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करार विन्देन (गोविन्द दामोदर माधवेति) 1
श्री गुरूभ्यो नमः। हरि: ॐ।
करार विन्देन पदार विन्दं , मुख़ार विन्दे विनये शयन्तम |वटस्य पत्रस्य पुटे शयानम, बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि |
श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारे, हे नाथ नारायण वासुदेव: |जिह्वे पिबस्वामृतमेत देव:, गोविन्द दामोदर माधवेति |
विक्रेतु कामा खिल गोप कन्या, मुरारी पदार्पित चित्त: वृत्ति: |दध्यादिकं मोह वशादवोचाद, गोविन्द दामोदर माधवेति |
गृहे गृहे गोप वधु कदम्बा:, सर्वे मिलित्व सम वाप्य योगं | पुण्यानी नामानि पठन्ति नित्यम, गोविन्द दामोदर माधवेति |
सुखम श्यान निलये निजेपि, नमाणि विष्णोः प्रवदन्तितर्य | ते निश्चितं तन्मयतां व्रजन्ति, गोविन्द दामोदर माधवेति |
जिह्वे सदैवम भज सुंदरानी, नमानी कृष्णस्य मनोहरानी |समस्त भक्तार्ति विनाश नानि, गोविन्द दामोदर माधवेति |
सुखा वसाने इदमेव सारम, देखा वसाने इदमेव ज्ञेयम |देह: वसाने इदमेव जाप्यं, गोविन्द दामोदर माधवेति |
श्री कृष्ण राधावर गोकुलेश, गोपाल गोवर्धन नाथ विष्णु: |जिह्वे पिबस्वामृतमेत देव:, गोविन्द दामोदर माधवेति |
जिह्वे रसज्ञे मधुर प्रियत्वम, सत्यम हितं त्वां परमं वदामि |आवरणा यथा मधुरक्श राणी, गोविन्द दामोदर माधवेति |
त्वमेव याचे मम देहि जिह्वे, समागते दंड धरे कृतान्ते |वक्तव्य मेवं मधुरं सुभक्त्यां गोविन्द दामोदर माधवेति |
श्री बिल्वमंगल ठाकुर (लीला सखा)
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