|| अथ प्रज्ञापुराधीश श्री स्वामिसमर्थ स्तोत्रम् ||
ॐ दैवत्रयाय विध्महे | वटवृक्षाय धीमही |
तन्नो श्री समर्थः प्रचोदयात् || 1 ||
अत्री नंदन रजत सत्व तमस | गिरिनार अद्री वस |सद्रत्नः नवनाथ पंथ वृन्दः | श्री पाद वल्लभ वरः |यः नरसिंह सरस्वतीच भानो | तः परम पारंपर |नित्यः जागृत श्री समर्थ योगी कुर्वंतुनो मंगलं || 2 ||
रमापतिर्भुषयते रूपं | रुद्रः भूषयते कुलम् | विधिर्भुषयते विद्याम् | सर्वा श्री दत्त विशेष्यते || 3 ||
यजुर्वेदी नमस्तुभ्यं | नमस्तुभ्यं काश्चपजः |धामकर्दळि नमस्तुभ्यं | वृक्ष राज नमोन्नमः || 4 ||
विरिन्चि वृक्ष मूलाय | वटपत्र हरायच |
मध्यकांड विष्णुरूपाय | स्वामिराजायते नमः || 5 ||
तावद्विराजते दर्शनं | तावद्श्रवण कीर्तनं |
तावद्भक्त नराणांच | यावत् स्वामि प्रसीदतु || 6 ||
दुर्वास दत्तः निषिराज धात्री | त्रिगुणा विहारी भव दुःख हारी | उन्मत्त प्रेता पिशाच्य बाधाः | वटवृक्ष रक्षः तपसाध्य तज्ञ्यः | कारुण्य ज्योतिर्नश्यंति सर्वे | श्री स्वमि राजं शरणम् प्रपद्द्ये || 7 ||
त्रिगुणतीताश्रितः रक्षः | त्रय ताप विनाशकः |
त्राहिमान् न्यग्रोध शाखः | महा पापद्विनाशनं |
सप्रयत्नः प्रयत्नांते | शरणं भक्ति भावजः |
इप्सितार्थः प्रदातान्यो | प्रज्ञापुरीशान्न विद्धयते || 8 ||
ॐ दैवत्रयाय विध्महे | वटवृक्षाय धीमही |
तन्नो श्री समर्थः प्रचोदयात् || 1 ||
अत्री नंदन रजत सत्व तमस | गिरिनार अद्री वस |सद्रत्नः नवनाथ पंथ वृन्दः | श्री पाद वल्लभ वरः |यः नरसिंह सरस्वतीच भानो | तः परम पारंपर |नित्यः जागृत श्री समर्थ योगी कुर्वंतुनो मंगलं || 2 ||
रमापतिर्भुषयते रूपं | रुद्रः भूषयते कुलम् | विधिर्भुषयते विद्याम् | सर्वा श्री दत्त विशेष्यते || 3 ||
यजुर्वेदी नमस्तुभ्यं | नमस्तुभ्यं काश्चपजः |धामकर्दळि नमस्तुभ्यं | वृक्ष राज नमोन्नमः || 4 ||
विरिन्चि वृक्ष मूलाय | वटपत्र हरायच |
मध्यकांड विष्णुरूपाय | स्वामिराजायते नमः || 5 ||
तावद्विराजते दर्शनं | तावद्श्रवण कीर्तनं |
तावद्भक्त नराणांच | यावत् स्वामि प्रसीदतु || 6 ||
दुर्वास दत्तः निषिराज धात्री | त्रिगुणा विहारी भव दुःख हारी | उन्मत्त प्रेता पिशाच्य बाधाः | वटवृक्ष रक्षः तपसाध्य तज्ञ्यः | कारुण्य ज्योतिर्नश्यंति सर्वे | श्री स्वमि राजं शरणम् प्रपद्द्ये || 7 ||
त्रिगुणतीताश्रितः रक्षः | त्रय ताप विनाशकः |
त्राहिमान् न्यग्रोध शाखः | महा पापद्विनाशनं |
सप्रयत्नः प्रयत्नांते | शरणं भक्ति भावजः |
इप्सितार्थः प्रदातान्यो | प्रज्ञापुरीशान्न विद्धयते || 8 ||
त्राहि त्राहि श्री समर्थः | त्राहि त्राहि करुणार्णवः |
त्राहि त्राहि भवद्रष्ठः | दारिद्र्य नाशन वेगतः || 9 ||
भयः दीनं प्रपिडीतेनं | मनः शांति क्षुब्धं | तव पार्श्वमागतं |देहिमे त्राता दत्त | असनवसनान्नमद्भुतं || 10 ||
सप्त विंशति शतं वारे | पठेद् दोष निवारणं |
श्री सितारामाचार्य प्रपौत्र प्रोक्तं | सद्भक्ति हित प्रेरितः |
सर्व सौख्य करं भक्तः | आयुरारोग्य संपदः || 11 ||
इति श्री वटवृक्ष छा याद् त्रिमुर्ति रूपे | नाथानुयायाद् प्रज्ञा पुरिस्थित | श्री स्वामि समर्थ स्तोत्रम् संपूर्णं |
प्रेरित दिवस ......
शक १९१६ भावनाम मार्गशीर्ष शुक्ल १४ भृगुवासर
सुधीराचार्य श्रीधराचार्य कट्टि उमरजकर
त्राहि त्राहि भवद्रष्ठः | दारिद्र्य नाशन वेगतः || 9 ||
भयः दीनं प्रपिडीतेनं | मनः शांति क्षुब्धं | तव पार्श्वमागतं |देहिमे त्राता दत्त | असनवसनान्नमद्भुतं || 10 ||
सप्त विंशति शतं वारे | पठेद् दोष निवारणं |
श्री सितारामाचार्य प्रपौत्र प्रोक्तं | सद्भक्ति हित प्रेरितः |
सर्व सौख्य करं भक्तः | आयुरारोग्य संपदः || 11 ||
इति श्री वटवृक्ष छा याद् त्रिमुर्ति रूपे | नाथानुयायाद् प्रज्ञा पुरिस्थित | श्री स्वामि समर्थ स्तोत्रम् संपूर्णं |
प्रेरित दिवस ......
शक १९१६ भावनाम मार्गशीर्ष शुक्ल १४ भृगुवासर
सुधीराचार्य श्रीधराचार्य कट्टि उमरजकर
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