अविधवा नवमि श्राद्ध
अविधवा नवमी पर पति से पहले मर जाने वाली स्त्री (सुहागिन) का श्राद्ध किया जाता है. जैसा कि इसके नाम से ज्ञात होता है अ-विधवा अर्थात जो स्त्री विधवा नहीं है. नवमी यानी पितृपक्ष नवमि तिथी को ये दिन मनाया जाता है. ये दिन भी पितृपक्ष के दौरान मनाए जाने वाले एक दिन जैसा ही है.
आप को बता दें कि श्राद्ध पक्ष में अलग-अलग तिथियों का महत्व भी अलग अलग है. इस दौरान श्रद्धालु अपने पितरों की शांति के लिए श्राद्ध करते हैं. जिससे वे पितरों को प्रसन्न कर उनसे सुखी जीवन का आशीर्वाद लेते हैं.
पितृपक्ष की नवमी तिथि मृत सधवा स्त्री के लिए नियत की गई है. अविधवा नवमी के दिन पंडित के सलाह से पिंड प्रदान सहित श्राद्ध करके सौलह श्रृंगार की सामग्री दान दें. भोजन करवाएं. या किसी सुहागन को सौलह श्रृंगार की सामग्री अपनी यथा शक्ति के हिसाब से देंगे तो हर मनोकामना पूरी अपथ्य प्राप्ति होगी होगी.
पति के जीवित रहते जिस स्त्री का निधन हो उसे ‘अहेव’ कहते हैं. मरने के बाद उसे ‘सधवा’ कहा जाता है. एक से अधिक माता का देहांत सधवा स्थिति में हो तो उन माताओं का श्राद्ध अविधवा नवमी को एकतंत्रीय पद्धति से करें.
बताया गया है कि यदि जिस स्त्री का देहांत हो चुका हो और उसका पुत्र न हो, या पुत्र का भी देहांत हो चुका हो उसके बच्चे अविधवा नवमी का श्राद्ध न करें.
ऐसा भी बताया गया है कि सधवा कि पति भी पिंड प्रदान सहित श्राद्ध करके तर्पण देना अनिवार्य है लेकिन छोड़ देना इच्छित नहीं
नियम ये भी है कि अगर सौतेली मां जीवित हो और सगी मां का निधन हो जाए तो पुत्र को यह श्राद्ध करना चाहिए. सगी मां जीवित हो, सौतेली मां का निधन हो जाए तो भी पुत्र को यह श्राद्ध करना चाहिए. जिस स्त्री का देहांत हो चुका है और उसके लड़का नहीं है तो अविधवा नवमी पर उसका श्राद्ध पुत्री या जमाई भी कर सकता है
1) अस्मत मातरं.....देवि दां ....गोत्राणां वसु स्वरूपाणां स्वधा नमः तर्पयामि
2) अस्मत पिता महिं .....देवि दां ....गोत्राणां रूद्र स्वरूपाणां स्वधा नमः तर्पयामि
3) अस्मत प्रिपिता महिं....देविदां ....गोत्राणां आदित्य स्वरूपाणां स्वधा नमः तर्पयामि
4) विधुर जिसका पुत्र न हो स्वयं अविधवा नवमि श्राद्ध पिण्ड प्रदान सहित करना चाहिये
5) मम भर्तृ तत्पित्रु पितामहानां, मम भर्तृ मातुह् पितामहि मातुह् प्रपितामहिनां
6) मम पितृ पितामह प्रपितामहानां,
7) मम मातृ पितामहि प्रपितामहिनां,
8) मम मातामह मातुह् पितामाह मातुह् प्रपितामहानां
9) मम मातामाहि मातुह् पितामहि मातुह् प्रपितामहिनां
तृप्त्यर्थ सकृन् महालय अविधवा नवमि श्राद्ध महं करिष्ये
|| श्री मद् जनार्दन स्वामि गोविन्दा गोविन्दा ||
No comments:
Post a Comment