं प्रणमत गोविन्दं परमानन्दम् ॥ 1॥ 

मृत्स्ना मत्सीहेति  यशोदाताडनशैशव सन्त्रासं

व्यदितवक्त्रालोकितलोकालोकचतुर्दशलोकालिम् । 
लोकत्रयपुरमूलस्तम्भं लोकालोकमनालोकं                  
लोकेशं परमेशं प्रणमत गोविन्दं परमानन्दम् ॥ 2॥                                                   
                                                                                                                       
त्रैविष्टपरिपुवीरघ्नं क्षितिभारघ्नं भवरोगघ्नं 
कैवल्यं नवनीताहारमनाहारं भुवनाहारम् । 
वैमल्यस्फुटचेतोवृत्तिविशेषाभासमनाभासं 
शैवं केवलशान्तं प्रणमत गोविन्दं परमानन्दम् ॥ 3॥ 

गोपालं प्रभुलीलाविग्रहगोपालं कुलगोपालं

गोपीखेलनगोवर्धनधृतिलीलालालितगोपालम् । 
गोभिर्निगदित गोविन्दस्फुतनामानं बहुनामानं 
गोपीगोचरपथिकं प्रणमत गोविन्दं परमानन्दम् ॥ 4॥

गोपीमंडलगोष्ठिभेदं भेदावस्थमभेदाभं 

शश्वद्गोखुरनिर्घूतोद्धतधूलीधूसरसौभाग्यम् ।
श्रद्धाभक्तिगृहीतानन्दमचिन्त्यं चिन्तितसद्भावं
चिन्तामणिमहिमानं प्रणमत गोविन्दं परमानन्दम् ॥ 5॥

स्नानव्याकुलयोशिद्वस्त्रमुपादायागमुपारूढं 

व्यदित्सन्तिरथ दिग्वस्त्रा ह्युपुदातुमुपाकर्षन्तम् । 
निर्धूतद्वयशोकविमोहं बुद्धं बुद्धेरन्तस्थं 
सत्तामात्रशरीरं प्रणमत गोविन्दं परमानन्दम् ॥ 6॥ 

कान्तं कारणकारणमादिमनादिं कालमनाभासं 

कालिन्दीगतकालियशिरसि मुहुर्नृत्यन्तं नृत्यन्तम् । 
कालं कालकलातीतं कलिताशेषं कलिदोषघ्नं 
कालत्रयगतिहेतुं प्रणमत गोविन्दं परमानन्दम् ॥ 7॥ 

वृन्दावनभुवि वृन्दारकगणवृन्दाराध्यं वन्देऽहं 

कुन्दाभामलमन्दस्मेरसुधानन्दं सुहृदानन्दम् । 
वन्द्याशेषमहामुनिमानसवन्द्यानन्दपदद्वन्द्वं 
वन्द्याशेषगुणाब्धिं प्रणमत गोविन्दं परमानन्दम् ॥ 8॥

गोविन्दाष्टकमेतदधीते गोविन्दार्पितचेता यो 

गोविन्दाच्युत माधव विष्णो गोकुलनायक कृष्णेति
गोविन्दांघ्रिसरोजध्यानसुधाजलधौतसमस्ताघो 
गोविन्दं परमानन्दामृतमन्तःस्थं स तमभ्येति ॥ 


॥ इति श्रीमच्छंकराचार्य विरचितं श्रीगोविन्दाष्टकं सम्पूर्णम् ॥

No comments:

Post a Comment